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16. Jesus, the Light of the World

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16. येशु दुनीया की रोशनी

जगत की ज्योति मैं हूँ

 

इस खंड का 20वाँ वचन उस दृश्य को चित्रित करने में मदद करता है जिसका अध्यन हम आज कर रहे हैं। यहाँ वर्णित घटना यरूशलेम में मंदिर के पर्वत पर होती है जो उस महिलाओं के दरबार की पूर्वी ओर स्थित है जहाँ खज़ाना और तुरही के आकार के कांस्य के संदूक में भेंट ग्रहण की जाती थी। मिशनाह (मिडोथ 2, 5) के अनुसार, महिला दरबार 200 वर्ग फीट से कुछ ही अधिक था, जिसमें दरबार के चारों ओर खंभे थे। मैं चाहता हूँ कि जब यीशु अपने बारे में एक महत्वपूर्ण घोषणा करने जा रहे हैं, तो आप मेरे साथ इस दृश्य को चित्रित करें। वो एक निमंत्रण भी देने जा रहे हैं जो समयकाल से परे आज के दिन तक, आपके और मेरे पास तक गूँजेगा।

 

यह खंड हमें नहीं बताता है कि यीशु और यहूदी अग्वों के बीच यह बातचीत कब हुई, लेकिन हम यह मान सकते हैं कि यह पतझड़ के समय में झोपड़ियों के पर्व (सूकोट) (यहुन्ना 7:37) के अंतिम दिन हुई होगी। इस भोज के अंतिम दिन दो महान समारोह होते थे। पहला उसी सुबह होता था जहाँ जला कर चढ़ाई गईं भेंट की वेदी पर पानी डाला जाता था। उसी समय, जब भीड़ महायाजक को पानी से भरे लोटे को उठाने के लिए चिल्ला कर कहती इससे पहले कि महायाजक उसे वेदी पर डालता यीशु सभी के सुनने के लिए चिल्लाया, यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए। जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’।” (यहुन्ना 7:37-38)

 

प्रभु ने स्वयं के विषय में इस रूप में बात की कि वह वो जन है जिसमें से जीवन का जल उत्पन्न होगा। यह उस घटना को याद दिलाता है जहाँ मूसा ने चट्टान से पानी उत्पन्न किया था। इसी तरह, हम देखते हैं कि मसीहा को मारा जाना है, और उसके जीवन की चट्टान से (भजन 18:2) जीवन की एक नदी बहती है, अर्थात पवित्र आत्मा (यहुन्ना 7:39; निर्गमन 17: 6)। बाद में, उसी दिन सूर्य के ढलने के साथ, एक दूसरा समारोह आरंभ होता है जिसे मंदिर का प्रकाशमान होना कहा जाता था। मंदिर के आँगनों में, महिलाओं के सभागार में चार बड़े दीपक या दीपाधार थे। मिश्नाह (सुक्का 5:2-3) हमें बताता है कि प्रत्येक दीपक पर एक सीढ़ी के साथ चार बड़े सुनहरे कटोरे होते थे, जिससे जवान याजक चढ़ कर कटोरे को तेल से भरते थे और अंधेरा होने पर उन्हें प्रज्वल्लित कर दिया करते थे। यह एक भव्य दृश्य होता होगा।

 

क्योंकि मंदिर का टापू शहर के एक ऊँचे स्थान पर था, ऐसा कहा जाता है कि दीपक की लौ जलने से अधिकांश यरूशलेम में उजियाला हो जाता था। झोपड़ियों के पर्व के दौरान, यहूदी लोगों को परमेश्वर द्वारा सात दिनों तक उत्सव मनाने के लिए आदेश दिया गया था (गिनती 29:12), इसलिए सारी रात भर परमेश्वर के सम्मुख नाच-गाना और आनंद मनाना होता था। काफी सम्भावना है कि जब दीपक प्रज्ज्वलित हो रहे थे, तब यीशु ने यहुन्ना के सुसमाचार में पाए जाने वाले सात "मैं हूँ" के कथनों में से दूसरा कहा होगा। हम पहले "मैं हूँ" को देख चुके हैं जब मसीह ने कहा, "जीवन की मैं रोटी हूँ" (यहुन्ना 6:35, 48, 51), यानी यीशु के स्वर्गीय मन्ना होने का संकेत, वह मन्ना जिसे परमेश्वर ने मूसा के द्वारा इज़राइल के बच्चों के लिए दिया था। मन्ना ने उस सच्ची रोटी के एक स्वरुप को दर्शाया जो परमेश्वर देने वाला था। जैसे ही दिन ढलना शुरू हुआ और जवान लोगों ने दीपक जलाए, यीशु ने अब उन्हें बताया कि वह संसार की सच्ची ज्योति है, अर्थात वह जो मनुष्यों को अंधकार में से बाहर लाएगा (यहुन्ना 1:4-5):

 

12तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा। 13फरीसियों ने उससे कहा, “तू अपनी गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।” 14 यीशु ने उनको उत्तर दिया, “यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तौभी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ को जाता हूँ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ। 15तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं हूँ, और पिता है जिसने मुझे भेजा। 17और तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है; कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है। 18एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिसने मुझे भेजा।” 19उन्होंने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?” यीशु ने उत्तर दिया, “न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते तो मेरे पिता को भी जानते।” 20ये बातें उस ने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था। (यहुन्ना 8:12-20)

 

 

 

ध्यान दें कि उसने यह नहीं कहा कि मैं एक रोशनी हूँ या रोशनियों में से एक हूँ, लेकिन उसका कथन विशिष्ट है, "जगत की ज्योति मैं हूँ” (पद 12) फरीसी सुन रहे थे, जो एक बार फिर यीशु के चरित्र के बारे में बहुत कुछ कहता है। उसने यह बातें सिर्फ अपने चेलों को नहीं कहीं। उसने इस बारे में कि वो कौन था और है सभी लोगों से बात की, भले ही वे उसके साथ थे या उसके विरोध में थे। यह बातें निजी तौर पर नहीं की गई थीं, मसीह ने अपने कथन अपेक्षित प्रतिक्रिया के बावजूद साहसपूर्वक अपनी पहचान के बारे में सच्चाई से कहे। फरीसियों ने तुरंत उसे चुनौती दी क्योंकि वे समझ गए कि यह दिव्यता का दावा था। प्रभु ने उनसे कई बार इस विषय में बात की थी कि वो उनकी ज्योति था, यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति है” (भजन 27:1)। “यहोवा तेरे लिये सदा का उजियाला होगा” (यशायाह 60:19)। “उस से उजियाला पाकर मैं अन्धेरे में चलता था” (अय्यूब 29:3)

 

इस्राएलियों को दासत्व में रखने की वजह से परमेश्वर के मिस्र राष्ट्र के साथ निपटने के समय, मिस्र पर पड़ने वाली दस विपत्तियों में से एक मिस्र पर घना अंधेरा छाना था, परन्तु जहाँ इस्राएली रहते थे, वहाँ ज्योति थी:

 

21फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि मिस्र देश के ऊपर अन्धकार छा जाए, ऐसा अन्धकार कि टटोला जा सके।” 22तब मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाया, और सारे मिस्र देश में तीन दिन तक घोर अन्धकार छाया रहा। 23तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा, और न कोई अपने स्थान से उठा; परन्तु सारे इस्राएलियों के घरों में उजियाला रहा। (निर्गमन 10:21-23)

 

 

मिस्र से छुटकारे के बाद, जब फ़िरौन और उसके सैनिकों ने इस्राएल को मिटा देने के लिए लाल समुद्र में पीछा किया, तो परमेश्वर मिस्रियों के लिए अन्धकार लेकर आया, लेकिन इज़राइल की तरफ, सूखे मैदान पर समुद्र पार करने के लिए उनके पास ज्योति थी (निर्गमन 14:19-20)। प्रेरित पौलुस ने लिखा था कि मसीह परमेश्वर का दूत था, यह मसीह की देहधारी होने से पूर्व की एक उपस्थिति थी, जिसने इज़राइल को स्वर्ग से रोटी, चट्टान से पानी, और लाल सागर पार करते हुए अंधेरे में ज्योति प्रदान की:

 

1हे भाइयों, मैं नहीं चाहता, कि तुम इस बात से अज्ञात रहो, कि हमारे सब बाप-दादे बादल के नीचे थे, और सब के सब समुद्र के बीच से पार हो गए। 2और सब ने बादल में, और समुद्र में, मूसा का बपितिस्मा लिया। 3और सब ने एक ही आत्मिक भोजन किया। 4और सब ने एक ही आत्मिक जल पीया, क्योंकि वे उस आत्मिक चट्टान से पीते थे, जो उन के साथ- साथ चलती थी; और वह चटान मसीह था(1 कुरिन्थियों 10:1-4)

 

प्रश्न 1) यीशु का क्या अर्थ था जब उसने कहा, "जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा?" (पद 12)"ज्योति" और "प्रकाश" से यीशु का क्या अर्थ था?

 

मसीह सभी राष्ट्रों के लिए ज्योति है, केवल इज़राइल के लिए ही नहीं

 

अपने पीड़ित दास, मसीह, के बारे में एक भविष्यवाणी में, यशायाह ने यह भविष्यवाणी का वचन दिया:

 

5ओर अब यहोवा जिसने मुझे जन्म ही से इसलिये रखा कि मैं उसका दास होकर याकूब को उसकी ओर फेर ले आऊँ अर्थात् इजराइल को उसके पास इकट्ठा करूँ, क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदरयोग्य हूँ और मेरा परमेश्वर मेरा बल है, 6उसी ने मुझसे यह भी कहा है, “यह तो हलकी सी बात है कि तू याकूब के गोत्रों का उद्धार करने और इजराइल के रक्षित लोगों को लौटा ले आने के लिये मेरा सेवक ठहरे; मैं तुझे जाति-जाति के लिये ज्योति ठहराऊँगा कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए।” (यशायाह 49:5-6)

