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17. The Light Challenges the Darkness
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17. ज्योति अन्धकार को चुनौती देती है
उसके वचन को थामे रहना
हम झोपड़ियों के पर्व के आखिरी दिन मंदिर के आँगनों में यीशु के शब्दों पर ध्यान देना जारी रख रहे हैं। हमारे आखिरी अध्ययन में, हमने यीशु के उन शब्दों को पढ़ा जहाँ वो कहता है कि वह संसार का ज्योति है (यहुन्ना 8:12)। यह संभव है कि यीशु के यह शब्द एक दूसरे समारोह जिसे मंदिर का रोशन होना कहा जाता था, उसकी शुरुआत में कहे गए हों। जैसे ही अंधेरा होना शुरू हुआ, युवा पुरुषों ने चार बड़े दीपाधार की सीढ़ियों पर चढ़ प्रत्येक को प्रज्वलित करने से पहले ताजा तेल से भर दिया। इन विशाल दीपाधारों ने पूरे क्षेत्र को ज्योति से उज्जवल कर दिया। यीशु ने कहा था कि वो संसार की ज्योति है, न केवल एक ज्योति। यह कथन यहूदी अग्वों द्वारा येशु के परमेश्वर होने का दावा करने के रूप में समझा गया, और यह ठीक है, क्योंकि वो है भी। पद 30 हमें बताता है कि कई लोगों ने जो उसे सुन रहे थे, उसके विनीत शब्दों को सुनने के बाद उसमें विश्वास किया। उसमें विश्वास करने का अर्थ यह नहीं है कि वे सभी विश्वासी हो गए, लेकिन वे उन लोगों के प्रति जो गुस्से से भरे हुए उसपर हमला कर रहे थे, उसके धीरजपूर्ण आचरण से बहुत प्रभावित हुए। प्रभु के शब्द यहूदी अग्वों के बीच नया क्रोध लेकर आए। कैसे वह, मात्र एक मनुष्य, परमेश्वर हो सकता है? उपस्थित हजारों लोगों को अपनी शिक्षाओं के पालन के बारे में निर्देश देने के लिए वह उनकी ओर मुड़ा।
31तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उसकी प्रतीति की थी, कहा, “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। 32और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (यहुन्ना 8:31-32)
प्रश्न 1) जब यीशु उस सत्य को जानने के बारे में बात करता है जो लोगों को स्वतंत्र करेगा तो वह क्या कह रहा है? (पद 31)। आपको क्या लगता है कि “सच्चाई” शब्द से उसका मतलब है?
इस खंड में, प्रभु यह बिलकुल स्पष्ट करता है कि शिष्य वही हैं जो उनकी शिक्षाओं को थामे रहते हैं। हमें केवल अपना धर्म परिवर्तन नहीं करना; हमें शिष्य बनने के लिए बुलाया गया है, एक शब्द जिसका अर्थ है एक अनुयायी जो सिखाने वाले के पद्चिन्हों पर चल रहा है। यीशु के बारे में और जानने की यह इच्छा ही मसीहा के एक वास्तविक शिष्य का चिन्ह है: “तुम वास्तव में मेरे शिष्य हो।" हमारे समय में, कई हैं जो शिष्य बनना चाहते हैं लेकिन यीशु की शिक्षाओं को अनदेखा करते हैं और उनके पास मनन करने (गहराई से सोचने) के लिए कोई समय नहीं है। अगर हमें मसीह के अनुयायी होना है, तो हम अपने जीवन में उसके वचनों का पालन करने का नमूना बनाते हुए उसकी शिक्षाओं को थामे रहेंगे। जैसे हमें प्रतिदिन भोजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही हमें प्रतिदिन आत्मिक भोजन, यानी, परमेश्वर के वचन की भी आवश्यकता होती है।
लेखक ए.डब्ल्यू. पिंक के पास मसीह की शिक्षाओं को थामे रहने या उनमें बढ़ने के विषय में कुछ दिलचस्प शब्द हैं:
उसके वचन में निरंतरता शिष्यता की शर्त नहीं है। इसके बजाए, शिष्यता की शर्त इसकी अभिव्यक्ति है। यह अन्य चीजों के साथ, वो बात है जो सच्चे शिष्य को मात्र एक शिक्षक से भिन्न करती है। मसीह के ये शब्द हमें एक विशेष परीक्षा देते हैं। यह इसके बारे में नहीं है कि एक व्यक्ति कैसी शुरूआत करता है, लेकिन यह इस बारे में है कि वो कैसे जारी रहता है और कैसे अंत करता है। यही वह है जो अच्छी भूमि के सुनने वाले को पत्थरीली भूमि के सुनने वालों से अलग करता है। (मत्ती 13: 20-23)
