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12. Jesus Feeds Five Thousand

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12. यीशु पाँच हज़ार को भोजन कराता है

शुरुआती प्रश्न: वह कौन सा अवसर था जब आपने सबसे अधिक भोजन खाया हो या फिर वह कौन सा सबसे स्वादिष्ट भोज था जिसमें आप बैठे हों?  

 

1इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियास की झील के पास गया। 2और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि जो आश्चर्य-कर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे। 3तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा। 4और यहूदियों के फसह के पर्व निकट था। 5तब यीशु ने अपनी आँखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएं? 6परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह आप जानता था कि मैं क्या करूंगा। 7फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, कि दो सौ दीनार की रोटी उन के लिये पूरी भी होंगी कि उन में से हर एक को थोड़ी थोड़ी मिल जाए। 8उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उस से कहा। 9यहाँ एक लड़का है जिस के पास जव की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं। 10यीशु ने कहा, कि लोगों को बैठा दो। उस जगह बहुत घास थी: तब वे लोग जो गिनती में लगभग पाँच हजार के थे, बैठ गए: 11तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दी: और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया। 12जब वे खाकर तृप्त हो गए तो उसने अपने चेलों से कहा, कि बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका जाए। 13 सो उन्होंने बटोरा, और जव की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे उनकी बारह टोकरियाँ भरीं। 14तब जो आश्चर्य-कर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है। 15यीशु यह जानकर कि वे मुझे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया। (यहुन्ना 6:1-15)

 

यह आश्चर्य-कर्म कहाँ और कब हुआ

 

यहुन्ना के साथ जब हमने यरूशलेम और गलील के क्षेत्र में कई मीलों का सफ़र तय किया है, हमने जिस एक बात को बार-बार प्रकट होते देखा है वो यह है कि यीशु 100% मनुष्य है, लेकिन 100% परमेश्वर भी पहले तीन सुसमाचार यीशु के कार्यों और उसकी शिक्षा पर केन्द्रित होते हैं, जबकि यहुन्ना इस बात पर ज्यादा केन्द्रित होता है कि यीशु कौन है जब हम यहुन्ना की यीशु के विषय में गवाही के छठे अध्याय तक पहुँचते हैं, हम स्वर्ग के इस मानव के चरित्र और समर्थ की एक और तस्वीर देखते हैं। चारों सुसमाचार इस आश्चर्य-कर्म का वर्णन करते हैं

मत्ती, पहले सुसमाचार का लेखक, हमारे लिए यह बात दर्ज करता है कि पाँच हज़ार को भोजन कराना हेरोदेस द्वारा यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले की हत्या के एकदम बाद के समय में हुआ था (मत्ती 14:13) इसी के कारण यीशु अपने चेलों के साथ एकांत में कुछ समय बिताना चाहता था। कई जो पहले यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले की ओर देख रहे थे, अब उस चरवाहे को खोज रहे थे जिसके बारे में यहुन्ना ने उन्हें बताया था। मरकुस इसी आश्चर्य-कर्म के अपने वर्णन में हमें बताता है, उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।(मरकुस 6:34) करुणा क्या है? करुणा वो है जो एक व्यक्ति दूसरे की पीड़ा को महसूस करता है जब कोई दूसरे के दुर्भाग्य से वाकिफ होता है, यह उनकी पीड़ा को आराम देने की दृढ़ इच्छा के साथ होने वाली एक गहरी संवेदना और खेद है कभी कभी हमारे लिए अपने मनुष्यत्व में उस समय दूसरों को तरस दिखाना कठिन होता है जब हमें लगता है कि वो अपने दर्द के हकदार हैं, कि उन्होंने जो बोया है वही काटा है मसीह हमसे कितना अलग है वो अपने लोगों का दर्द महसूस करता है। जब यीशु ने पौलुस को दमिश्क के मार्ग पर मसीही लोगों पर सताव के विषय में शाऊल के साथ आमना-सामना किया, उसने उससे पूछा हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?” (प्रेरितों 9:4) अपने प्राण के अन्धकार में, शाऊल मसीही लोगों को सता रहा था, लेकिन प्रभु अपने लोगों के साथ इतनी एकता में है कि वह शाऊल के हाथों अपने लोगों के दर्द को महसूस कर रहा था। प्रभु अपने सम्मुख हज़ारों लोगों की शारीरिक भूख पर, और साथ ही परमेश्वर के वचन के लिए आत्मिक भूख पर करुणा से भर गया। तो वह उन्हें कई बातों की शिक्षा देने लगा।

