11. Jesus the Life Giver
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11. यीशु, जीवन का दाता
शुरुआती प्रश्न: आपने अपने माता या पिता को देख क्या स्वाभाव या आदतें पकड़ी हैं?
16इस कारण यहूदी यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह ऐसे ऐसे काम सब्त के दिन करता था। 17इस पर यीशु ने उन से कहा, कि मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ। 18इस कारण यहूदी और भी अधिक उसे मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था। 19इस पर यीशु ने उनसे कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। 20 क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो-जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इन से भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो। 21क्योकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है उन्हें जिलाता है। 22और पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है। 23इसलिये कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें: जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता। 24मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है। 25मैं तुम से सच सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिस में मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएंगे। 26क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उस ने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे। 27वरन उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है। 28इससे अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। 29जिन्होंने भलाई की है वे जीवन के पुनरूत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है वे दंड के पुनरूत्थान के लिये जी उठेंगे। 30मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ। (यहुन्ना 5:17-30)
धर्मी जन सताए जाएंगे
मैंने अपनी अमरीकी पत्नी, सैंडी से 1980 में विवाह किया था। मेरे वीसा का आवेदन 1971 और 1976 में चरस से सम्बंधित दो मामूली सज़ाओं के विषय में सच्चाई बताने के कारण जटिल बनने के पश्चात्, हमने यह इच्छा रखते हुए कि परमेश्वर हमें इंग्लैंड में प्रयोग करेगा, अमेरिकी सयुंक्त राष्ट्र छोड़ दिया। हमने अपने निवासीय वीसा के अस्वीकारे जाने के निर्णय के विरुद्ध लड़ने के लिए किसी वकील या कुछ अन्य नहीं नियुक्त किया; हमने बस स्वीकार किया कि परमेश्वर चाहता है कि हम इंग्लैंड में रहें। हमारे हृदयों में हमें परमेश्वर की सेवा उसके दिखाए किसी भी मार्ग में करने की थी। हम हार्विच, एसेक्स, इंग्लैंड में मेरे ग्रह-निवास स्थान वापस लौटे, और हमने हार्विच के ही दो अच्छे मित्रों के साथ कलीसिया स्थापना का कार्य शुरू कर दिया। हमने संबंधों में अपने विश्वास को बाँटना सीखा, और सड़कों, चाय की दुकानों, और हर तरह की जगहों और परिस्थितियों में बातचीत की शुरुआत करना भी। मेरे हार्विच के ग्रह-निवास स्थान में इंग्लैंड के पूर्वी तट की सबसे व्यस्त बंदरगाह थी, जहाँ हार्विच बंदरगाह से समूचे इंग्लैंड के अन्य किसी भी बंदरगाह से ज़्यादा जहाज़ आते जाते थे। एक बंदरगाह अपने दोनों तरफ के और हार्विच से आगे दो नदियों तक के पाँच अलग-अलग पोताश्रयों को अपनी सेवा देता था। यूरोप के विभिन्न पोताश्रयों से प्रतिदिन सैकड़ों लोगों का आगमन होता। एक स्थान जहाँ वो जाने चाहते थे वह