फिर यीशु ने कहा, “और तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” (पद 32)। सच्चाई को जानना हमें स्वतंत्र कर देगा। यूनानी शब्द "तुम्हें स्वतंत्र करेगा" का अनुवाद बंधुवाई के दासत्व से रिहा होने का सुझाव देता है। प्राचीन संसार में, जब किसी व्यक्ति के पास अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता था, तो स्वयं उसको या उसके बच्चों में से एक को क़र्ज़ देने वाले का दास बना दिया जाता था। अगर कोई उसका कर्ज चुका देता, तो उसे बंधुवाई के दासत्व से रिहा कर दिया जाता, अर्थात, स्वतंत्र कर दिया जाता। सच्चाई यह है कि यीशु ने पाप के उस ऋण का भुगतान कर दिया है जो मानवता के उपर था और उसने लोगों को शैतान के दासत्व से स्वतंत्र किया है। प्रभु कह रहा था कि यदि वह उसकी शिक्षा को सुनकर थामे रहेंगे, तब फिर वे परमेश्वर के उस सत्य को जान पाएंगे जो पाप से छुटकारे के बारे में है, और वह सच्चाई उन्हें जीवन में बनाए रखेगी और उन्हें पाप के दासत्व की शक्ति से स्वतंत्र करेगी।
पाप के दास
इस बात से चिंतित कि साधारण लोग उसकी सुन रहे थे, धार्मिक अग्वे खुद को रोक न पाए। यह बताए जाना कि उन्हें स्वतंत्र किया जा सकता है, इसका अर्थ यह बनेगा कि मसीह के सत्य वचन जानने से पहले, वे दास थे। परमेश्वर के आत्मा-रहित मनुष्य को कहे, इस तरह के शब्दों ने उनके धार्मिक गौरव को चोट पहुँचाई और वे भीतर से भड़क गए:
33उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हम तो इब्राहीम के वंश से हैं और कभी किसी के दास नहीं हुए, फिर तू क्यों कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?” 34यीशु ने उनको उत्तर दिया; “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है। 35और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है। 36सो यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे। मैं जानता हूँ कि तुम इब्राहीम के वंश से हो; तौभी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह नहीं पाता, इसलिये तुम मुझे मार डालना चाहते हो”। (यहुन्ना 8:33-37)
एक व्यक्ति के लिए कितना बड़ा षड़यंत्र! इन शब्दों को पढ़ने वाले किसी के बारे में कभी भी यह नहीं कहा जाए, “तुम मुझे मार डालना चाहते हो” (पद 36)। मुझे भरोसा है कि आप सभी प्रभु यीशु द्वारा कहे अनंत जीवन के इन शब्दों को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। जब हम अपने हृदय में उसके वचन के लिए जगह पाते हैं, तो वह वहाँ मौजूद किसी भी अंधकार को उजागर करते हुए और चुनौती देते हुए हमारे जीवन में रोशनी लाएगा। हमेशा की तरह, धार्मिक अभिजात वर्ग यह समझने में नाकाम रहे कि मसीह शारीरिक स्तर पर चीजों के बारे में बात नहीं कर रहा था, लेकिन जब उसने कहा कि उन्हें दासत्व से स्वतंत्र किया जा सकता है, यह आत्मिक सम्बन्ध में था। यहूदी लोग कभी भी किसी के दास न होने की एक अलग ही बात कहने लगे, जो पूर्णत: असत्य था, मूसा के आने से पहले मिस्र ने उन्हें गुलाम बना लिया था; तब, फिर बाबुल ने भी उनपर विजय प्राप्त की, और अब के समय में भी, वे रोम द्वारा अधीनस्थ थे। यीशु ने उनके हृदयों पर केन्द्रित होते हुए कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है” (पद 34)। उसका अर्थ यह था कि पाप की हमारे ऊपर एक नशे की लत की तरह की शक्ति है जो एक बार हमें फंसा ले, तो स्वतंत्र करने से इंकार कर देती है। जो मैं कहना चाह रहा हूँ उसे मुझे अपने अतीत की कहानी के साथ समझाने दें।
