29. The Promised Holy Spirit
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29. प्रतिज्ञा किया हुआ पवित्र-आत्मा
हम पिछले खंड से आगे बढ़ रहे हैं, यूहन्ना 14:1-14, जहाँ यीशु और ग्यारह चेले अंतिम भोज के समय ऊपरी कक्ष में गद्दियों पर एक नीची मेज के चारों ओर झुके बैठे थे। यहूदा ने विश्वासघात के अपने कृत्य को पूरा करने के लिए पहले ही कक्ष छोड़ दिया था (मत्ती 26:14-16)। जैसे-जैसे यीशु ने अपने दिल को शिष्यों के साथ साझा करना जारी रखा, मैं कल्पना करता हूँ कि वे पालथी मारे बैठे हुए मसीह के हर शब्द को थामे हुए हैं क्योंकि वह शिष्यों को दी गई कुछ सबसे गहरी शिक्षाओं दे रहा था। गतसमनी के बाग और क्रूस की पीड़ा से पहले मसीह के पास केवल कुछ समय बचा था। उसे आने वाले उन अन्धकार भरे घंटों के लिए उनके दिलों को तैयार करना था जब शिष्यों को लगेगा कि सब खत्म हो गया है, जो कि सच्चाई से बहुत परे था। वह अपने अगले शब्दों के साथ उन्हें प्रोत्साहित करते हुए आगे बढ़ा;
15यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। 16और मैं पिता से विनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। 17अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है; तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा। 18मैं तुम्हें अनाथ न छोडूंगा, मैं तुम्हारे पास आता हूँ। 19और थोड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिये कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे। 20उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपने पिता में हूँ, और तुम मुझ में, और मैं तुम में। (यहुन्ना 14:15-20)
प्रतिज्ञा किया हुआ पवित्र-आत्मा
यीशु ने वादा किया था कि वह पिता से विनती करेगा और वह "एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात् सत्य का आत्मा” (पद 16-17)। मेज पर चारों ओर झुके यह ग्यारह आदमी असाधारण "महान संत" नहीं थे। इसके बजाय, प्रभु ने उन्हें चुना क्योंकि वे आपके और मेरे जैसे, सामान्य लोग थे। धार्मिक अग्वे उन्हें ज्यादा नहीं समझते थे, उन्हें हम में से कईयों के जैसे जो इन शब्दों को पढ़ रहे हैं, अनपढ़ समझा जाता था, लेकिन जब वे पिन्तेकुस्त पर आत्मा से भर गए, तो उन्होंने उन लोगों को चकित कर दिया, जिन्होंने उनके बारे में इतना कम सोचा था; “जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का हियाव देखा, ओर यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उनको पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।” (प्रेरितों के कार्य 4:13)। शिष्यों को इसीलिए लिए चुना गया था कि वे साधारण, अनपढ़ पुरुष थे ताकि परमेश्वर की महिमा और शक्ति को प्रकट किया जा सके। वे परमेश्वर के महापुरुष नहीं थे; वे एक महान परमेश्वर के पुरुष थे। हम यह विचार करने के लिए रुक जाते हैं कि एक सर्व-सामर्थी परमेश्वर आपके और मेरे जैसे सामान्य पुरुषों और महिलाओं के साथ क्या कर सकता है, तो परमेश्वर के लोगों का चुनाव हम सभी को प्रोत्साहित करना चाहिए। लूका के सुसमाचार के लेखक, लूका ने इस पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा की बात अपनी दूसरी पुस्तक, प्रेरितों की पुस्तक में की है;
ओर उनसे मिलकर उन्हें आज्ञा दी, कि यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिस की चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो। (प्रेरितों 1:4)