 

प्रेरित यहुन्ना लिखता है कि यहूदी फसह का पर्व निकट था (पद 4), जिससे यह समझ आता है कि क्यों काफी लोग मार्ग पर थे और क्यों पुरुष अपने सामान्य व्यवसाय पर नहीं थे। शायद वो अपने आप को फसह के भोज के लिए येरूशलेम की ओर यात्रा के लिए तैयार कर रहे थे, उन तीन भोजों में वह एक फसह जिनमें सभी यहूदियों को शामिल होना अनिवार्य था। (निर्गमन 34:18-23)

 

इस आश्चर्य-कर्म का समय यीशु के कफरनहूम क्षेत्र में शिक्षा देने और कई लोगों को चंगा करने के बाद का था। यह तभी था कि मसीह ने हेरोदेस द्वारा यहुन्ना बप्तिस्मा देने वाले की हत्या के समाचार को सुना। क्योंकि वो अपनी माताओं के द्वारा एक दूसरे के सम्बन्धी थे (लूका 1:36), यीशु यहुन्ना की मृत्यु से काफी दुखी हुआ था। उसने नाव द्वारा कफरनहूम से गलील की झील के उत्तरी-पश्चिम में स्थित बैतसैदा या फिशरटाउन जाने का निर्णय लिया ताकि यीशु और चेले एकांत जगह ढूंढ कर कुछ विश्राम कर सकें। (मरकुस 6:31) बैतसैदा फिलिप्पुस, पतरस और अन्द्रियास का ग्रह-निवास भी था। (यहुन्ना 1:44) जब वह पश्चिम से पूरब की ओर पाँच या : मील की नाव की यात्रा पर निकले, लोगों ने उसके किनारे पर पहुँचने पर उससे मिलने के लिए गलील की झील के उत्तरी तट से घूमते हुए पैदल चलना शुरू कर दिया। लोग इसीलिए आए, यहुन्ना बताता है, क्योंकि वह उसके द्वारा बीमारों पर किए आश्चर्य-कर्म के चिन्हों को और देखने के अभिलाषी थे। (यहुन्ना 6:2)

 

जब नाँव किनारे पहुँची, तब जैसे-जैसे लोग आते जा रहे थे, भीड़ बढ़ती जा रही थी। सुसमाचार का लेखक मत्ती हमें यीशु के चरित्र के बारे में कुछ बताता है, कि जबकि वह यहुन्ना की मृत्यु से खेदित था, तब भी जब वो नाँव से निकला तब उसके लिए प्रतीक्षा करती बड़ी भीड़ को देख उसका हृदय करुणा से भर गया। जब उसके लोग पीड़ा में होते हैं, मसीह को भी पीड़ा होती है। वह अपने लोगों की पीड़ा में अंदरूनी रूप से प्रभावित होता है। उसने बीमारों को चंगा कर (मत्ती 14:14) उनकी पीड़ा को कम करना शुरू किया। अपने चेलों के साथ समय की उसकी ज़रूरत, उसके लोगों की पीड़ा के अधीन थी।

 

आश्चर्य-कर्म

 

यहुन्ना हमें बताता है कि औरों के साथ फिलिप्पुस की भी परख हो रही थी: 5तब यीशु ने अपनी आँखे उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, कि हम इन के भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएं? 6परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह आप जानता था कि मैं क्या करूंगा। (यहुन्ना 6:5-6)  

 