जब मैं सत्रह वर्ष का था और बहुत असुरक्षित और प्रभावशील था, और मैंने लगभग 200 लोगों के कर्मीदल वाले बड़े यात्री जहाज़ पर काम करना शुरू किया। हम नॉर्वे, डेनमार्क, फ्रांस, स्पेन, जिब्राल्टर और उत्तरी अफ्रीकी बंदरगाहों में टैंजिययेर्स और मोरक्को के कैसाब्लांका तक पहुँचे। उत्तरी अफ्रीका के परिभ्रमण में से एक पर, मैं भीड़ का हिस्सा बनना चाहता था और अन्य युवा पुरुषों के साथ मज़े करने और शराब पीने का आनंद लेना चाहता था। एक शाम, एक गाँजे की सिगरेट सब में बाँटी गई। मैंने इसे लिया और सोचा कि मैं देखता हूँ कि यह मुझे कैसा महसूस कराएगी। कुछ कशों के बाद, मैंने इसे आगे बढ़ा दिया। मैंने ध्यान नहीं दिया कि क्या मुझे कुछ अलग महसूस हुआ, लेकिन मुझे लगा कि मैं लोकप्रिय कर्मचारी दल की मनमौजी भीड़ का हिस्सा बन गया था। मुझे मेरी दादी ने कभी भी मादक पदार्थ न लेने के लिए चेतावनी दी थी और में इसके नतीजों से डरता था, लेकिन पाप का एक पहलू धोखा देना है। मैंने खुद को यह बताकर अपने विवेक को शांत कर दिया कि किसी कारण से मुझपर गाँजे का कोई प्रभाव नहीं है।
मैंने सोचा कि मैं गाँजे को नियंत्रित कर सकता हूँ, लेकिन इससे पहले कि मैं जान पाता, गाँजे और नशे की जीवनशैली जो इसके साथ जुड़ी थी, मुझे नियंत्रित कर रही थी। उस समय से, मेरी जिंदगी गाँजे के वास्तविक बंधन में नीचे की ओर जाती गई, ऐसा मेरे जीवन में आगे लगभग नौ वर्षों तक चला। मैंने अपना सारा आत्म-सम्मान खो दिया और मैं आयने में खुद को देखना सहन नहीं कर पाता था। हर बार जब मैं ऐसा करता, तो मैं किसी ऐसे को देखता जिसे मैं नहीं पहचानता था। मैंने कई बार गाँजे को समुद्र में फेंककर आदत तोड़ने की कोशिश की, लेकिन मैं अगले ही दिन वापस जाकर और खरीदा लाता। इसकी मुझपर एक वास्तविक पकड़ थी और इसका नियंत्रण मेरे प्रत्येक कार्य पर था। मेरा दासत्व तब यीशु के चरणों पर टूटा जब मैंने अपना जीवन उसे दिया। उस समय से, मैंने कभी गाँजे या किसी अन्य मादक पदार्थ को नहीं छुआ है। प्रभु ने मुझे उस बंधन से पूर्णत: छुटकारा दिया है। यीशु ने कहा, "यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे” (पद 36)।
मैं आशा करता हूँ कि आप उस मार्ग की ओर नहीं गए हों और आपके लिए ऐसा कुछ नहीं हुआ हो, लेकिन संभावना है कि इन शब्दों को पढ़ने वालों में से कई लोग शराब, झूठ बोलने, धोखा देने या चोरी करने के आदी हों। हो सकता है आपका पाप इन चीजों के रूप में स्पष्ट न हो, लेकिन इन सबका क्या: गुस्सा, ईर्ष्या, अहंकार, वासना, अश्लीलता, यौन अनैतिकता, निंदा, गपशप, लोभ, गर्व, निंदा या यहाँ तक कि डर, उदाहरण के लिए, मृत्यु का भय, माता-पिता का डर, अपने बॉस का डर? इन सभी चीजों की इनके साथ आने वाली दोष भावना और अन्य भावनाओं के साथ हमारे ऊपर एक लत जैसी, दासत्व की शक्ति है, लेकिन परमेश्वर का सामर्थ हमें इनसे उबरने में मदद करेगा। हम स्वतंत्र हो सकते हैं।
सड़क निर्माण दल के एक कार्यकर्ता ने ऐसे समय की एक बात बताई जब वह पेंसिल्वेनिया के गहरे पर्वतीय क्षेत्र में एक परियोजना पर काम कर रहा था। हर सुबह जब वह अपनी जीप में काम पर निकलता, तो वह सड़क के पास एक मछली पकड़ने की जगह पर एक जवान लड़के को देखता था। वो हर दिन उस लड़के की ओर हाथ लहराता और उससे बात करता। लेकिन एक दिन जब वो मछली पकड़ने की जगह के पास से जीप में धीरे-धीरे जा रहा था और उसने उस लड़के से पुछा कि वो कैसा है, तो उसे एक अजीब जवाब मिला: "मछली आज काट नहीं रही है, लेकिन कीड़े निश्चित काट रहे हैं।" कुछ मिनट बाद जब वह सड़क पर आगे चल कर पेट्रोल पंप पर पहुँचा, तब उसने मजाक में उस लड़के की यह बात पेट्रोल भरने वाले से कही। एक पल के लिए तो वह आदमी हँसा, लेकिन फिर उसका चेहरा खौफ से भर गया, और बिना कोई शब्द कहे, वो अपनी गाड़ी की ओर दौड़ा, और कूद कर तेज़ी से चला गया। उस दिन बाद में, निर्माण दल के उस आदमी को पता चला कि क्या हुआ था। पेट्रोल पंप पर काम करने वाला आदमी लड़के को बचाने के लिए बहुत देर से पहुँचा, जिसने किसी तरह सपोलों को केंचुआ समझ लिया था और उनके काटने से वह मर गया था। क्या आप जानते हैं, सपोले अपने पूरे ज़हर के साथ पैदा होते हैं। और ऐसा ही उन कई पापों के साथ है जो हमें प्रलोभन देते हैं। वे शुरुआत में हानिरहित दिखाई दे सकते हैं, लेकिन उनमें शैतान का ज़हर होता है और अगर हम उनमें पड़ जाते हैं तो वह हमें नष्ट कर देंगे।