यीशु ने पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा के विषय में कहा, "पिता की उस प्रतिज्ञा।" प्रतिज्ञा क्या है? यह एक घोषणा या आश्वासन है कि कोई एक विशेष कार्य करेगा या कोई विशेष बात होगी। यह प्रतिज्ञा केवल उसके साथ मेज के चारों ओर झुके बैठे चेलों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी के लिए भी दी गई है जो विश्वास करते हैं और मसीह में अपना भरोसा रखते हैं। पवित्र आत्मा परमेश्वर का उपहार है। एक उपहार अर्जित करने के लिए किसी को क्या करना होता है? कुछ भी नहीं! अन्यथा, यह एक उपहार नहीं होगा। जब लोगों को पूरे सप्ताह काम करने के लिए भुगतान किया जाता है, तो क्या उनका मालिक उन्हें उपहार के रूप में मजदूरी देता है? बिलकूल नही! उन्होंने वह हासिल करने के लिए जिसके वह हकदार हैं पूरे सप्ताह कड़ी मेहनत की थी। उपहार किसी व्यक्ति के व्यवहार पर निर्भर नहीं करता। जिस परमेश्वर की हम सेवा करते हैं, वह एक आदर्श पिता है जो अपनी संतानों को अच्छे उपहार देना पसंद करता है, और ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि उन्होंने उपहार अर्जित किया है। परमेश्वर के उपहार के विषय में कुछ खंड बाद प्रेरितों की पुस्तक में और भी कहा जाता है;
38पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लो; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे। 39क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिये भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा। (प्रेरितों 2:38-39)
परमेश्वर का चरित्र इस वचन में बंधा हुआ है कि वह सभी जो पापों की क्षमा प्राप्त करेंगे, उन्हें पवित्र आत्मा का उपहार मिलेगा। पवित्र आत्मा न केवल उन ग्यारह को दिया गया है जो मेज के चारों ओर बैठे थे, बल्कि उन सभी लोगों को भी जो विश्वास करते हैं, जिनमें दूर देशों से कई शामिल हैं, अर्थात्, वह जिन्हें सुसमाचार के संदेश की आज्ञा पर चलने के लिए बुलाया जाता है। यदि सुसमाचार आपके पास आया है और आप ईमानदारी से विश्वास करते हैं और आपने अपने जीवन के रुख को मसीह की ओर कर लिया है, तो जिस क्षण आपने विश्वास किया था, आप पर प्रतिज्ञा किए गए पवित्र आत्मा की छाप लग गई थी। प्रेरित पौलुस ने भी सभी विश्वासियों को दी इस प्रतिज्ञा के बारे में लिखा है;
13और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। 14वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी मीरास का बयाना है, कि उस की महिमा की स्तुति हो। (इफिसियों 1:13-14)
पैराक्लिटॉस
आज हम जिस खंड का अध्ययन कर रहे हैं, उसमें उसे जिसे पिता भेजेगा, उसे मूल यूनानी भाषा में पैराक्लिटॉस कहा जाता है। यह शब्द पवित्र आत्मा का वर्णन करता है और न्यू इंटरनेशनल संस्करण में इसका अनुवाद वकील के रूप में किया गया है, जो हमेशा के लिए हमारे साथ रहेगा। अंग्रेजी के द किंग जेम्स वर्जन ने पैराक्लिटॉस को दिलासा देनेवाले के रूप में अनुवादित किया गया है। जॉन वाइक्लिफ द्वारा यूनानी से अंग्रेजी के अनुवाद में पहली बार दिलासा देने वाले शब्द का प्रयोग करने के बाद से यह शब्द काफी बदल गया है। टिप्पणीकार, विलियम बार्कले लिखते हैं;
यह शब्द लैटिन शब्द फोर्टिस से आया है जिसका अर्थ है बहादुर, और एक दिलासा देने वाला कोई ऐसा व्यक्ति था जो मायूस व्यक्ति को बहादुर बनने में सक्षम बनाए। आजकल दिलासा शब्द लगभग पूरी तरह से दुःख के साथ जाता है; जब हम दुखी होते हैं, तो दिलासा देनेवाला हमारे साथ सहानुभूति रखता है। नि:संदेह, पवित्र आत्मा ऐसा करता है, लेकिन दुख:द रूप से, उसके कार्य को इस तक ही सीमित करना उसे तुच्छ जानना है। हम अक्सर चीजों का सामना करने में सक्षम होने के बारे में बात करते हैं। यह सटीक रूप से पवित्र आत्मा का कार्य है। वह हमारी अपर्याप्तताओं को दूर करता है और हमें जीवन का सामना करने में सक्षम बनाता है। पवित्र आत्मा पराजित जीवन को विजयी जीवन के साथ बदलता है।
मसीह में आने के बाद जब पवित्र आत्मा ने आप में वास किया तो आपके लिए क्या चीजें अलग थीं? क्या पवित्र आत्मा के वे दो शब्द, प्रतिज्ञा और उपहार, पवित्र आत्मा के बारे में आपके विचार बदलते हैं?