मैं अचरज करता हूँ कि हमारे जीवन में कितनी ही ऐसी परिस्थितियाँ होती होंगी जो प्रभु की ओर से यह जाँचने की परख होती हैं कि हमारा विश्वास कहाँ है। क्या आप तुरंत उत्तर देते हैंमैं यह कहाँ से लाऊँ?” वह कितना प्रसन्न होता है जब हम ऐसे हृदय से प्रतिक्रिया देते हैंपिता, मैं तो अपने साधनों के अंत पर हूँ, क्या तू कृपया मेरी मदद करेगा?” मेरा ऐसा मानना है कि परमेश्वर अक्सर ऐसी परिस्थितियों में हमारी अगवाई करता है जो हमारे साधनों से पूर्णत: परे हैं ताकि वो हमारे विश्वास को हमारी क्षमता से अधिक खींच सके। लोग लचीले फीते के समान हैं; असरदार होने के लिए उन्हें खींचना आवश्यक है। एलेग्जेंडर मेक्लेर्न ने एक बार कहा था:

 

यह अक्सर हमारा (परमेश्वर द्वारा दिया गया) कार्य होता है कि हम ऐसे कार्यों को करें जिन्हें करने के लिए हम साफ तौर पर पर्याप्त नहीं हैं, इस भरोसे के साथ कि वह जो इन्हें हमपर डालता है इसलिए करता हैं कि हम उसके निकट आएं, और वहाँ पर्याप्तता पा लें। इस संसार में उसके सेवकों के लिए सबसे उत्तम तैयारी यही है कि वो यह बात जान लें कि उनके खुद के भण्डार ना-काफी और छोटे हैं।

 

हमें बताया गया है कि वहाँ पाँच हज़ार पुरुष थे (लूका 9:14) जब हम इस अनुमान को देखते हैं कि खाने के लिए बैठने वाले लगभग 12,000 लोग थे, तो पाँच रोटी और दो मछली तो ज्यादा नहीं। इतना ही नहीं, यहुन्ना 6:9 हमें बताता है कि हम यहाँ जव की पाँच छोटी रोटियों की बात कर रहे हैं, जो कि मिश्नाह में, जो एक यहूदी टीका है, वो रोटी थी जो गरीबों में गरीब खाते थे।

 

जैसे-जैसे दिन ढलता जा रहा था और लोग तो काफी दूर से आए थे, उसने फिलिप्पुस की ओर देखा, शायद इसलिए क्योंकि यह हरी-भरी पहाड़ी की जगह उसके ग्रह-निवास के निकट थीहम इन के भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएं?” (पद 5) यह शब्द फिलिप्पुस को परखने के लिए कहे गए थे क्योंकि वह तो पहले से ही जानता था कि पिता ने उससे क्या करने को कहा है। (पद 6)

 

अगर यीशु पहले से ही जानता था कि वो क्या करेगा, तो आप क्या सोचते हैं कि वो फिलिप्पुस को कहे अपने शब्दों से क्या हासिल करना चाहता था?

 

परमेश्वर हमेशा अपने लोगों के लिए परीक्षा का समय आने देता है। कठिनाई और ज़रूरत के समयों को इसलिए आने की अनुमति दी जाती है कि यह बात प्रकट हो पाए कि हमारा विश्वास किस में है। क्या आप किसी ऐसे स्वाभाविक संसाधन पर निर्भर होने का झुकाव रखते हैं जिसे आप कर सकें? क्या यह अपने माता-पिता या मित्रों की ओर देखना है? क्या यह और उधार लेना है? जब जीवन कठिन होता है तब आप किसकी ओर देखते हैं? क्या यह संभव है कि फिलिप्पुस की तरह ही, परमेश्वर ने परिस्थितियों के द्वारा ही आपके विश्वास की परख को अनुमति दी हो? अपने सबसे अंधकारमय समय में आप किस ओर रुख करते हैं? अपने पासबान होने के कई वर्षों में, मैंने यह पाया है कि मनुष्य लचीले फीते के समान होता है; उन्हें असरदार होने के लिए खींचा जाना आवश्यक है। जितनी बड़ी परीक्षा और कठनाई जिसे आप सह रहे हों, उसी माप में वो चरित्र और वरदान हैं जिन्हें परमेश्वर आपके जीवन में स्थापित करना चाहता है। जब आप अपनी परिस्थिति की असम्भवता को देखते हैं, तो क्या यह आपको मदद के लिए परमेश्वर की ओर और ज्यादा प्रार्थना और अपेक्षा में देखने को विवश करती है?