पाप के परिणाम लुभाने वाला अकसर हमसे छिपाए रखता है; यह केवल बाद में होता है कि पाप का पूरा दंश हमारे जीवन में प्रभावी होता है। क्या आप अपने पाप को ढोते-ढोते थक गए हैं? उसे क्रूस पर ले आइए, क्योंकि मसीह आपको स्वतंत्रता का प्रस्ताव प्रदान करता है।
प्रश्न 2) क्या आपने एक ऐसा उदाहरण देखा है जहाँ लोगों को ऐसी आदत ने गुलाम बना दिया है जिसे वे नियंत्रित नहीं कर सकते? (कृपया कोई नाम न लें।) इसने उनके जीवन को कैसे प्रभावित किया, और क्या वे स्वतंत्र होने में सक्षम रहे? इसे संक्षिप्त रखने की कोशिश करें।
शैतान की संतान
हमारे समय में एक प्रचलित दर्शनशास्त्र है कि परमेश्वर सभी मानव जाति का पिता है। एक मायने में यह सही है, क्योंकि उसने हमारे भौतिक शरीर बनाए और हमें आत्मा, मन, इच्छा और भावनाएं दीं, लेकिन यह तब तक सच नहीं है कि जब तक हम नए सिरे से जन्म नहीं लेते वो हमारा पिता नहीं हो सकता है (यहुन्ना 3:3)। यीशु ने कहा कि इस संसार में दो प्रकार के लोग हैं: एक जो उसकी ओर हैं, और वह जो शैतान के हैं और उसका कार्य करने के लिए उसके द्वारा धोखा खाए हुए हैं:
“जो मेरे साथ नहीं, वह मेरे विरोध में है; और जो मेरे साथ नहीं बटोरता, वह बिखेरता है।” (मत्ती 12:30)
1“और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 2जिनमें तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है।” (इफिसियों 2:1-2)
परमेश्वर ने अब धार्मिक अभिजात वर्ग को सूचित किया कि केवल इसलिए कि वे खुद को इब्राहीम के वंशज मान सकते हैं, यह उन्हें अब्राहम, विश्वास के व्यक्ति, की संतान नहीं बना देता। मसीह ने उन्हें उनकी आत्मिक परिस्थिति की सच्चाई बताकर शत्रु के बंधनों से निकालने की कोशिश की:
38“मैं वही कहता हूँ, जो अपने पिता के यहाँ देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुमने अपने पिता से सुना है”। 39उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हमारा पिता तो इब्राहीम है”। यीशु ने उनसे कहा “यदि तुम इब्राहीम के सन्तान होते, तो इब्राहीम के समान काम करते। 40परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिसने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो इब्राहीम ने नहीं किया था। 41तुम अपने पिता के समान काम करते हो”। उन्होंने उससे कहा, “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे; हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्वर”। 42यीशु ने उनसे कहा, “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकल कर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा। 43तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिये कि तुम मेरा वचन सुन नहीं सकते। 44तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं: जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, वरन झूठ का पिता है। 45परन्तु मैं जो सच बोलता हूँ, इसीलिये तुम मेरी प्रतीति नहीं करते। 46तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते? 47जो परमेश्वर से होता हे, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिये नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो”। 48 यह सुन यहूदियों ने उससे कहा, “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है”? (यहुन्ना 8:38-48)