 

न केवल प्रभु यीशु इजराइल की ज्योति है, बल्कि वह सभी राष्ट्रों की ज्योति है। समय की शुरुआत से, परमेश्वर ने सभी राष्ट्रों से अपने पुत्र की दुल्हन को लाने की योजना बनाई थी। उसने अब्राहम से इस प्रतिज्ञा के बारे में कहा: 2और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊँगा, और तुझे आशीष दूँगा, और तेरा नाम महान करूँगा, और तू आशीष का मूल होगा। 3और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूँगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूँगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे (उत्पत्ति 12:2-3) पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को इस स्वर्गीय आशीष का हिस्सा बनना था जिसमें प्रिय पाठक, आप भी, शामिल हैं।

 

उम्मीद है कि आप अपने जीवन में एक ऐसे स्थान पर आ गए हैं जहाँ आप जीवन के बारे में बड़े प्रश्न पूछ रहे हैं, "मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ? मेरे पास जीने के लिए क्या कारण है? मैं कहाँ जा रहा हूँ?" यदि आप जगत की ज्योति, मसीह यीशु को नहीं जानते हैं तो इस तरह के प्रश्न निराशाजनक हो सकते हैं। जब कोई व्यक्ति अंधकार में होता है, तो वह अपने सामने अगला कदम नहीं देख सकता है। कहाँ जाना है, यह जानने का प्रयास करने में वह ठोकर खाता रहता है। इसी प्रकार, एक व्यक्ति जो मसीह के पास आता है, वह यह समझना शुरू करता है कि वह कौन है, वह क्यों जीवित है, और वह कहाँ जा रहा है। ज्योति ज्ञान की एक तस्वीर है; जबकि, अंधकार अज्ञानता और इस संसार की चीजों के बारे में बात करता है। एक व्यक्ति जितनी अधिक ज्योति या ज्ञान प्राप्त करता है, जीवन में होकर गुजरने में उसे ठोकरों का उतना ही कम अनुभव करना पड़ता है। ज्योति प्रकाशवान होने के बारे में भी बात करती है, एक ऐसी सच्चाई को देखना जो पहले छुपी हुई थी। ज्योति आपको ऊपर की ओर आकर्षित करेगी और आपकी जीवात्मा को उठाएगी। अंधकार लोगों को बंधन में रखता है और सच्चाई को धुंधला बनाता है।

 

हमारे जीवन में ऐसे समय होते हैं जब हम बड़ी कठनाइयों से गुजरते हैं जब सब कुछ अंधकारमय लगता है, लेकिन भले ही हमें किसी भी प्रकार के अन्धकार से क्यों न गुज़रना पड़े, मसीह हमारी ज्योति होगा। जब हम किसी प्रियजन को खो देते हैं और ऐसा लगता है जैसे अंधेरा हमपर घिर रहा है, जब हम बीमार होते हैं और बिस्तर में पड़े रहना चाहते हैं, यहाँ तक ​​कि मरने की आशा भी करते हैं, तो अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे पास कोई आशा और ज्योति नहीं है - जीने का कोई कारण नहीं है। ये वह समय हैं जब यदि आप उसे खोजें और उससे मांगें, तो परमेश्वर स्वयं को आपके लिए एक विशेष और व्यक्तिगत तरीके से प्रकट करना चाहता है। वो वहाँ नहीं आएगा जहाँ उसे आमंत्रित नहीं किया गया है। उसने हममें से प्रत्येक को ज्योति की ओर बढ़ने या अंधकार में रहने का चुनाव करने की इच्छा शक्ति दी है। उसके पास आकर उसके बारे में सीखने से हम मुश्किल समय से चलने के लिए बहुत अधिक ज्योति पाएंगे। हमें उसे घनिष्ठता से जानने की इच्छा रखनी है। यीशु के बारे में यह लिखा गया है, अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा” (यशायाह 53:11)

 

बहुत से लोग जीवन में परमेश्वर के किसी ज्ञान से दूर, अपनी इच्छाओं का पालन करते हुए बिना किसी दिशा के जीवन में लड़खड़ाते हुए अंधकार अनुभव करते हैं। यह अंधेरे की अवधि में होता है कि परमेश्वर बात करता है और लोगों को स्वयं की ओर खींचता है। हालांकि, ऐसे मसीही लोग भी हैं जो अंधकार के समय में पीड़ा से गुज़रे हैं। वह लोग जो मसीह का अनुसरण करते हैं, वे पाते हैं कि जीवन की महान परीक्षाओं की अवधि में, परमेश्वर हमारे साथ है और उसने वचन दिया है कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा या त्यागेगा। यीशु ने कहा: "जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा(पद 12)। हमें स्वयं को उसके मार्गदर्शन के अधीन कर, उसकी आवाज़ सुनते हुए, और उसके वचन पर मनन करते हुए अपनी दिशा उसके जीवन के नमूने से लेनी है।