यूनानी शब्द पैराक्लिटॉस बाइबिल में केवल पाँच बार पाया जाता है, और सिर्फ नए नियम में। यहुन्ना का सुसमाचार चार बार इसका उपयोग करता हैं (यहुन्ना 14:16, 14:26, 15:26, 16:7), और इसे यहुन्ना की पहली पत्री में भी एक बार उपयोग किया गया है (1 यहुन्ना 2:1) । प्राचीन हेलेनिस्टिक ग्रंथों में, पैराक्लिटॉस शब्द का उपयोग एक वकील का वर्णन करने के लिए किया गया था, लेकिन एक पेशेवर वकील के अर्थ में नहीं जैसा कि हम आज इसका उपयोग करते हैं। वकील एक दोस्त या संरक्षक था जो किसी दोषारोपित के साथ उनकी तरफ से बोलने के लिए आता था। जब कोई नया नियम पढ़ता है, तो पवित्र आत्मा हमारे पास इतने विविध तरीकों से आता है, कि इसका वर्णन उसे सिर्फ एक वकील, परामर्शदाता या दिलासा देने वाला नहीं कहा जा सकता है। एक भी ऐसा शब्द ऐसा नहीं है जो बताता हो कि वह क्या करता है। हमें पैराक्लिटॉस के बारे अपने संग एक सहायक के रूप में सोचना चाहिए, जो ठीक उसी तरह है जैसे न्यू अमेरिकन स्टैंडर्ड वर्जन बाइबल (एन.ए.एस.बी) मूल यूनानी का अनुवाद करती है। अब जबकि यीशु शिष्यों को छोड़कर जा रहा था, तो वह उन्हें अलौकिक सहायक के बारे में बताकर आराम दे रहा था।
पवित्र आत्मा स्टार वार्स फिल्मों के स्वरुप की एक ताकत नहीं है; न तो वह पवित्र भूत है, जैसा कि एक अनुवाद में उसका नाम है, जिस से वह हमारे बच्चों के लिए डरावना बन जाता है। पवित्र आत्मा एक व्यक्ति है और पूरी तरह से परमेश्वर है। वो वह है जो हमें हर स्थिति, हर परीक्षा में मदद करता है। जब हम थके हुए होंगे तब वह बल प्रदान करेगा (2 कुरिन्थियों 12:9), जब हम किसी को परामर्श दे रहे होते हैं तो हमें अंतर्दृष्टि और जब हम एक तंग जगह में होते हैं तो हमें परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को याद दिलाता है (यहुन्ना 14:26)। जब हम निराश महसूस करते हैं तो वह हमें प्रोत्साहित करता है और जब हम एक मसीही होने के लिए न्यायाधीश के सम्मुख पेश होते हैं, तो वह हमारे द्वारा बात करेगा (लूका 12:11-12)।
पवित्र आत्मा से भरे जाने के बाद शिष्यों में आए परिवर्तन पर विचार करें। याद रखें कि वे कैसे गतसमनी के बाग में मसीह को छोड़ भाग गए थे? सोचिए कि पतरस कैसे एक छोटी लड़की (मत्ती 26:71) के सामने मसीह को कबूल नहीं कर सका और उसने यीशु को जानने से इनकार कर दिया। हालाँकि, आत्मा के आने के बाद, साहस, निर्भीकता और बहादुरी का प्रदर्शन हुआ। अब चेले, संसार से दूर, उत्तरों की खोज में ऊपरी कक्ष में बैठे जो कुछ हुआ था उसे समझने की कोशिश नहीं कर रहे थे। पिन्तेकुस्त पर आत्मा के आने के बाद, उन्हें संसार में वापस भेज दिया गया। जब उन्होंने परमेश्वर के वचन को बाँटा तो पवित्र आत्मा ने परमेश्वर के वचन का अद्भुत संकेतों के साथ उसका समर्थन किया:
29अब, हे प्रभु, उन की धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं। 30और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा; कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएं। 31जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहें। (प्रेरितों 4:29-31)
ऊपरी कक्ष में उनके अनुभव से पहले और बाद में आप शिष्यों में क्या बदलाव देखते हैं?