था रेल यात्रा से लंदन। बहुत कम ही लोग हार्विच आन चाहते थे, आखिरकार यह सोलह हज़ार लोगों का छोटा सा शहर ही तो था। हॉलैंड से जहाज़ सुबह करीब 6:30 बजे तट पर पहुँचता और लोग लगभग सुबह 7:00 बजे उससे उतरना शुरू करते और फिर ठीक सुबह आठ बजे निकलने वाली रेल में बैठ जाते। सैंडी और मैं इस ट्रेन पर जा लोगों को मसीह के बारे में बात करते उद्धार के विषय पर पत्रियाँ बाँटते थे। अक्सर हमारी काफी रुचिकर बातचीत होतीं, लेकिन साथ ही कुछ विरोध भी। एक दिन हें एक ऐसी स्त्री से फ़ोन आया जो हमसे उस सुसमाचार की पत्री के विषय में बातचीत करना चाहती थी जो हमने उस दिन लंदन की रेल में बैठे उसके पुत्र को दी थी। यह जन हार्विच में रहती थीं। जब उस स्त्री ने हमें अपने घर के भीतर तक आने का निमंत्रण नहीं दिया तब मैं जान गया कि कुछ बात तो है। उसने हमें अपने घर के बाहर घास पर बैठाया और अपने बेटे के साथ, जिसके विषय में वो आशा रख रही थी कि वह भी उसकी ही तरह यहोवा साक्षी बन जाएगा, सुसमाचार बाँटने के लिए हमपर टूट पड़ी। इस स्त्री को यह बात पसंद नहीं आई कि हम यह बताते हुए कि यीशु ही परमेश्वर का आलौकिक पुत्र, इजराइल का लम्बे समय पहले प्रतिज्ञा किया हुआ मसीहा, और एकमात्र वह जो उसके पुत्र को सच्चा जीवन दे सकता है, सुसमाचार के तथ्यों की गवाही उसके पुत्र को दे रहे हैं। अपने घर के बाहर घास पर बैठ हमारे उपर हावी होते हुए उसने अपना आपा खो दिया। हमने विनम्रता से उसके साथ वचन बाँटने की कोशिश की, लेकिन वो अपने धार्मिक शिक्षकों के द्वारा इतनी अंधी की जा चुकी थी कि वह अपनी यहोवा विटनेस बाइबिल और उसके गलत अनुवादों के सिवाय और कुछ पढने के लिए खुली नहीं थी।
इस खंड में जिसका हम आज अध्यन कर रहे हैं, उस समय की यहूदी धार्मिक पुलिस को सब्त के दिन बेतहसदा के कुण्ड पर यीशु द्वारा उस बीमार की चंगाई करना बिलकुल नहीं भाया। धार्मिक यहूदी चंगाई को काम मानते थे। केवल इतना ही नहीं, यीशु ने तो उस आदमी को अपनी खाट उठा कर चलने को भी कहा था (यहुन्ना 5:8), जो कि एक और ऐसा कार्य था जिसे काम समझा जाता था (यहुन्ना 5:10)। एकमात्र व्यक्ति जिसका सब्त के दिन काम करना जायज़ था वह था परमेश्वर! वो तो एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकता क्योंकि संसार को अभी भी उसकी सँभालने वाली सामर्थ की आवश्यकता है। जब इन लोगों के यीशु पर एक भला काम करने पर उस पर आक्रमण किया तो यीशु नहीं डरा। साहसता पूर्ण, उसने उनका सामना करते हुए उन्हें उत्तर दिया; “मेरा पिता अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ।” (पद 17) इन शब्दों ने उन्हें दो कारणों से और भी क्रोधित कर दिया: 1) वह परमेश्वर को एकांतिक रूप से अपना व्यक्तिगत पिता कह रहा था। उसने “हमारा पिता” नहीं, लेकिन “मेरा पिता” कहा। 2) यह कहना कि वह अपने पिता के साथ मिलकर काम कर रहा था का अर्थ यह होगा कि वो स्वयं परमेश्वर है, जो वह है भी! वह तो केवल एक अद्भुत साहस-पूर्ण तरीके से उन्हें सत्य बता रहा था। वह जानता था कि उन शब्दों को बोलने का अर्थ सताव और गुस्से को आमंत्रित करना होगा, लेकिन उसका आचरण सत्य बोलना था और फिर जो उसका असर होगा, वह तो होगा ही। वह अपने उद्देश्य को कहने में शरमाएगा नहीं – अपने पिता की इच्छा को पूर्णत: करना।
यीशु ने कहा कि जो धर्मी जन हैं वह सताए जाएंगे:
जो बात मैंने तुम से कही थी, कि दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, उसको याद रखो: यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे। (यहुन्ना 15:20)