 

जीवन में कई बार ऐसे समय होते हैं जब उसके साथ चलने वाले दर्दनाक परिस्थितियों से गुजरते हैं, जिन्हें परमेश्वर हमारी क्षमता बढ़ाने और हमें दृढ़ करने के लिए शिक्षण के समय के रूप में उपयोग करता है। परमेश्वर दृढ़ता सिखाते हुए हमारे अंदर मसीह के चरित्र की समानता उत्पन्न कर रहा है। यह अप्रिय परिस्थितियाँ हमारे उसे त्यागने के कारण उत्पन्न नहीं होतीं, बल्कि इसलिए कि हम उसके साथ घनिष्ठता से चल रहे हैं। पवित्रशास्त्र कहता है, "धर्मी पर बहुत सी विपत्तियाँ पड़ती तो हैं, परन्त यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है” (भजन 34:19)। यह पर्याप्त नहीं कि हम अपनी विपत्तियों में ही इस ज्योति की ओर देखें या आस लगाएं। हमें कड़ी मेहनत से उसके पीछे हो लेना है, क्योंकि उसकी ज्योति हमारे पाँव के लिए दीपक है और हमारे मार्ग के लिए उजियाला है (भजन 119: 105)। हम सभी जीवन के मार्ग में देख कर यह जानना चाहेंगे कि आगे हमारे जीवनों में क्या होने वाला है, लेकिन परमेश्वर ने अगले कदम के लिए ही उजियाले का वचन दिया है न कि अगले मील या अगले वर्ष तक के लिए। "ऐसा क्यों है?" आप पूछ सकते हैं? कारण यह है कि वह चाहता है कि हम अंधकार के कठिन समय में उसपर भरोसा करें।

 

मैं साढ़े-तीन वर्षों के ऐसे समय से गुजरा जब मुझे सिनसिनाटी में पासबान के रूप में वेतन नहीं मिला, जबकि मैं उन वर्षों में चार बार आप्रवासन की अदालती प्रक्रियाओं से होकर गुज़रा। ऐसा इसलिए हुआ कि मैंने अपनी अमरीकी पत्नी सैंडी से 1980 शादी करने के बाद निवास के लिए अपने आप्रवासन के फॉर्मों पर गाँजे से सम्बंधित दो मामूली मामलों में दोषसिद्धि और सज़ा को कबूल किया था। गाँजे से सम्बंधित सज़ा इंग्लैंड में तब हुई थी जब मैं सत्रह और इक्कीस वर्ष की उम्र का था, एक मसीही

बनने से कई साल पूर्व। इन दोनों सज़ाओं को मेरे खिलाफ रखा जा रहा था, जबकि उनमें से एक तब हुआ था जब मैं नाबालिग था। इन सज़ाओं के कारण मैं ग्रीन कार्ड पाने के योग्य नहीं था।

 

एक परिवार के रूप में, हमने इंग्लैंड में सबकुछ पीछे छोड़ दिया था और हमारे बच्चे अब स्कूल खत्म कर रहे थे। इंग्लैंड और अमेरिका में स्कूली प्रणाली बहुत अलग हैं, और हम उस समय अपने बच्चों की शिक्षा को बाधित नहीं करना चाहते थे। हम मेरी पत्नी के परिवार के साथ कुछ समय बिताने की उम्मीद कर रहे थे क्योंकि वह उनसे लगभग बीस साल से अलग थीं। जब मैं आप्रवासन अदालत की प्रक्रिया से होकर गुज़रा तो हर दिन अंधकार भरा प्रतीत होता था। आप्रवासन अधिकारीयों ने मुझे धमकी दी कि अगर मैंने स्वेच्छा से अमेरिकी संयुक्त राज्य को नहीं छोड़ा, तो मुझे जबरन अपने गृह राष्ट्र इंग्लैंड भेज दिया जायेगा और मैं दस वर्षों तक काम करने के लिए वीज़ा का आवेदन नहीं कर पाउँगा।  

 

मेरे दो वकील थे; और दोनों ने मुझे बताया कि हमारे लिए अमेरिकी संयुक्त राज्य में एक परिवार के रूप में रहना संभव नहीं था। दोनों ने मुझे बताया कि वे मुझे अमेरिकी संयुक्त राज्य के लिए स्थाई निवास प्रमाण नहीं दिला सकते थे और निर्णय को उलटना असंभव था क्योंकि कानून में स्वीकार्य अपवाद मेरी विशेष स्थिति के कारण मुझपर लागू नहीं होते थे। उन्होंने मुझसे कहा कि वे ज्यादा से ज्यादा, मुझे और समय देने के लिए इस प्रक्रिया को थोड़ा और खींच सकते थे। जबकि मैंने एक स्वयंसेवक के रूप में अपना नियमित काम करना जारी रखा, मुझे तीन साल से अधिक समय तक आमदनी के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना पड़ा। मैंने इस समय को एक-एक दिन करके और अपने दर्द और भ्रम के बीच में उसकी ज्योति की ओर देखकर कि वो क्या चाहता है मैं करूँ बिताया। आप्रवासन अदालत में प्रत्येक उपस्थिति और निराशा लेकर आई क्योंकि तब निर्णय और कई महीनों के लिए टल जाता। अंधकार का समय ऐसा प्रतीत होता था कि वह कभी खत्म नहीं होगा।