जब यीशु ने ग्यारह को पवित्र आत्मा के आने का वर्णन किया, तो वह उसे एक और सहायक कहता है (यहुन्ना 14:16)। इस शब्द एक और का अर्थ उसी के समान दूसरा है। वह मसीह की तरह है। वास्तव में, उसे मसीह की आत्मा कहा जाता है (रोमियों 8:9, 1 पतरस 1:11)। उसे सत्य का आत्मा भी कहा जाता है;
अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है; तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा। (यहुन्ना 14:17)
उस दिन तक, पवित्र आत्मा उनके साथ था, लेकिन यीशु ने अब ग्यारह को बताया कि, जब वह आएगा, तो वह उन में होगा। पिन्तेकुस्त के दिन, जब पवित्र आत्मा विश्वासियों पर आया और उन्हें सशक्त किया, तो उसने उन्हें मसीह के आत्मिक शरीर में बपतिस्मा (डुबो देना) दिया; “क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या यूनानी, क्या दास, क्या स्वतंत्रा एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हर एक को एक ही आत्मा पिलाया गया” (1 कुरिन्थियों 12:13)। परमेश्वर का आत्मा उनमें निवास करेगा, न कि पहले के जैसे केवल उनके साथ। पिन्तेकुस्त से पहले, यह सोच कि आत्मा उनके साथ था निम्नलिखित हो सकती है;
1) जब वे मसीह के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा रहे थे, तो उनके साथ रहने वाला मसीह की उपस्थिति का प्रसंग, विशेष रूप से क्योंकि प्रेरित यहुन्ना ने यीशु के बारे में लिखा था कि उसके पास बिना माप के आत्मा था (यहुन्ना 3:34)।
2) आत्मा का उनके साथ होने का प्रसंग इसके बारे में भी बात करना हो सकता है कि जब यीशु ने उन्हें सेवकाई के लिए भेजा था, तब उसने उन्हें बीमार लोगों पर हाथ रखने और दुष्ट-आत्माओं को बाहर निकालने के लिए अधिकार और सामर्थ्य दिया था (मत्ती 10:8, लूका 9:1-2)। यीशु के कार्यों को करने की उनकी सेवकाई आत्मा के उनके साथ होने का एक परिणाम था, लेकिन अभी तक, वह उन में वास नहीं कर रहा था। आत्मा केवल क्रूस पर मसीह के बलिदान के प्रतिस्थापन कार्य से उनके हृदयों के शुद्ध होने के परिणाम स्वरूप उनके भीतर आकर वास कर सकता था, "क्योंकि विश्वास के द्वारा उनके मन शुद्ध करके... " (प्रेरितों के कार्य 15:9)।
यीशु ने तब शिष्यों को बताया, कि जब पैराक्लिटॉस उनके भीतर आएगा, जैसा कि उसने पिन्तेकुस्त के दिन किया, पवित्र आत्मा उन्हें सिखाएगा और उन सभी चीजों की याद दिलाएगा जो मसीह ने उन्हें सिखाई थीं।
परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा। (यहुन्ना 14:26)
और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उसकी ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इस का प्रयोजन नही, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन जैसे वह अभिषेक जो उस की ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह अभिषेक सच्चा है, और झूठा नहीं; और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो। (1 यहुन्ना 2:27)
क्या इसका मतलब है कि हमें अब बाइबल शिक्षकों की ज़रूरत नहीं? आप क्या सोचते हैं? अगर हमें अभी भी शिक्षकों की जरूरत है, तो इसका क्या मतलब हो सकता है?