 

उस दिन दो चेलों ने इस परीक्षा को लिया। पहले, यीशु ने अपने शब्द फिल्प्पुस की ओर केन्द्रित किये, जो उसकी सेवकाई की शुरुआत से उसका चेला था। फिलिप्पुस तीन तरह से परीक्षा में विफल रहा। पहला, उसने सभी नहीं पर यीशु के अधिकतर आश्चर्य-कर्म देखे थे, लेकिन उसकी प्रतिक्रिया समस्या को देखना है कि उसके हल को। दूसरे, वह उनके विरोध में ठहरी बातों के बारे में ज्यादा चिंतित था कि उनके पक्ष की बातों पर। वो कहता है कि एक आम आदमी के आठ महीने तक काम करने पर भी इतना पैसा नहीं होगा कि हर एक व्यक्ति एक निवाला तक ले सके। (पद 7) तीसरा, ध्यान दें कि फिलिप्पुस की प्रवृत्ति एकदम न्यूनतम के बारे में सोचने की थी। जैसे कि यीशु तो हर एक व्यक्ति के लिए केवल एक निवाले का प्रयोजन ही करेगा! क्या गरीबों और भूखों को अति न्यूनतम खिलाने से परमेश्वर को महिमा मिलेगी? क्या हम सबसे न्यूनतम से बढ़कर परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते? परमेश्वर स्वयं देह में उसके सामने खड़ा था पर फिलिप्पुस केवल मुँह-भर के बारे में ही सोच सका, जबकि परमेश्वर तो भर पेट के बारे में सोचता है। आप तो सोचते होंगे कि ये मनुष्य जिन्होंने उसे पानी को दाखरस बनाते देखा था, और दिन प्रतिदिन चंगाईयों के आश्चर्य-कर्मों को देखा था, इस प्रकार से थोड़े बहुत विश्वास के शब्दों से प्रतिक्रिया दे सकते थे, “प्रभु, इस आवश्यकता के मध्य में, मुझे नहीं पता कैसे, लेकिन मैं जानता हूँ कि आप इस इस आवश्यकता को पूरा कर सकते हैं, और करेंगे भी।

 

यह संभव है कि अन्द्रियास ने स्वेच्छा से इस परीक्षा को लिया क्योंकि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि उससे पूछा गया था। अन्द्रियास भोजन साथ बाँध के लाए हुए लड़के तक कैसे पहुँचा? ऐसा प्रतीत होता है कि वो खोजते हुए निकला, यह सोच पूछते हुए कि पता नहीं यहाँ पर किस प्रकार का भोजन उपलब्ध है। वह भोजन के बारे में जाँच करते हुए भीड़ में गया होगा। हमें नहीं पता कि वो उस लड़के तक कैसे पहुँचा, लेकिन इन शब्दों द्वारा सब कुछ पर पानी फेरने से पहले, वह उसे उसके बंधे भोजन के साथ यीशु के पास लाया, यहाँ एक लड़का है जिस के पास जव की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं। अन्द्रियास अपने स्वयं के संसाधनों से परे मसीह की समर्थ और पूर्ति को नहीं देख पाया। दोनों फिलिप्पुस और उसने विश्वास के शब्दों को बोलने के अवसर को खो दिया जो प्रभु को प्रसन्न करते।

 

याद है कि प्रभु रोमी सूबेदार के उन शब्दों से कितना प्रसन्न हुआ था जो अपने सेवक के लिए चंगाई चाहता था? जब यीशु ने कहा कि वो आकर उसके सेवक को चंगा करेगा, तब सूबेदार ने यह कह कर उत्तर दिया, हे प्रभु मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए, पर केवल मुख से कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा..... 10यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और जो उसके पीछे रहे थे उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। (मत्ती 8:8-10)