 

अदालत की चौथी पेशी में, मैं टूट गया और मैंने न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वह मेरे परिवार की असहनीय कठिनाई के कारण इसे लंबे समय तक जारी न रहने दें। यह एक भयानक अनुभव था क्योंकि इससे हमारे दो बच्चों के लिए भी अनिश्चितता और अवसाद पैदा हुआ। यह एक लंबी लड़ाई रही थी, और हम सभी बहुत थके हुए थे। तभी उसी समय के अंत में, अदालत की कार्यवाही में एक मोड़ आया, और परमेश्वर ने एक आश्चर्य-कर्म के द्वारा पूर्ति की जिससे मुझे निवासी वीजा मिला जिसकी मुझे आवश्यकता थी। यह एक अप्रत्याशित मोड़ था, एक उल्लेखनीय निर्णय। मेरे आप्रवासन वकील, जिन्हें कई वर्षों का अनुभव था, उन्होंने कहा कि उन्होंने इस तरह की स्थिति में ऐसा सकारात्मक फैसला कभी नहीं देखा है। हमने कहा कि यह हमारा आश्चर्य-कर्म था, और वे सहमत थे।

 

प्रश्न 2) आपके जीवन के कौन से वर्ष अन्धकार भरे रहे हैं और क्यों? ऐसा क्या हुआ जो ज्योति लेकर आया?

 

ज्योति बनाम अन्धकार

 

जब ज्योति प्रकट होती है तो अक्सर साम्राज्यों का संघर्ष होता है। उस दिन की शुरुआत में झोपड़ियों के पर्व पर, यहूदियों ने यीशु के जीवित जल होने की गवाही को सुना (यहुन्ना 7:38), व्यभिचार में पकड़ी गई महिला की ओर प्रेम और दया को देखा (यहुन्ना 8:1-11), और अब वे अपने बारे में मसीह की गवाही को सुनते हैं, यह कि वो जगत की ज्योति है। जगत की ज्योति होने का उसका बयान यहूदी नेतृत्व से एक और हमला लेकर आया। जब परमेश्वर की ज्योति प्रकट होती है, तो जो लोग परमेश्वर द्वारा बुलाए गए हैं वे ज्योति में आ जाएंगे; जबकि वे लोग जो ज्योति के विरुद्ध खुद को स्थापित कर चुके हैं वे वापस अन्धकार में चले जाएंगे:

 

19और दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। 20क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। 21परन्तु जो सच्चाई पर चलता है वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं। (यहुन्ना 3:19-21)

 

ऐसे लोग हैं जो ज्योति की ओर खिंचे चले आते हैं, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो ज्योति से दूर होते चले जाते हैं। कई कारणों से, कुछ लोग एक समय के लिए पीछे हो जाते हैं, लेकिन बाद में वे ज्योति के पास इसलिए आते हैं क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा देखा था जो उन्हें आकर्षित करता है। मिसाल के तौर पर, शाऊल मसीही धर्म का उत्पीड़क, यानी वह जो प्रेरित पौलुस बन गया, जब वह पथराव के द्वारा स्तिफनुस की मृत्यु का साक्षी हुआ और उसने उसे परमेश्वर की महिमा से चमकते चेहरे के साथ अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करते देखा। "तब सब लोगों ने जो सभा में बैठे थे, उस पर दृष्टि गड़ाई तो उसका मुख स्वर्गदूत का सा देखा” (प्रेरितों 6:15)। परमेश्वर ने उस समय से शाऊल में अपना कार्य करना शुरू कर दिया। जब प्रभु ने दमिश्क के मार्ग पर शाऊल के साथ सामना किया, तो उसने उससे कहा, "हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है” (प्रेरितों 26:14)। पैना एक छोर से नुकीली लंबी छड़ी होती थी जिससे बैलों को खड़े रहने के बजाय काम करने के लिए उकसायाँ जाता था। यहोवा शाऊल/पौलुस को उसके अंदरूनी भागों में मसीह में विश्वास को लेकर उसके विचारों के बारे में उकसा रहा था। उकसाना उस ज्योति का परिणाम था जिसे शाऊल ने स्तिफनुस के चेहरे पर देखा था।

 