जब इन दो खंड की बात आती है, तो पवित्र आत्मा की हमें सब बातें सिखाने के बारे में मेरा व्यक्तिगत विश्वास यह है कि आत्मा हमें सही और गलत के बारे में जागरूकता प्रदान करेगा। यह हमारे अस्तित्व की गहराई में एक "पूर्वाभास" है। प्रेरित पौलुस लिखता है कि आत्मा हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है कि हम परमेश्वर की संतान हैं (रोमियों 8:16)। जब एक व्यक्ति सच सुनता है, तो उसके भीतर एक "आमीन" गूंजता है। एक व्यक्ति मसीह के पास एक छोटे बच्चे की तरह आ सकता है जिसके पास थोड़ा ज्ञान है कि यीशु कौन है, लेकिन आत्मा सच्चाई को प्रकट करेगा, भले ही उस व्यक्ति के पास बाइबिल की प्रति भी न हो। बेशक, हमें अभी भी परमेश्वर के वचन पर ध्यान देने की आवश्यकता है, और आत्मा हमें अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा। किसी के जीवन में, यदि वह सीखने के लिए खुला है, आत्मा की उपस्थिति (अभिषेक) से मसीह की बातें अधिक से अधिक प्रकट होंगी।
आत्मा का रहेमा वचन
जबकि पवित्र आत्मा हमारा सहायक होने के साथ-साथ हमें सभी सच्चाई में मार्गदर्शन करता है, पवित्र आत्मा हमें परमेश्वर का “रहेमा” वचन भी दे सकता है। इस तरह के प्रकाशन के शब्द को कभी-कभी आवश्यकता में सही समय पर एक उपयुक्त शब्द के रूप में संदर्भित किया जाता है। रहेमा वचन का मतलब क्या होता है? अंग्रेजी में, दो यूनानी शब्दों का अनुवाद “शब्द” से किया जाता है, अर्थात, रहेमा और लोगॉस। यूनानी शब्द रहेमा का अर्थ है एक उच्चारण या एक प्रकाशन का चित्र, दर्शन या सही समय पर प्राप्त वचन। यह पवित्र-शास्त्र का एक हिस्सा हो सकता है जो एक विश्वासी से "बात" करता है, अर्थात, एक विश्वासी के जीवन में वर्तमान स्थिति के लिए अत्यधिक प्रासंगिक, या फिर यह एक विशेष कार्य को करने के लिए एक स्पष्ट प्रकशन का विचार हो सकता है। इसके साथ अक्सर एक व्यक्ति के अस्तित्व के भीतर "पूर्वाभास" होता है। दूसरा शब्द, लोगॉस, पवित्रशास्त्र की बात करता है जिसे बाइबल में पढ़ा और उसपर मनन किया जाता है। हमें दोनों की आवश्यकता है।
जब तक कोई यूनानी अनुवाद नहीं पढ़ता, हम लेखक के इरादे को नहीं जान सकते, लेकिन हमारे समझने के लिए दोनों शब्दों का भेद जरूरी है। उदाहरण के लिए, यीशु ने कहा, "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन (रहेमा) से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा" (मत्ती 4:4)। एक अन्य स्थान पर, मसीह ने कहा, "जो बातें मैंने तुम से कहीं (रहेमा) हैं वे आत्मा है, और जीवन भी हैं" (यहुन्ना 6:63)। विचार यह है कि कुछ परिस्थितियों में परमेश्वर पवित्रशास्त्र के एक भाग में जीवन प्रदान करने वाली जान फूंकेगा जो किसी आवश्यकता को पूरा करेगा या फिर आत्मा के किसी विशेष कार्य को करने की अगवाई करेगा। उदाहरण के लिए, जब पौलुस को एशिया में परमेश्वर के वचन का प्रचार करने से रोका गया था, तो उसे मकिदुनी व्यक्ति का दर्शन मिला जो उसे यूरोप पार कर मकिदुनिया में प्रचार करने के लिए आमंत्रित कर रहा था (प्रेरितों के कार्य 16: 6-10)। पौलुस के मामले में, यह एक रहस्योद्घाटन की दृष्टि थी।