ये लोग जो यीशु के साथ बहस कर रहे थे कि वे कह रहे थे कि इब्राहीम उनका पिता था (पद 39)। उन्होंने अब उसके जन्म और उसकी माँ के प्रति मानहानि के भयानक शब्दों के साथ चरित्र हत्या की कोशिश की: “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे; हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्वर”, उन्होंने विरोध किया (पद 41)। उन्होंने अपनी इस धारणा का जिक्र किया कि उसका जन्म अवैध रूप से हुआ था और शायद एक वह सामरी था क्योंकि उनके पास कोई सबूत नहीं था कि उसका पिता कौन था। शायद, उन्होंने अपने जासूसों को नासरत में भेजा था, वहाँ जहाँ मसीह बड़ा हुआ था और उन्हें पता चला होगा कि मरियम अपने पति यूसुफ से विवाह करने से पहले गर्भवती थी। उन्होंने उससे कहा, “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है” (पद 48)। अगर उन्होंने अभिलेखों की जाँच की होती, तो उन्हें बेतलेहेम में राजा दाऊद के उसके पूर्वज होने और यहूदा के गोत्र में हुए उसके महान जन्म के बारे में जाना होता। शत्रु मसीह को बदनाम करने और उसके नाम को, सभी नामों में श्रेष्ठ नाम को, मिट्टी में मिलाने में खुश होता है। हम में से कई लोग प्रतिदिन इसका अनुभव करते हैं। बुद्ध या मोहम्मद का नाम व्यर्थ में नहीं लिया जाता है। यह यीशु का नाम है जो व्यर्थ में लिया जाता और बदनाम किया जाता है।
यीशु ने उन्हें स्पष्ट रूप से बताया, “तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो” (पद 44)। क्योंकि पाप ने उनके जीवन पर प्रभुत्व बनाए रखा, उनके जीवन का उत्प्रवाह और उनमें से उमड़े शब्दों और कार्यों से पता चला कि यह शैतान ही था जिसका उनपर पूर्णत: स्वामित्व था।
16क्या तुम नहीं जानते, कि जिसकी आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों की नाईं सौंप देते हो, उसी के दास हो - और जिसकी मानते हो, चाहे पाप के, जिसका अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धार्मिकता है? 17परन्तु परमशॆवर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपदेश के माननेवाले हो गए, जिसके सांचे में ढाले गए थे। 18और पाप से छुड़ाए जाकर धर्म के दास हो गए। (रोमियों 6:16-18 बल मेरी ओर से जोड़ा गया है)
समझे बिना, हम में से कितने ऐसे काम करते हैं जो हमारे माता-पिता आदत से करते थे। हम, बच्चे, हमारे माता-पिता की छवि हैं। यदि शैतान हमारे हृदय का स्वामी और संचालक है, तो हमारे जीवन का उत्प्रवाह स्वभाविक रूप से पाप का दासत्व होगा। यह सच है कि मसीही होने के बावजूद, हम पाप करना जारी रखते हैं, और जब तक यीशु वापस नहीं आता, हम पूरी तरह से पाप से स्वतंत्र नहीं होंगे, लेकिन शैतान हमपर अभ्यस्त पाप के द्वारा शासन या प्रभुत्व नहीं कर सकता। हमें अपने पुराने स्वामी को सुनने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अगर हमारे पास परमेश्वर का आत्मा है और हम उसकी आज्ञाकारिता में चलते हैं तो पाप हमारे ऊपर शासन नहीं करता (1 यहुन्ना 3:6)। अक्सर हमारे भीतर एक युद्ध चलता रहता कि हम किस आवाज़ की आज्ञा मानेंगे: मसीह की या शैतान की। हमारे जीवन का फल दूसरों को बताएगा कि किसने हमारी निष्ठा को प्राप्त किया है, शैतान ने या परमेश्वर ने। सबसे बुरी बात यह है कि कई बार, क्योंकि पाप इतना कपटी होता है, हम खुद को उस रीती से नहीं देख सकते जैसे और लोग हमें देखते हैं। मसीह में नम्र आज्ञाकारिता में चलने वाले विश्वासियों के प्रति शत्रु द्वारा आत्मिक विरोध होता है।
मसीह ने उन्हें ईमानदारी से वो कहा जो उसने देखा, “तुम अपने पिता शैतान से हो” (पद 44)। कभी-कभी, सत्य बोलना आवश्यक है ताकि हम लोगों को आत्मिक मृत्यु की नींद से जागृत कर सकें। ऐसे भी लोग हैं जो सुझाव देते हैं कि हमें लोगों को उनकी आत्मिक परिस्थिति के प्रति जागृत करने के लिए उनके पापों के विषय में कठोर बातें कहकर उनकी भावनाओं को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। हम पवित्रशास्त्र के सत्य को बताने के लिए ज़िम्मेदार हैं। हम एक युद्ध में हैं, और लोगों के जीवन दाँव पर हैं। अगर यीशु ने स्पष्ट रूप से इस बारे में बात की कि वह इस धार्मिक अभिजात वर्ग को किस दिशा में जाते देख रहा है, तो हमें भी अपने आस-पास के लोगों के साथ ऐसा करना चाहिए।