जब आप अपने विश्वास के लिए खड़े होते हैं और यीशु मसीह की ज्योति और आनंद को अपने द्वारा चमकने देते हैं, तो आप कुछ ऐसे लोगों को पाएंगे जो रुचि रखते हैं और अधिक जानने के लिए भूखे और प्यासे हैं, लेकिन आप कई ऐसे लोगों को भी पाएंगे जो प्रारंभ में संकोच करते हैं और वो जो बड़े क्रोध के साथ प्रतिउत्तर देते हैं। जब पृथ्वी पर उसकी सेवकाई ऐसे स्थान पर पहुँच गई जब उसे जगत के पापों के लिए बलिदान होना था, तब हम यीशु के जीवन में इसे सचित्र देखते हैं। यहाँ इस खंड में, हम फरीसियों और उस समय के धार्मिक अग्वों के बीच अस्वीकृति देखते हैं। अपनी उत्कृष्ट समीक्षा में, चक स्विंडॉल अंधकार के उन चरणों को सामने लाते हैं जिससे होकर वे लोग गुज़रते हैं जो मसीह को जगत के ज्योति के रूप में नकारते हैं। यह अस्वीकृति से शुरू हुआ, फिर आरोप, और अंत में हिंसा में समाप्त हुआ:

 

1. विरोधाभास। "तेरी गवाही ठीक नहीं(पद 13)

2. मानवद्वेषवाद। "तेरा पिता कहाँ है? हम व्यभिचार नहीं जन्में(8:19, 41)

3. इनकार। हम कभी किसी के दास नहीं हुए" (पद 33)

4. अपमान। "तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है" (पद 48)

5. व्यंग। "क्या तू उस से बड़ा है?" (पद 53)

6. हिंसा। "उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए(पद 59)

 

प्रश्न 3) क्या आपने कभी किसी को उनके अंधकार में प्रतिउत्तर देते पाया है? क्या आपको कभी यह एहसास हुआ कि शैतान एक मित्र के माध्यम से बात करता है? अपने विचारों को साझा करें; उन्होंने यीशु को इस प्रकार की प्रतिक्रिया क्यों दी?

 

मसीह को अस्वीकृत करने के नतीजे

 

21उसने फिर उनसे कहा, “मैं जाता हूँ और तुम मुझे ढूंढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे: जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 22इस पर यहूदियों ने कहा, “क्या वह अपने आप को मार डालेगा, जो कहता है; कि जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते?” 23उसने उनसे कहा, “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं। 24इसलिये मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूँ, तो अपने पापों में मरोगे।” 25उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है?” यीशु ने उनसे कहा, “वही हूँ जो प्रारम्भ से तुमसे कहता आया हूँ। 26तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैंने उससे सुना है, वही जगत से कहता हूँ।” 27वे यह न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है। 28तब यीशु ने कहा, “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे पिता ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूँ। 29और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ, जिससे वह प्रसन्न होता है।” 30वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतेरों ने उस पर विश्वास किया। (यहुन्ना 8:21-30)

 

 

मैं पाठक को याद दिलाना चाहता हूँ कि यीशु सामान्य जनसंख्या से नहीं बल्कि यहूदी धार्मिक नेतृत्व से बात कर रहा है जो उसके विरोध में है। उसने उनसे कहा, "जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं सकते(पद 21) जब तक पश्चाताप हो, तब तक उसका विरोध करने वाले लोग अपने पापों में मर जाएंगे, क्योंकि परमेश्वर तक एक ही मार्ग है, अर्थात प्रतिस्थापना का मेमना, प्रभु येशु मसीह। परमेश्वर की ज्योति उनके सामने थी, लेकिन वे उस ज्योति को खारिज करते हुए जो परमेश्वर मसीह में उनके पास लाया था, वापस अन्धकार में चले गए। उसने उनसे कहा कि वे उसे ढूंढेंगे (पद 21), अर्थात यह ऐसा है कि आज भी यहूदी लोग अपने मसीहा की खोज कर रहे हैं। अधिकांश यहूदी अभी भी यह मानने से इनकार करते हैं कि वह उनके पास आया है, लेकिन एक दिन आने जा रहा है जब सच्चाई के प्रति कई आँखें खोली जाएंगी कि वास्तव में यीशु ही उनका मसीहा है, जो उनके पास ज्योति लेकर और उनके लिए जीवन का सोता होने के लिए आता है।

 

जीवन में हमारे पास कई अवसर आते हैं। पैसा कमाने, व्यवसाय में जाने, अपने काम में एक कदम उठाने, खुद को शिक्षित करने आदि के अवसर हैं, लेकिन व्यक्तिगत अवसर शायद वापस न आएं। मसीह का विरोध करने वाले फरीसियों के पास उस समय मसीह की ज्योति में आने का मौका था, लेकिन उन्होंने निमंत्रण के प्रति अपने हृदयों को कठोर करने का चुनाव किया। मसीह के प्रेम और सुसमाचार के लिए अपने हृदय को बंद करने में समस्या यह है कि अगर हमें एक और अवसर मिलता है, तो आवाज और शांत हो जाती है क्योंकि हमारे हृदय उसके प्रति कठोर हो गए हैं। परमेश्वर को अक्सर हमारे हृदय को नरम बनाने के लिए हमें तोड़ना पड़ता है ताकि हम उसका वचन प्राप्त कर सकें।