परमेश्वर का आत्मा प्रार्थना के समय में बोल सकता है, हो सकता है कि एक साधारण वाक्यांश के साथ जो किसी के दिमाग में घूमता हो, लेकिन यह पवित्रशास्त्र या एक गीत आदि से भी हो सकता है, परमेश्वर अपने लोगों से एक रहेमा शब्द बोलने के कई तरीकों का उपयोग कर सकता है, जैसा कि उन्होंने अपने शिष्यों के साथ संवाद करने के लिए कई अलग-अलग उदहारणों, कहानियों और दृष्टांतों का इस्तेमाल किया। परमेश्वर से एक सच्चा रहस्योद्घाटन, अर्थात्, एक "रहेमा" शब्द, कभी भी पवित्र शास्त्र का विरोधाभास नहीं करेगा, उससे बढ़कर नहीं बोलेगा, या शास्त्रों के खिलाफ नहीं जाएगा। हमें पवित्र आत्मा से इस प्रकार के प्रोत्साहन और निर्देशन को प्राप्त करने के लिए खुले रहने की आवश्यकता है, लेकिन हमें हमेशा किसी भी व्यक्ति, या व्यक्तिगत रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा आई किसी भी अनुभूति को परमेश्वर के वचन के साथ जाँचना चाहिए।
परमेश्वर का वचन और पवित्र आत्मा हमेशा सहमत होंगे क्योंकि वे एक ही स्रोत से हैं, और यदि कुछ परमेश्वर की ओर से आता है, तो यह अक्सर उसकी शांति के साथ होगा। लेकिन हमें युवा मसीहियों को दिशात्मक शब्द देने के बारे में सावधान रहना चाहिए। जिन लोगों के पास आत्मा के नेतृत्व में चलने का कम अनुभव है, वे प्रभु में अपने बड़ों को देख भटक सकते हैं। हमें दूसरों के लिए छोटा पवित्र आत्मा नहीं बनना चाहिए। प्रेरित पौलुस के यह शब्द हमें यहाँ मदद करते हैं, "परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातें कहता है" (1 कुरिन्थियों 14:3)। जब दूसरों को वचन देने की बात आती है, तो बताने से पहले परमेश्वर से यह पूछना बुद्धिमानी है कि क्या यह उन्हें बढ़ाएगा, प्रोत्साहित करेगा, या सहायता करेगा और खुद को इन तीन बातों तक ही सीमित रखें।
क्या आपको कभी ऐसा आभास या अनुभूति हुई है कि परमेश्वर आपसे किसी विशिष्ट परिस्थिति के बारे में बात कर रहा है? इसके बारे में बताएं।
आज्ञाकारिता: उसकी उपस्थिति की कुंजी
प्रभु अब पवित्र आत्मा की उपस्थिति का अभ्यास करने की बात करता है। आत्मा की बहुमूल्य उपस्थिति उन लोगों पर बनी रहती है जो परमेश्वर को थामे रखते हैं और मसीह की आज्ञा का पालन करते हैं;
21“जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूंगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूंगा।” 22उस यहूदा ने जो इस्करियोती न था, उससे कहा, “हे प्रभु, क्या हुआ की तू अपने आप को हम पर प्रगट किरना चाहता है, और संसार पर नहीं।” 23यीशु ने उसको उत्तर दिया, यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे। 24जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन पिता का है, जिसने मुझे भेजा। 25ये बातें मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही। 26परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा। 27मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। 28तुम ने सुना, कि मैंने तुम से कहा, ‘मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आता हूँ’; यदि तुम मुझसे प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूँ क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है। 29और मैंने अब इसके होने के पहले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम प्रतीति करो। 30मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझमें उसका कुछ नहीं। 31परन्तु यह इसलिये होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूँ: उठो, यहाँ से चलें। (यहुन्ना 14:21-31)