सूबेदार के शब्दों ने उसके हृदय के विश्वास को व्यक्त किया किसी और चीज़ से ज्यादा यह प्रभु को प्रसन्न करता है। परमेश्वर में विश्वास, जिसे शब्दों और कार्यों द्वारा व्यक्त किया जाए ही वो चीज़ है जो प्रभु को आदर देती और प्रसन्न करती है। (इब्रानियों 11:6) मुझे निश्चय है कि गरीब और भूखों की आवश्यकताओं के विषय में बारह चेलों से प्रभु बेहतर प्रतिक्रिया की अपेक्षा रख रहा था

 

परीक्षा के मध्य में, क्या आप स्वाभाविकत: आधा गिलास खाली है का दृष्टिकोण अपनाते हैं या फिर आधा गिलास भरा है का मनोभाव अपनाते हैं? नकारात्मक मनोभाव को कैसे बदला जा सकता है? एक दूसरे से इस बारे में बातचीत करें कि आप नकारात्मकता और संदेह के उपर काबू करने के लिए किन बातों का अभ्यास कर सकते हैं

 

जब लड़के का बंधा हुआ खाना लाया गया, उसमें जव की पाँच रोटियाँ थीं, जो संभवत: हमारी रोटी से छोटी होंगी दो मछलियाँ भी संभवत: बड़ी हरी मिर्च जितनी बड़ी, सूखी हुई या फिर आचार डाली हुई होंगी, क्योंकि मछली के लिए प्रयोग हुआ यूनानी शब्द, ओपसरिओं, यही संकेत देता है। जव की रोटी केवल बहुत गरीब ही खाते थे क्योंकि यह स्वादिष्ट नहीं होती थी। अचार डाली हुई मछली इसमें कुछ स्वाद लाती होगी ताकि यह गले से नीचे उतर सके। जब चेले इस लड़के के भोजन की ओर देख रहे थे, प्रभु ने कुछ चौंकाने वाला कहा, लोगों को बैठा दो (पद 10) यह ऐसे ही कहना है किआओ खाना खाने बैठें, जबकि वहाँ इस लड़के के बंधे हुए भोजन के अलावा कुछ नहीं था कितने विश्वास का कदम! मरकुस, इसी आश्चर्य-क्रम के विषय में अपने सुसमाचार में, यह जोड़ता है कि यीशु ने लोगों को पचास और सौ के समूहों में बैठने की आज्ञा दी:

 

39तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर पांति पांति से बैठा दो। 40 वे सौ सौ और पचास पचास करके पांति पांति बैठ गए। 41और उस ने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़ तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं। (मरकुस 6:39-41)

 

 आप क्या सोचते हैं यीशु ने उन्हें पचास और सौ के समूहों में बैठने की आज्ञा क्यों दी होगी?

 

जब हम मित्रों और सम्बन्धियों के साथ संगती कर समुदाय में होने का आनंद मनाते हैं, तब परमेश्वर की बातों के विषय में अचंभा होता है और वो बेहतर रूप से ग्रहण होती हैं जब वो खाने लगे, मैं सोचता हूँ कि पचास के समूह में भी जब हर एक व्यक्ति को पाँच रोटी और दो मछली के हिस्से से कहीं ज्यादा मछली और रोटी दी गई होगी, तो शोर बढ़ने लगा होगा। मैं यह जानने के लिए उत्सुक होता हूँ कि क्या सभी समूहों को पहले से बताया गया होगा कि खाने की सूची में केवल इस छोटे लड़के का बंधा हुआ भोजन है। उनमें से हर एक, जो परिवार और मित्रों के साथ खाने बैठे होंगे, यह जानते थे कि उनके सम्बन्धी तो उनसे झूठ नहीं बोलेंगे कि उन्होंने कितना खाया परिवारों और मित्रों के समूह बना देना ही संदेह करने वालों की इस शंका को समाप्त कर देता है कि और किसी ने नहीं खाया। इस आश्चर्य-कर्म पर संदेह करने वाले कुछ ऐसे हैं जो हमें यकीन दिलाना चाहेंगे कि बहुत से ऐसे लोग थे जिन्होंने अपना भोजन अन्द्रियास से छुपा लिया था, और जब समय आया, उन्होंने अपने साथ लाए हुए भोजन को खा लिया। कितना अटपटा है! इस आश्चर्य-कर्म की गवाही हर एक सुसमाचार द्वारा दी गई है और साथ ही इस बात के आवश्यकता से ज्यादा प्रमाण हैं कि यह किस समय और किस स्थान पर हुआ, और हाँ बाद में बचे हुए टुकड़ों की बारह टोकरियाँ भी भरी गई थीं।