 

यीशु ने उनसे कहा कि वे अपने पाप में मर जाएंगे (पद 21)। उसने कहा कि वह दूर जा रहा है और एक समय आएगा जब वे उसकी तलाश करेंगे और तब बहुत देर हो जाएगी, क्योंकि उद्धार का द्वार बंद हो जाएगा, और वे प्रवेश नहीं कर पाएंगे। बहुत से लोग मानते हैं कि यह जीवन ही सब कुछ है और जब वे मर जाते हैं, तब सब खत्म! परमेश्वर के शत्रु, शैतान को इस तरह की सोच कितनी भाती है! हालाँकि, वास्तव में जीवन ऐसा नहीं है। हम अनन्त प्राणी हैं जो परमेश्वर जैसे निर्धारित करता है केवल एक निश्चित समय के लिए शरीर में रहते हैं। हर दिन उद्धारकर्ता को जानने और उसकी छवि और चरित्र में रूपांतरित होने का मौका होता है (2 कुरिन्थियों 3:18, रोमियों 8:29)।  

 

यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके सामने उपस्थित लोग वास्तव में जानते थे कि वे ज्योति को अस्वीकार करने में क्या कर रहे थे, उसने दोहराया। "इसलिये मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूँ, तो अपने पापों में मरोगे” (पद 24)। वह स्पष्ट रूप से इस्राइल के पाप लेने वाला मसीहा होने का दावा कर रहा था, यानी वह जिसके विषय में उनके पापों को दूर करने के लिए भविष्यवाणी की गई थी, वो पीड़ित सेवक, जिसके विषय में 500 वर्ष पहले यशायाह ने अध्याय 53 में बात की थी। अपने पापों में मरने और पाप के लिए परमेश्वर के बेदाम भुगतान को अस्वीकार करने का अर्थ है कि आपको अपने अनन्त जीवन के साथ भुगतान करना होगा, हमेशा के लिए अस्वीकृति। यह कितना दुख:द है! इब्रानियों की पुस्तक के लेखक ने इसे इस तरह लिखा, "जीवते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है(इब्रानियों 10:31) ऐसे लोग हैं जो विश्वास करते हैं कि, यदि वे कलीसिया के उठाए जाने के समय छूट जाएं, तो एक दूसरा मौका भी होगा, फिर भले ही यह आखिरी दिनों के उपद्रव के दौरान का कठिन समय ही क्यों न हो। मेरा मानना ​​है कि यह एक झूठी आशा है जो किसी व्यक्ति के ऐसा संदेश स्वीकार करने पर बहुत खतरनाक होगा।

 

23और किसी ने उससे पूछा; “हे प्रभु, क्या उद्धार पाने वाले थोड़े हैं?” 24उसने उनसे कहा, “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि बहुतेरे प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे। 25जब घर का स्वामी उठकर द्वार बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े हुए द्वार खटखटाकर कहने लगो, ‘हे प्रभु, हमारे लिये खोल दे’, और वह उत्तर दे कि ‘मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कहाँ के हो?’ 26तब तुम कहने लगोगे, कि हमने तेरे सामने खाया पीया और तूने हमारे बजारों में उपदेश किया। 27परन्तु वह कहेगा, ‘मैं तुमसे कहता हूँ, मैं नहीं जानता तुम कहाँ के हो, हे कुकर्म करनेवालो, तुम सब मुझसे दूर हो।’ 28वहाँ रोना और दांत पीसना होगा; जब तुम इब्राहीम और इसहाक और याकूब और सब भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर के राज्य में बैठे, और अपने आप को बाहर निकाले हुए देखोगे। 29और पूर्व और पश्चिम; उत्तर और दक्षिण से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। 30और देखो, कितने पिछले हैं वे प्रथम होंगे, और कितने जो प्रथम हैं, वे पिछले होंगे।” (लूका 13:23-30)

 

जब तक उद्धार का द्वार खुला है, हमें ज्योति प्राप्त करने का अवसर ले लेना चाहिए। मुझे उपरोक्त खंड में इस बात की थोड़ी सी भी उम्मीद नहीं मिलती कि आज उपलब्ध संभावनाएं मसीह के अपनी कलीसिया के लिए आने के समय भी खाली होंगी। एक बार घर का स्वामी उठ जाएगा, उद्धार का द्वार बंद हो जाएगा, फिर कभी नहीं खुलेगा! कई लोग इस बात को समझते हुए कि एक परमेश्वर है और हम सभी के सामने अनंत काल है, उस दिन प्रवेश करने की कोशिश करेंगे। परमेश्वर की आपके पापों को क्षमा करने की पेशकश को कल तक के लिए न डालें, क्योंकि पाप के पास आपके हृदय को कठोर करने का एक तरीका है। यदि आज आपका हृदय उसके लिए खुला है, तो इससे अच्छा कोई कारण नहीं है कि क्या क्यों आपको अपना पूर्ण और बेदाम उद्धार नहीं प्राप्त करना चाहिए? आपको क्या रोक देगा? अंधकार में वापस खिंचे जाना पागलपन है (सभोपदेशक 9:3)