जब पवित्र आत्मा उसके बपतिस्में के समय प्रभु यीशु पर उतरा, तो यहुन्ना प्रेरित ने लिखा कि वह कबूतर की नाई आया और मसीह पर आकर ठहर गया;
32“मैंने आत्मा को कबूतर की नाईं आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। 33और मैं तो उसे पहिचानता न था, परन्तु जिसने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझसे कहा, कि जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है। (यहुन्ना 1:32-33)
क्या आपने कभी किसी फाखता* (एक छोटा, शर्मीला कबूतर) को उड़कर आ किसी पर बैठते देखा है? मैंने यह कभी नहीं देखा, हालाँकि मैंने कबूतरों को ऐसा करते ट्राफलगर स्क्वायर में आमतौर पर भोजन करने के लिए देखा है! जब मेरी पत्नी और मैं इंग्लैंड में रहते थे, तो यह लंदन में लोगों को घुमाने ले जाने के लिए हमारी पसंदीदा जगहों में से एक जगह थी। लंदन का यह क्षेत्र वह स्थान प्रतीत होता है जहाँ सभी कबूतर इकट्ठा होते हैं! चार कबूतर आपके हाथ पर बैठेंगे और आपके सिर पर एक स्थान के लिए लड़ेंगे! लेकिन जब भी मैं वहाँ गया हूँ, मैंने कभी किसी व्यक्ति पर फाखता के आराम से बैठने के बारे में नहीं सुना है, न तो वहाँ और न ही उन बत्तीस से अधिक देशों में जहाँ मैं गया हुआ हूँ। भले ही फाखता कबूतर के समान जीन के होते हैं, वे व्यवहारिक रूप से बहुत अलग होते हैं। यहाँ पवित्रशास्त्र के उपरोक्त खंड में, हम आत्मा को प्रभु यीशु पर एक कबूतर की तरह उतरने और ठहरने का वर्णन देखते हैं। आत्मा फाखता की तरह नहीं दिखता था; उसका वर्णन फाखता की तरह आने का किया गया है। जब उसने यह लेख लिखा तो यहुन्ना के मन में क्या था?
फाखता बहुत शर्मीले और फुर्तीले होते हैं। मेरा कहने का यह मतलब है कि जरा सी बात उन्हें डरा देती है। यदि अचानक शोर या कोई तेज़ हलचल होती है, तो वे उड़ जाते हैं। जब हम विश्वासी बनते हैं, और आत्मा हम में रहने आता है, तो वह अनंत काल तक के लिए मसीही जन में बना रहता है। वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। हालाँकि, हम पर आत्मा की उपस्थिति आसानी से कुछ हद तक शोकित हो सकती है जब हम अनाज्ञाकारिता के कारण आत्मा के साथ कहीं कुछ घनिष्ठता खो देते हैं। प्रेरित यहुन्ना द्वारा अभिषेक कहे जाने वाले आत्मा की उपस्थिति हमारे साथ बनी रहेगी; “और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उसकी ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इसका प्रयोजन नही, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन जैसे वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह सच्चा है, और झूठा नहीं; और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो”(1 यहुन्ना 2:27)। आत्मा की उपस्थिति को पवित्र विश्वास के रूप में संरक्षित किया जाना और त्वरित पश्चाताप द्वारा पोषित किया जाना चाहिए। यदि हमें मसीह के साथ निकटता चाहिए और हम चाहते हैं कि आत्मा हम पर बना रहे, तो हमें तुरंत पश्चाताप करने और हर पाप का त्याग करने की आवश्यकता है। आत्मा यीशु के ऊपर उतरा और ठहर गया, जिसका अर्थ है कि क्योंकि उसने प्रभु पर विश्राम किया, वह सहज और जैसे अपने घर में था।
आर.टी. केंडल ने अपनी पुस्तक द सेंसिटिविटी ऑफ द स्पिरिट में इसे इस तरह समझाया है;