प्रश्न 3) आप अपने परिवार में सबसे अधिक किसके समान हैं? अपने कुछ लक्षण या आदतें बताएं जो आपके रिश्तेदार जैसीं हैं। अपनी एक विशेषता, गुण, या लक्षण को साझा करें जो आप अपने बच्चों में से एक में देखते हैं।
महान मैं हूँ
49यीशु ने उत्तर दिया, “मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो। 50परन्तु मैं अपनी प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हाँ, एक तो है जो चाहता है, और न्याय करता है। 51मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा”। 52यहूदियों ने उससे कहा “अब हम ने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: इब्राहीम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्त काल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा। 53हमारा पिता इब्राहीम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है”। 54 यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है। 55और तुमने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारी नाई झूठा ठहरूँगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूँ। 56तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया”। 57यहूदियों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं; फिर भी तूने इब्राहीम को देखा है? 58 यीशु ने उनसे कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूँ; कि पहिले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूँ। 59तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया। (यहुन्ना 8:49-59)
परमेश्वर यह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो जाए, लेकिन यह कि सभी पश्चाताप करें (2 पतरस 3:9), इसलिए यीशु इस उम्मीद में कि वह उन तक पहुँच जाएगा, एक बार और कोशिश करता है कि वे उसके वचन को सुनें। उसने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा” (पद 51)। इसके बदले में, उसे ऐसी घृणा के साथ चुप करा दिया गया जो उन लोगों के हृदय से आती है जिन्हें शत्रु उपयोग करना पसंद करता है। “अब हम ने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: इब्राहीम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, कि यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्त काल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा। 53हमारा पिता इब्राहीम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आप को क्या ठहराता है?” (पद 52-53)
यीशु ने उत्तर दिया, “तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया” (पद 56)। कुछ लोग कहते हैं कि हमें इसे इस प्रकार समझना चाहिए कि जब अब्राहम पृथ्वी पर जीवित था, तो वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था जब उसके बीज, प्रभु यीशु मसीह का जन्म बेतलेहेम में होगा (उत्पत्ति 26:4)। मुझे लगता है कि इसकी व्याख्या इस प्रकार करनी चाहिए कि स्वर्ग में इब्राहीम स्वर्गदूतों के साथ तब आनन्दित हुआ जब प्रभु को पिता के दाहिने हाथ से पृथ्वी पर भेजा गया ताकि उसे मसीह के रूप में संसार को दिया जा सके। जब यीशु ने यह कहा, तो उन्होंने फिर से उसे गलत समझा क्योंकि वे सांसारिक रीती से सोच रहे थे। उन्होंने तर्क दिया कि यीशु के लिए अब्राहम को देखना असंभव था, क्योंकि इब्राहीम 2000 साल पहले पृथ्वी पर जिया था और उसकी मृत्यु हो गई। यह कैसे संभव है कि यीशु ने अब्राहम को देखा होगा? यह संभव था क्योंकि इब्राहीम मरा नहीं, लेकिन वाकई ज़िंदा था! मसीह ने उन्हें बताया था कि परमेश्वर मरे हुओं का परमेश्वर नहीं है, बल्कि जीवतों का है:
‘मैं इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूँ’? वह तो मरे हुओं का नहीं, परन्तु जीवतों का परमेश्वर है”। (मत्ती 22:32)