 

प्रश्न 4) यीशु का क्या अर्थ था जब उसने कहा, "जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ?" (यूहन्ना 8:28)

 

यह संभव है कि वही लोग जो उसके प्रेमपूर्ण और दयालु शब्दों के प्रति प्रतिरोधी थे, उनमें से बहुत से उसकी मृत्यु की सजा को मंजूरी देते हुए क्रूस के चारों ओर रहे होंगे। क्रूस के आस-पास, वे थे जिनके हृदय उसको अस्वीकार करते हुए कठोर हो गए थे: लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी ठट्ठा कर करके कहते थे, कि इसने औरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले” (लूका 23:35)। लेकिन कल्पना करें कि यह कैसा होगा जब उसने क्रूस पर से जोर की आवाज में कहा, "पूरा हुआ" (यहुन्ना 19:30)। मैं सोचता हूँ कि इन लोगों ने तब क्या सोचा होगा जब उन्होंने उसकी मृत्यु पर भूकंप का अनुभव किया? सारी भूमि पर अंधकार था, और मंदिर का वो पर्दा जिसने मनुष्य को परमेश्वर की उपस्थिति से दूर कर दिया था, ऊपर से नीचे तक दो टुकड़ों में फट गया। उनके चारों ओर कब्रें खुल गयीं, और कई पवित्र लोग जी उठे, और अपनी कब्रों से बाहर निकलकर सबके देखने के लिए यरूशलेम में चले (मत्ती 27:50-54)। क्या आप ऐसे दृश्य की कल्पना कर सकते हैं? जो लोग यीशु पर नजर रख रहे थे वे भय से भरे हुए थे, और सूबेदार ने कहा, "सचमुच, यह परमेश्वर का पुत्र था!" मुझे लगता है कि उनमें से कई, आखिरकार जानते थे कि वो मसीह है। क्या आप अभी तक इस एहसास तक पहुँच पाए हैं? आप विश्वास करने के लिए क्या लेंगे?

 

यीशु, मानव रूप में परमेश्वर, आपके और मेरे जैसे पापियों को बचाने के लिए जगत में आया। वो हमारे पाप का कर्ज चुकाने आया। वह आपको और मुझे अपराध के दोष और शर्मिंदगी से छुटकारा देने और हमें अनंत जीवन का उपहार देने के लिए आया। मुझे भरोसा है कि आपने भी देखा होगा कि, एक पवित्र परमेश्वर के सम्मुख, आप खुद को एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता में देखते हैं। ज्योति जगत में आई है, लेकिन क्या आप जगत की ज्योति से ज्यादा अंधकार से प्रेम करते हैं? उन्होंने कहा है कि, सुसमाचार पर प्रतिक्रिया देने और जीवन का उपहार प्राप्त करने के लिए आपको अपने जीवन में उसका स्वागत करने की आवश्यकता है:

 

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। (यहुन्ना 1:12)

 

देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ। (प्रकाशितवाक्य 3:20)

 

क्या आप आज उसे अपने जीवन के उद्धारकर्ता और स्वामी के रूप में ग्रहण करेंगे? अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को सरल प्रार्थना के साथ समर्पित करें, जैसे कि निम्नलिखित:

 

प्रार्थना: "पिता, मैंने आपके नियम को तोड़ा है, और मेरे पापों ने मुझे आप से अलग कर दिया है। मुझे सचमुच खेद है, और मैं अपने पापपूर्ण जीवन से आपकी ओर मुड़ना चाहता हूँ। कृपया मुझे क्षमा करें और मुझे अपने साथ चलने में मदद करें। मैं विश्वास करता हूँ कि आपका पुत्र, यीशु मसीह, मेरे पापों के लिए मरा, मृतकों में से जी उठा, जीवित है, और मेरी प्रार्थना को सुनता है। मैं आपको आमंत्रित करता हूँ प्रभु यीशु, कि आप मेरे जीवन के स्वामी बनें, और इस दिन के बाद से आप मेरे हृदय में राज और शासन करें। कृपया मुझे अपने पवित्र आत्मा से भरें ताकि मैं आपकी आज्ञा मान सकूँ और आपकी इच्छा पूरी कर सकूँ। यीशु के नाम में, मैं प्रार्थना करता हूँ, आमीन।"

 

कीथ थॉमस

नि:शुल्क बाइबिल अध्यन के लिए वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

ई-मेल: keiththomas7@gmail.com

 

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And this gospel of the kingdom will be proclaimed throughout the whole world as a testimony to all nations, and then the end will come.
Matthew 24:14

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