जब परमेश्वर का आत्मा कार्य करता हुआ आगे बढ़ता है तो अक्सर राज्यों में टकराव हो जाता है। इससे चकित न हों। जब उसका राज्य तहस-नहस हो रहा होगा और वह उन लोगों को खोता चला जाएगा जो यीशु को देख रहे हैं और उसकी उद्धार और छुटकारे की सामर्थ को जान रहे हैं, तब शैतान, परमेश्वर के राज्य का शत्रु इसे हलके में नहीं लेगा। अक्सर प्रतिक्रिया होती है – इस संसार का आत्मा ऐसे लोगों को प्रयोग करने के द्वारा प्रतिउत्तर देगा जिनके बारे में हम कभी कल्पना भी नहीं करेंगे कि वह दुष्ट के साधन हैं। यहाँ तक कि पतरस, यीशु का चेला भी, अनजाने में, यीशु को क्रूस पर न जाने के लिए राज़ी करने की कोशिश में शैतान का मुखपत्र बन गया था। (मत्ती 16:22-23) लेकिन याद रखिये, लोग कभी हमारे शत्रु नहीं होते (इफिसियों 6:12), बस केवल इतना कि आत्मा उन्हें परमेश्वर की आत्मा के विरुद्ध कार्य करने और विरोध में चलने के लिए प्रयोग करता है। (इफिसियों 2:2)
क्या कभी आपके मित्रों, परिवार या अन्य लोगों ने आपको आपके विश्वास को त्याग देने के लिए समझाने की कोशिश की है? क्या आपने कभी विरोध का सामना किया है जब आपको अपने विश्वास के लिए मोर्चा खोलना पड़ा था? एक दूसरे के साथ संक्षिप्त में बाँटें क्या हुआ था।
उसकी सामर्थ का रहस्य
पिछले अध्यन में, जब हमने बेतहसदा के कुण्ड पर चंगाई के विषय में बातचीत की थी, तब हमने पौलुस की फिलिपियों की कलीसिया को दी इस शिक्षा के विषय में विस्तार किया था कि कैसे जब उसने मानव रूप धारण कर, यीशु ने स्वयं को न के बराबर कर दिया। अन्य शब्दों में, यीशु ने परमेश्वर होते हुए अपनी सामर्थ के द्वारा चंगाई नहीं की; वो आत्मा की सामर्थ को अपने द्वारा कार्य करने पर पूर्णत: निर्भर था। यहाँ इस खंड में हम उसकी सामर्थ का रहस्य पाते हैं, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। (पद 19) हमें भी मसीही होने के नाते हर एक परिस्थिति का सामना करते हुए निरंतर यह प्रश्न पूछना चाहिए, “प्रभु, इस परिस्थिति में तू क्या चाहता है कि मैं करूँ?” कभी-कभी जब हम ऐसा कुछ कहते या करते हैं जो हम सोचते हैं प्रभु हमसे करने को कह रहा है, लेकिन फिर कुछ नहीं होता, तो हो सकता है हम मुँह के बल गिर जाएँ। फिर भी हमें परिणाम परमेश्वर पर छोड़ कर उसके आत्मा की अगवाई के प्रति आज्ञाकारी होना है। जितना ज्यादा हम उसकी वाणी और अगवाई के प्रति जागरूक रहना सीखता हैं, उतना ज्यादा ही हम उसे अपने द्वारा कार्य करते देखेंगे। हमें आत्मा की उस कोमल फुसफुसाहट (1 राजा 19:12) को सुनना होगा जो हमारे उसके साथ चलने और उसकी वाणी के प्रति आज्ञाकारी होने के साथ-साथ और स्पष्ट होती जाएगी। याद रखिये कि परमेश्वर का आत्मा कभी उसके वचन के विरोध में नहीं होता और वह हमेशा ऐसा प्रतीत होता है जैसा यीशु की आत्मा कहेगा। यीशु ने कहा कि पिता और पुत्र का यह सम्बन्ध एक दूसरे के लिए प्रेम के आधार पर कार्य करता है, क्योंकि पिता पुत्र से प्रीति रखता है और जो-जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है। (पद 20) जब एक व्यक्ति वाकई परमेश्वर के साथ प्रेम में है, तब आत्मा का फल उनके जीवन में और उनके जीवन के द्वारा बहता हुआ औरों को छुएगा।
यीशु ने जानबूझकर अपने दोष लगाने वालों का सामना ऐसे आग लगाने वाले शब्दों से क्यों किया जिनसे वह जानता था उनका गुस्सा भड़क जाएगा?