भले ही अब्राहम का शरीर बहुत पहले उसकी कब्र में धूल में लौट गया था, लेकिन जब मसीह ने धरती पर आने के लिए स्वर्ग छोड़ा, तब इब्राहीम वाकई ज़िंदा था। हम सभी जिन्होंने मसीह में अपना विश्वास रखा है, हम जियेंगे, भले ही हम मर भी जाएँ (यहुन्ना 11:25)। फिर यीशु ने एक बहुत ही गहन बात कही जिसने उसके श्रोताओं को भीतर से, गहराई से क्रोधित कर दिया। उसने उनसे कहा, “पहिले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूँ!” (पद 58)
प्रश्न 4) उन्हें इतना गुस्सा क्यों आया कि उन्होंने उसे मारने के लिए पत्थर उठा लिए?
जब परमेश्वर ने जलती हुई झाड़ी में से मूसा से बात की, तो उसने मूसा से कहा कि वह उसे इस्रएलियों को मिस्र में दासत्व से बाहर निकालने के लिए भेजा जा रहा है। मूसा ने परमेश्वर से पूछा कि वो क्या कहे कि उसे किसने भेजा है। परमेश्वर ने मूसा से कहा, “मैं जो हूँ सो हूँ। फिर उसने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूँ है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है”। (निर्गमन 3:14)
जब यीशु ने उनसे कहा कि उसने इब्राहीम को देखा है, तो प्रेरित यूहन्ना धार्मिक अग्वों की घृणा के बारे में लिखता है जब उन्होंने सोचा कि उन्होंने यीशु को फंसा लिया है:
56तुम्हारा पिता इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया”। 57यहूदियों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं; फिर भी तूने इब्राहीम को देखा है? 58 यीशु ने उनसे कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूँ; कि पहिले इसके कि इब्राहीम उत्पन्न हुआ मैं हूँ। 59तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया। (यहुन्ना 8:56-59)
यीशु ने यह नहीं कहा, अब्राहम का जन्म होने से पहले, मैं था," या "अब्राहम से पहले ही मैं अस्तित्व में था।" नहीं, प्रभु जानबूझकर परमेश्वर के उसी नाम का प्रयोग करता है जिसे मूसा से कहा गया था, लेकिन उसने उसका यूनानी में अनुवाद कर दिया, ईगो आमी, वह नाम जिससे परमेश्वर ने स्वयं को इस्राएलियों को प्रकट किया था, अर्थात महान मैं हूँ। ध्यान दें कि यहूदी अभिजात वर्ग ने "मैं हूँ" कथन पर कैसी प्रतिक्रिया दी। क्योंकि वह परमेश्वर होने का दावा कर रहा था, उन्होंने परमेश्वर की निन्दा करने के लिए उसका पथराव करने को पत्थर उठा लिए।
यीशु के महान मैं हूँ होने का यह संदर्भ हमारे लिए एक अनिवार्य सत्य है क्योंकि कुछ ही वचन पहले यहुन्ना 8:24 में यीशु ने कहा, “इसलिये मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वहीं हूँ (जो मैं होने का दावा करता हूँ), तो अपने पापों में मरोगे।” (यहुन्ना 8:24)। अधिकांश अंग्रेजी अनुवादों में, "जो होने का मैं दावा करता हूँ" शब्द कोष्ठक में हैं। संपादकों ने इन शब्दों को कोष्ठक में क्यों रखा? क्योंकि यह मूल लेखन में नहीं है, यही कारण है! इसे लेख को समझने में हमारी सहायता करने के लिए जोड़ा गया है। यह इस खंड का जोर पूरी तरह से बदल देता है, है ना? यीशु स्पष्ट रूप से कह रहा है कि छुटकारा तब आता है जब हम यीशु कौन है – परमेश्वर का आलौकिक पुत्र, अर्थात महान मैं हूँ, इस वास्तविकता को समझ जाएं। उसका अर्थ स्पष्ट है। अनंत जीवन यह समझने पर निर्भर करता है कि यीशु कौन है। यदि वह केवल एक मनुष्य है, तो उसकी मृत्यु ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया। लेकिन तथ्य यह है कि परमेश्वर हमारे पास हमें पाप के दासत्व से छुड़ाने महान उद्धारकर्ता के रूप में आया क्योंकि एकमात्र परमेश्वर ही इसे पूर्ण कर सकता था। यही कारण है कि उसका नाम यीशु है, जिसका अर्थ है YHWH बचाता है। सबसे बड़ी सच्चाई जिसका सामना हमें करना है वो यह तथ्य है कि मसीहा महान "मैं हूँ" है, यानी मार्ग, सत्य और जीवन। वह कोई एक रास्ता नहीं है; वही केवल एक मार्ग, सत्य, और जीवन है!