 

मैंने गौर किया है कि येशु की प्रार्थना की मुद्रा, अपने सर को झुका, आँखें बंद कर प्रार्थना करना नहीं थी, उसने अपनी आँखें स्वर्ग स्वर्ग की ओर उठाई और उससे बात करी जो बादलों के उपर है क्या यह इतना अजीब नहीं कि हम कितने धार्मिक बन जाते हैं? जब भी कोई कहता है, “आइये प्रार्थना करें, हम अपने सरों को झुका आँखें बंद कर लेते हैं यह प्रथा कहाँ से आई? वचन में पाँच बार यीशु स्वर्ग में अपने पिता की ओर आँखें उठा कर प्रार्थना करता है, तो हम क्यों इसे अपनी प्रार्थना के नमूने की तरह नहीं लेते? रोटी तोड़ने के बाद संभवत: जो आशीष की प्रार्थना उसने कही होगी वो मिश्नाह की परंपरागत आशीष रही होगीतुझे आशीष मिले, हे प्रभु हमारे परमेश्वर, संसार के राजा, जो पृथ्वी में से भोजन के आने का कारण है (बेराकोट 6:1) उसने फिर रोटी और मछली को टुकड़ों में तोडा औरदिया यूनानी मेंदियाशब्द की क्रिया का काल हैदेता रहा क्या यह देखना अद्भुत नहीं रहा होगा?

 

जितना ज्यादा उन्हें दिया गया, उतना ही वह खाते रहे मैं देख सकता हूँ कि हर चेला और खाना लेने के लिए प्रभु के पास वापस जा रहा है क्योंकि हर समूह ने जितना वो एक बार में ला सकते थे उससे ज्यादा खाया। उनके लिए यह आश्चर्य चाकित करने वाली बात थी कि इतना कम खाना अब उनहें तृप्त कर रहा था। मुझे निश्चय है कि वो चेलों से सत्य के विषय में आश्वासन माँग रहे होंगे, “क्या सच में यह एक ही लड़के का भोजन है जिसे हम खा रहे हैं?” जब वह खा रहे थे तो इस बात के असंभवता से अचंभित होते एक दूसरे की ओर देख रहे होंगे। परमेश्वर में सब कुछ संभव है!

 

यह आश्चर्य-कर्म कहाँ हुआ? क्या यह यीशु के हाथों से किया गया था या फिर चेलों के जो इसका जरिया बने, या दोनों?

 

अगर आप वहाँ घास पर बैठी मक्खी होते, विवरण दीजिये कि आपने क्या देखा होगा

 

मैं सोचता हूँ कि क्या सभी समूहों को पहले से बताया गया होगा कि खाने की सूची में केवल इस छोटे लड़के का बंधा हुआ भोजन है। मैं कल्पना करता हूँ कि जब पचास के समूह में हर व्यक्ति को पाँच रोटी और दो मछली के हिस्से से कहीं ज्यादा मछली और रोटी दी गई होगी, तो शोर बढ़ने लगा होगा। प्रभु का चेला होना उस समय कितना अद्भुत हुआ होगा, जब प्रभु द्वारा बचे हुए टुकड़ों को टोकरी में बटोरने के लिए उन्हें भेजा गया होगा! जब पचास और सौ के हर समूह ने अपनी बची हुई मछली और रोटी के टुकड़े टोकरी में डाले होंगे, तो हर एक ने टोकरी में देखा होगा कि अब शुरुआत से कहीं ज्यादा मछली और रोटी है! आप तो सोचेंगे कि सारी मछली खा ली गई होगी क्योंकि यह कम मात्र में थी और स्वादिष्ट भी, लेकिन वहाँ सारी भीड़ के लिए ज़रूरत से ज्यादा मछली और रोटी थी। यहुन्ना टोकरियों में केवल रोटी के टुकड़ों का ज़िक्र करता है (पद 13), लेकिन मरकुस इस बात को जोड़ता है कि मछली और रोटी के टुकड़े बचे थे। (मरकुस 6:43)