कुछ ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि यीशु ने कभी नहीं कहा कि वो परमेश्वर था या है। मुझे नहीं पता कि उन्हें यह विचार कहाँ से मिलता है क्योंकि वचन के इस खंड में स्वयं यीशु यह स्पष्ट कर रहा है कि वो कौन है। धार्मिक यहूदी तो निश्चित समझ गए थे कि वह कह रहा है कि वो स्वयं परमेश्वर के बराबर है। इस कारण से, वो अब उसे मारने के लिए और अधिक कोशिश कर रहे थे। (पद 18) यीशु ने परमेश्वर के साथ समानता के पाँच दावे निर्भीकता से किये:
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वह अपने व्यक्तित्व में परमेश्वर के समान है (पद 17 और 18)
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वह अपने कार्यों में परमेश्वर के समान है (पद 19 और 20)
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वह अपने जीवन का दाता होने में परमेश्वर के समान है (पद 21 और 18)
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वह अपने न्याय में परमेश्वर के समान है (पद 22)
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वह अपने सम्मान में परमेश्वर के समान है (पद 23)
हमें इन सभी दावों को विस्तार से देखने की आवश्यकता नहीं है लेकिन आइये हम यीशु के जीवन का दाता होने के दावे को अच्छे से देखें।
पुत्र जीवन का दाता होने में परमेश्वर के समान है
जब मैं प्रारम्भिक स्कूल (7-11 वर्ष का समूह) का बालक था मुझे घर से चार-पाँच सौ कदम चल स्कूल जाना याद है। रास्ते में मैं साल्वेशन आर्मी के गिरिजाघर के सामने से गुज़रता था। भवन के एक तरफ एक पोस्टर पर यह शब्द थे, “क्या आप वाकई में जीवित हैं?” वहाँ उस कथन की कोई व्याख्या नहीं थी और बचपन में मुझे यह कथन बहुत ही हास्यास्पद लगता था। उसे पढ़ पाने के लिए तो मुझे जीवित होना ही पड़ेगा! उस कथन का तुक क्या था? मुझे तो यह कथन यह दर्शाता था कि मसीही लोग कितने उपहास्य हो सकते हैं। जब मैं आगे चलकर मसीही बना और वचन पढ़ने लगा, मैंने अंततः समझ लिया कि बिना प्रभु के द्वारा जीवन दिए जाने के अनुभव के, हम अपने पापों में मृत हैं और परमेश्वर के जीवन से विहीन। पौलुस, इफिसुस की कलीसिया को लिखते हुए, कहता है कि जब मैं इस संसार की रीती पर चलता और अपने लिए जीता था, मैं मरा हुआ था:
1और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 2जिनमें तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है। (इफिसियों 2:1-2)
अब मैं साल्वेशन आर्मी के सन्देश को समझ सका! कुछ ही वचनों के बाद, यह खंड बताता है कि परमेश्वर ने हमें जिलाया, जबकि हमारी आत्मा, हमारे अंदरूनी गठन का वह हिस्सा जो परमेश्वर के साथ जुड़ने की क्षमता रखता है, तब तक मृत था जबतक मसीह हमारे जीवन में नहीं आया। पौलुस कहता है:
4.....अपने उस बड़े प्रेम के कारण,जिस से उस ने हम से प्रेम किया। 5जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) .....8क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। 9और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। (इफिसियों 2:4-5, 8-9)
ध्यान दीजिये कि यह जीवन जो हमें परमेश्वर द्वारा दिया जाता है कैसे उपलब्ध होता है – इसे परमेश्वर के दान के रूप में दिया जाता है। अनुग्रह शब्द का क्या अर्थ है? अनुग्रह शब्द का अर्थ अयोग्य कृपा है। इसका अर्थ है कि आप इसे कमाने के लिए कुछ नहीं कर सकते; यह जीवन का एक वरदान है जो आप जैसे हैं वैसे ही आपको विश्वास और आपके लिए क्रूस पर मसीह के कार्य पर भरोसा करने पर दिया जाता है। यीशु ने अन्य स्थान पर कहा, 10चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं। (यहुन्ना 10:10) यीशु जीवन के दाता के रूप में आया। आपने अपने जन्म के समय अपनी माँ से जीवन प्राप्त किया, लेकिन आपका वह अंदरूनी भाग जो आपको परमेश्वर के साथ जोड़ता है. मृत जन्मा था। यीशु निकोदिमुस को कहता है कि इस नए जीवन को प्राप्त करने के लिए उसे नए सिरे से जन्म लेना होगा:
3मैं तुझ से सच सच कहता हूँ, यदि कोई नये सिरे से न जन्में तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता। 4नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है? 5यीशु ने उत्तर दिया, कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। 6क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। (यहुन्ना 3:3-6)
यीशु यह कह रहा है कि केवल शरीर ही शरीर को जन्म दे सकता है, लेकिन अगर एक व्यक्ति अनंत जीवन चाहता है, तो उसे यीशु के पास आकर आत्मिक पुन: जन्म लेना होगा, परमेश्वर का जीवन जो उसे दिया जाता है। यह जीवन एक व्यक्ति को कलीसिया जाने से, परमेश्वर का भय मानने वाले माता पिता और भले कार्य करने के द्वारा प्राप्त नहीं हो सकता। यह केवल यीशु, जीवन के दाता, के पास आने के द्वारा ही दिया जा सकता है:
12परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। (यहुन्ना 1:12)
क्या आप अपने जीवन में उस स्थान पर आए हैं जहाँ आपने मसीह में नए जीवन को अनुभव किया है? अगर हाँ, औरों से बाँटें कि आपने मसीही बनने के बाद से क्या बातें अलग करनी शुरू कर दी हैं।
परमेश्वर का यह जीवन एक व्यक्ति को कैसे प्राप्त होता है?