मैं हूँ जो मैं हूँ नाम का क्या मतलब है?
"मैं हूँ जो मैं हूँ” (इब्रानी: אהיה אשר אהיה जिसका उच्चारण ईहयेह आशेर ईहयेह है, एक आम अंग्रेजी अनुवाद (किंग जेम्स बाइबिल और अन्य) है जिसका उपयोग परमेश्वर ने मूसा के उसका नाम पूछने पर किया (निर्गमन 3:14)। यह पुराने नियम में सबसे प्रसिद्ध वचनों में से एक है। इब्रानी में हायाह का अर्थ है “अस्तित्व था” या “था”; “ईहयेह” पहला व्यक्ति, एकवचन, अपूर्ण रूप है। ईहयेह आशेर ईहयेह का अर्थ सामान्यत: “मैं हूँ जो मैं हूँ” लिया जाता है, यद्यपि इसका अनुवाद होता है “मैं वैसा होऊँगा जैसा होना चाहिए”। यीशु पूर्व-अस्तित्व में है, सभी सृष्टि का प्रभु, आलौकिक मैं हूँ, स्वयं अस्तित्व रखने वाला वो सर्वस्व जिसकी आपको जीवन और धार्मिकता के लिए आवश्यकता है (2 पतरस 1: 3)।
आज आपको महान “मैं हूँ” की किस प्रकार से साथ आने की ज़रूरत है? वह वो सब कुछ है जिसकी आपको आवश्यकता है। आपको जो कुछ भी बांधे है, वो आपको उससे मुक्त करना चाहता है। उसने कहा, "हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती 11:28)। इसके बारे में क्या विचार है? आप क्यों नहीं उसे पुकारते और उसके पैरों पर अपने पाप का बोझ डाल देते हैं?
आप में से वह लोग जो समूह में हैं, क्यों न आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए प्रार्थना कर समूह में इस समय को समाप्त करें? प्रार्थना करें कि परमेश्वर उनके हृदयों को अपने वचन के लिए खोलेगा।
प्रार्थना: पिता, हमें पाप के दासत्व से मुक्त करने के लिए अपने पुत्र को संसार में भेजने के लिए धन्यवाद। हम उन लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं जिन्हें हम जानते हैं कि वो अपनी लतों और पाप के भारी भार के कारण अभी भी पीड़ा में हैं। प्रभु, कृपया उनके हृदयों को अपने प्रेम के लिए खोल, आमीन!
कीथ थॉमस
नि:शुल्क बाइबिल अध्यन के लिए वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com
ई-मेल: keiththomas7@gmail.com
ध्यान दें। पृष्ठ 7 पर, आप देखेंगे कि मैंने सभी सर्वनाम के प्रयोग को पहले व्यक्ति (सर्वनाम उपयोग) में बदल दिया है। इससे सर्वनाम त्रुटियों से निपटा जा सका, यानी, पहले, दूसरे और तीसरे व्यक्ति के उपयोग के बीच आगे-पीछे कूदना। इसकी जाँच-पड़ताल करें। यह पढ़ने में अब बहुत बेहतर लगता है। याद रखें, सर्वनामों को अपने पूर्ववर्ती उपयोग से एक-समान होना होता है। अन्यथा, हमें एक भद्दी सर्वनाम त्रुटि मिलती है जो खंड के विचार के प्रवाह को बाधित करती है।