 

इस आश्चर्य-कर्म पर संदेह करने वाले कुछ ऐसे हैं जो हमें यकीन दिलाना चाहेंगे कि उन में से बहुत से लोगों ने अपने भोजन को अन्द्रियास से छुपा लिया था, और जब समय आया, उन्होंने अपने साथ लाए भोजन को खा लिया। कितना अटपटा है! इस आश्चर्य-कर्म की गवाही हर एक सुसमाचार द्वारा दी गई है और साथ ही इस बात के आवश्यकता से ज्यादा प्रमाण हैं कि यह किस समय और किस स्थान पर हुआ, और हाँ बाद में बचे हुए टुकड़ों की बारह टोकरियाँ भी भरी गई थीं। प्रभु के लिए यह कितनी महिमा की बात होगी कि हर परिवार और समूह ने अंगीकार किया होगा कि उन्होंने क्या कुछ खाया है, और उसके बाद भी इतना बच गया। हम सोचते होंगे कि क्यों उसने बस लोगों को बचा हुआ खाना घर नहीं ले जाने दिया? लेकिन घर की ओर निकलने से पहले सभी लोगों के लिए बारह टोकरियों में बचे हुए टुकड़ों को देखना, और यह जानना कि प्रभु उनके लिए बियाबान में मेज़ तैयार करने में कैसे निराला रहा, कितना और ज्यादा अद्भुत रहा होगा।

 

जब लोगों ने पाँच हज़ार को भोजन कराने के कार्य को एक आश्चर्य-कर्म होने का एहसास किया होगा, वो कहने लगे, कि वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है। मूसा ने, कई सैंकड़ों वर्ष पूर्व उन्हें बताया था कि परमेश्वर उन्हें मूसा के जैसा भविष्यद्वक्ता भेजेगा, और उन्हें उसे बहुत ध्यान से सुनना चाहिए:

 

तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्थात् तेरे भाइयों में से मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा; तू उसी की सुनना(निर्गमन 18:15)

 

यहाँ, उनके सामने वो था जिसके बारे में मूसा ने उनसे कहा था वो वही नबी था जिसे इस संसार में आना था, और मूसा की तरह ही, उसने उन्हें आश्चर्य चकित करने वाली रीती से भोजन कराया। मूसा ने उन्हें, मन्ना, स्वर्ग से आई रोटी के द्वारा भोजन कराया। मूसा ने भी बटेरों को उनकी छावनी में भर कर, आश्चर्य जनक रीती से मीट को गुणा किया था (गिनती 11:31-34) जब उन्होंने इस बात को पहचाना कि यही वो है जिसके बारे में मूसा ने बात करी थी, तो वह उसे लेकर राजा बनाना चाहते थे लेकिन उसके राजा का ताज पहनाए जाने के लिए यह समय परमेश्वर का समय नहीं थापरमेश्वर की योजना तो उसे काँटों ता ताज पहनाने की थी। वो अपने चेलों को नाव से कफरनहूम आने के लिए छोड़, पिता के साथ एकांत में प्रार्थना करने के लिए अकेले चला गया।

 

आप किस असम्भव परिस्थिति का सामना कर रहे हैं जिसके लिए आपको अभी प्रार्थना की आवश्यकता है? एक दूसरे के साथ अपनी प्रार्थना की आवश्यकता बाँटें और उन बातों के विषय में प्रार्थना करें जो आपके संसाधनों की सीमा से बाहर हैं

 

पिता, अभी आकर इस कमरे में हर एक ज़रूरत को छू हर एक हृदय को अपने द्वारा जोड़े गए संसाधनों से परे मसीह की ओर देखने के लिए उठा। अपने लोगों से ठीक उसी स्थान पर मिल जहाँ वो हैं अमीन।

 

 

कीथ थॉमस

नि:शुल्क बाइबिल अध्यन के लिए वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

-मेल: keiththomas7@gmail.com

 

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And this gospel of the kingdom will be proclaimed throughout the whole world as a testimony to all nations, and then the end will come.
Matthew 24:14

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