यीशु, इस खंड में जिसका अध्यन हम कर रहे हैं, परमेश्वर द्वारा दिए इस जीवन को प्राप्त करने की योगयता स्पष्टता से बताता है:
24मैं तुम से सच सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है। (यहुन्ना 5:24)
इस जीवन का दिया जाना तब होता है जब एक व्यक्ति परमेश्वर के वचन को सुनता है। परमेश्वर के वचन में कुछ अति समर्थपूर्ण है जिसे हम अक्सर कम आंकते हैं। इसपर कई शताब्दियों से आक्रमण किया गया है और आम आदमी से अक्सर दूर रखा गया है, लेकिन जब परमेश्वर का वचन कहा या पढ़ा जाता है, एक स्त्री या पुरुष के भीतर कुछ होने लगता है। इब्रानियों की पुस्तक इसे इस प्रकार कहती है: 12क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दो-धारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, और गाँठ-गाँठ, और गूदे-गूदे को अलग करके, आर-पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जाँचता है। (इब्रानियों 4:12) जब इसे पवित्र आत्मा की प्रेरणा में एक व्यक्ति के प्राण को दिया जाता है तो यह सन्देश जीवित और प्रबल होता है। जब एक व्यक्ति इस वचन पर विश्वास कर मसीह के उद्धार के कार्य में भरोसा रखता है, कुछ अद्भुत होता है – परमेश्वर का आत्मा उसकी आत्मा को जागृत करता है और जैसा यीशु ने निकुदिमुस से यहुनना 3:3 में कहा वह व्यक्ति नए सिरे से जन्म लेता है।
विश्वास शब्द के लिए मूल बात मन फिराव है। इस शब्द के बाइबिल मायनों में, विश्वास करने पर अपने जीवन की दिशा को परमेश्वर को भाने वाली दिशा की ओर परिवर्तित करने की इच्छा के बिना, एक व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता। जब एक व्यक्ति विश्वास करने की योग्यताओं को हासिल कर लेता है, उसके भीतर कुछ हो जाता है। एक आत्मिक रेखा को मृत्यु से जीवन की ओर पार किया जाता है। (कुलुसियों 1:13) यीशु ने कहा कि उसके पास अनंत जीवन है। ध्यान दीजिये कि यह भविष्य काल में नहीं कहा गया; यह वर्तमान काल में है। यह सुनने और विश्वास करने पर कुछ ऐसा है हो अंदरूनी रूप से हो जाता है। आप इसे कतई न समझ पाएं, लेकिन परमेश्वर ने अनंत जीवन को प्राप्त करना इतना सरल कर दिया है कि एक बच्चा भी जीवन के इस वरदान को ग्रहण कर सकता है। परमेश्वर निस्संदेह यह कहता है कि अगर इन योग्यताओं को पूर्ण किया जाता है तो आपको अंतिम न्याय में अपराधी नहीं ठहराया जाएगा। यीशु ने एक बार फिर वर्तमान काल में कहा, “वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।” (पद 24) अनंत जीवन मृत्यु पर आस्मां में मिलने वाला हलवा नहीं है; यह जब आप अनंतकाल के जीवन की प्रतीक्षा करते हैं उस समय आपकी मेज़ पर रखी रसमलाई है! क्या आप इसपर विश्वास कर सकते हैं? क्या आप मसीह पर भरोसा कर अपना जीवन उसे देने के इच्छुक हो सकते हैं? अगर हाँ, तो आप नए सिरे से जन्म पाएंगे।
निर्णय के समय पर, कई लोग अक्सर अपने मन में युद्ध कर रहे होते हैं। आपके प्राण का शत्रु शायद फुसफुसाए कि ऐसा मत करो, मसीह को अपना जीवन मत दो। आपके प्राण के शत्रु से प्रेरित आपके मन में हर प्रकार के विचार और बहाने उत्पन्न होंगे। उसका विरोध करें! क्या आपका मसीह में भरोसा न करने का कोई अच्छा कारण है? जो हमने इस अध्यन के शुरू में कहा था उसे याद रखिए, एक व्यक्ति के जीवन को छूने के परमेश्वर के आत्मा के किसी भी कार्य को, शत्रु चुनौती देगा। आपको पूर्णत: परमेश्वर की सेवा करने से रोकने वाले अपने मन में चल रहे युद्धों से आप अवगत रहें।
आप में से जो लोग मसीही हैं, जब आपने पहली बार मसीह के दावों के बारे में सोचा था तब आपके मन में क्या संघर्ष हुए थे? अगर आप अभी तक मसीही नहीं हैं, आपके मन में वो कौन से विचार आते हैं जो आपके उस विश्वास के कदम को उठाने में रूकावट बनेंगे?
मृत उसके शब्द को सुन जिएंगे
फिर प्रभु उस समय के बारे में बात करता है जब मृत परमेश्वर के पुत्र के शब्द को सुनेंगे और वह जो सुनेंगे जिएंगे। (पद 25 और 28) वो यह कह रहा है कि न केवल वो उन लोगों को नया जीवन देगा जो मन फिरएंगे या उसकी ओर मुड़ेंगे, लेकिन यह कि वह वापस आएगा और वह लोग जिनके शरीर कब्र में जा चुके हैं, वह भी जिएंगे:
16क्योंकि प्रभु आप ही स्वर्ग से उतरेगा; उस समय ललकार, और प्रधान दूत का शब्द सुनाई देगा, और परमेश्वर की तुरही फूंकी जाएगी, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे। 17तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे, उन के साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे, कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। (1 थिस्लुनिकियों 4:16-17)
जब एक विश्वासी की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा और प्राण, उसका वह भाग जो दिखाई नहीं देता, प्रभु के पास चला जाता है जबकि उसकी देह दफना दी जाती है। पौलुस प्रेरित ने कहा कि जब हम मृत हो जाते हैं, हम शरीर में तो उपस्थित नहीं लेकिन उसके पुन: आगमन तक प्रभु के साथ उपस्थित हैं। (2 कुरिन्थियों 5:6-8) वेन ग्रुदेम, के पास अपनी पुस्तक सिस्टेमेटिक थिओलॉजी में इस विषय पर कहने के लिए कुछ रुचिकर है:
“आगे पौलुस 1 थिस्लुनिकियों में समझाता है कि वह जो मरे हैं और मसीह के साथ होने के लिए जा चुके हैं उस दिन वापस आ अपने नए शरीरों के साथ हो जाएंगे, क्योंकि मसीह उन्हें अपने साथ लाएगा: “क्योंकि यदि हम प्रतीति करते हैं, कि यीशु मरा, और जी भी उठा, तो वैसे ही परमेश्वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएगा।” (1 थिस्लुनिकियों 4:14) पौलुस न केवल इस बात पर जोर देता है कि परमेश्वर मसीह के साथ उनको लेकर आएगा जो मरे हैं; लेकिन वह इस बात पर भी जोर देता है कि, “जो मसीह में मरे हैं, वे पहिले जी उठेंगे।” (1 थिस्लुनिकियों 4:14) तो यह विश्वासी जो मसीह में मरे हैं मसीह से मिलने के लिए उठाए जाएंगे। (पौलुस 17वें वचन में कहता है “हम...उन के साथ बादलों पर उठा लिए जाएंगे कि हवा में प्रभु से मिलें, और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।”) यह तभी समझ आता है जब उन विश्वासियों के प्राण जो मसीह की उपस्थिति में गए हैं उसके साथ वापस आएंगे, और अगर उनके शारीर मृत होने से उनके प्राणों के साथ मिलाये जाएंगे, और फिर मसीह के साथ उठा लिए जाएंगे”1
भविष्यद्वक्ता दानिय्येल ने भी ऐसे समय के बारे में बताया जब मृत उठाए जाएंगे, कुछ अनंतकाल के जीवन के लिए जब वह अपने शरीरों से पुन: मिलन के लिए प्रभु यीशु के साथ आएंगे, केवल उनके शरीर अलग होंगे। वह शरीर जो उठेंगे उसकी महिमा प्रकट करते, मसीह की ज्योति से प्रकाशमान होंगे:
1उसी समय मीकाएल नाम बड़ा प्रधान, जो तेरे जाति- भाइयों का पक्ष करने को खड़ा रहता है, वह उठेगा। तब ऐसे संकट का समय होगा, जैसा किसी जाति के उत्पन्न होने के समय से लेकर अब तक कभी न हुआ होगा; परन्तु उस समय तेरे लोगों में से जितनों के नाम परमेश्वर की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वे बच निकलेंगे। 2 और जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिये, और कितने अपनी नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिये। 3 तब सिखानेवालों की चमक आकाशमण्डल की सी होगी, और जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे। 4 परन्तु हे दानिय्येल, तू इस पुस्तक पर मुहर करके इन वचनों को अन्त समय तक के लिये बन्द रख। और बहुत लोग पूछ-ताछ और ढूंढ- ढांढ करेंगे, और इस से ज्ञान बढ़ भी जाएगा। (दानिय्येल 12:1-4)
यह नई देह जो हमें दी जाएगी परमेश्वर के उस जीवन को प्रकाशमान करेगी जो हमें तब दिया जाता है जब हम मसीह को ग्रहण करते हैं। इस समय जब आत्मा हमें रूपांतरित कर रहा है हम नहीं देख पाते कि हमारे भीतर क्या चल रहा है, लेकिन हम यह जानते हैं कि जब वह आएगा, हमारी नई देह मसीह की देह के समान होगी: 2हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। (1 यहुन्ना 3:2) पौलुस इस जीवन के बारे में जो हमारे भीतर
सिस्टेमेटिक थिओलॉजी, वेन ग्रुदेम, ज़ोंडरवैन प्रकाशक, पृष्ठ 829
कार्यरत है और बताता है – यह जीवन जिसे हमें मसीह ने इस तरह से दिया है:
42मुर्दों का जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशमान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है। 43वह अनादर के साथ बोया जाता है, और तेज के साथ जी उठता है; निर्बलता के साथ बोया जाता है; और सामर्थ के साथ जी उठता है। 44स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्मिक देह भी है। 45ऐसा ही लिखा भी है, कि प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम, जीवनदायक आत्मा बना। 46परन्तु पहिले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इस के बाद आत्मिक हुआ। 47प्रथम मनुष्य धरती से अर्थात् मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है। 48जैसा वह मिट्टी का था वैसे ही और मिट्टी के हैं; और जैसा वह स्वर्गीय है, वैसे ही और भी स्वर्गीय हैं। 49और जैसे हम ने उसका रूप जो मिट्टी का था धारण किया वैसे ही उस स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे। 50हे भाइयों, मैं यह कहता हूँ कि मांस और लहू परमेश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते, और न विनाश अविनाशी का अधिकारी हो सकता है। 51देखो मैं तुम से भेद की बात कहता हूँ: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे। 52और यह क्षण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: कयोंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जांएगे, और हम बदल जाएंगे। 53क्योंकि अवश्य है, कि वह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले। 54और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया। (1 कुरिन्थियों 15:42-54)
ऊपर लिखे शब्दों में से क्या आपके लिए विशेष हैं? अगर आप जो कुछ भी हमने अध्यन किया है उसके आधार पर यीशु से कुछ माँग सकते, तो आप उससे क्या माँगेंगे? (अंत करने के लाइट प्रार्थना करें)
प्रार्थना: प्रभु, तू मुझे भीतर से रूपांतरित कर। मैं अपने आपको सम्पूर्णत: तुझे देता हूँ। आज मैं पीछे मुड़ वह सब बनना चाहता हूँ जिसके लिए तूने मुझे बुलाया है। मेरे जीवन में आ और मेरे पाप क्षमा कर। मैं तेरे आत्मा द्वारा नए सिरे से जन्म लेना चाहता हूँ। आमीन!
कीथ थॉमस
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