यह कि पवित्र आत्मा उतरा और यीशु पर ठहर गया, हमें यीशु के बारे में उतना ही बताता है जितना यह पवित्र आत्मा के बारे में बताता है। पवित्र आत्मा यीशु के साथ जैसे अपने घर में था। वे एक दूसरे के साथ परस्पर समायोजित थे। यीशु में कोमल आत्मा को दूर करने के लिए कोई कटुता या घृणा नहीं थी, न कोई कुढ़न, न घबराहट या प्रतिशोध की भावना। मत्ती द्वारा "नम्र और मन में दीन" के रूप में वर्णित, यीशु झगड़ा नहीं या रोया नहीं (मत्ती 11:29), और “वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा” (मत्ती 12:20)। वह हमेशा एक व्यक्ति के विश्वास को बहाल करने के लिए तैयार था और उसने कभी दूसरे को चोट पहुँचाने के लिए वार नहीं करा।
प्रेरित पौलुस ने हमें निर्देश दिया; “और परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिस से तुम पर छुटकारे के दिन के लिये छाप दी गई है” (इफिसियों 4:30)। पवित्र आत्मा में भावनाएँ होती हैं, और हम अपने द्वारा की गई चीजों से उसकी भावनाओं को चोट पहुँचा और शोकित कर सकते हैं। यूनानी शब्द जिसका अनुवाद "शोकित" (ल्यूपियो) लुपी शब्द से आया है, जिसका अर्थ है "दर्द" या "दुःख।" यह आनंद का विपरीत है।
हम प्रेरित पौलुस से जानते हैं कि पवित्र आत्मा को शोकित किया या बुझाया जा सकता है। पौलुस के शब्दों में, "आत्मा को न बुझाओ" (1 थिस्सलुनीकियों 5:19)। बुझाओ शब्द यूनानी शब्द बेनूमी से अनुवादित हैं, जिसका अर्थ है, "दबा के बुझाना।" "प्राचीन यूनानी संसार में, यह आमतौर पर आग बुझाने या जलती हुई वस्तुओं को बाहर निकालने के लिए संदर्भित होता है। पिन्तेकुस्त के दिन, पवित्र आत्मा ऊपरी कक्ष में इकट्ठे हुए लोगों के पास ऐसे आया जैसे कि "आग की सी जीभें" (प्रेरितों के कार्य 2:3)। आत्मा को नहीं बुझाने की पौलुस की चेतावनी का अर्थ केवल यह हो सकता है कि आत्मा की आग बुझाई जा सकती है।”
आत्मा के भाव को सुनना और प्रभु के प्रति आज्ञाकारी होना इस संसार में आत्मा के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की कुंजी है। यीशु ने इस खंड में शिष्यों को यह स्पष्ट किया;
23यीशु ने उसको उत्तर दिया, यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे। 24जो मुझ से प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन पिता का है, जिसने मुझे भेजा। (यहुन्ना 14:23-24)
हमें न केवल मसीह की शिक्षाओं को जानने का प्रयास करना चाहिए, बल्कि जो हम सीखते हैं, उसपर चलना भी चाहिए। प्रभु कहता है कि यह इस बात का प्रमाण है कि आप एक मसीही हैं, अर्थात, आप यीशु द्वारा सिखाई गई बातों को मानते हैं। वह परमेश्वर-प्रेमियों की तलाश में है। जो लोग यीशु मसीह के साथ एक प्रेम संबंध में हैं, वे वह हैं जो उसकी शिक्षाओं पर चलते हैं, न केवल तब जब मनुष्यों की नज़रें उन पर होती है, बल्कि तब भी जब किसी की नज़र उन पर नहीं होती, केवल परमेश्वर की। आप आत्मा के प्रति हृदय से जितना अधिक आज्ञाकारी होंगे, आत्मा की सामर्थ्य आप में उतनी ही अधिक प्रवाहित होगी। आत्मा के साथ कदम से कदम मिला कर चलना (गलतियों 5:16-18) इस तरह से जीना है जहाँ हम पवित्र आत्मा के साथ अपने जीवन को चलाने में सहमत हों। एक परेड करती सैन्य टुकड़ी की तरह, हमें एक दूसरे के करीब रहने और आत्मा के अनुरूप ताल से ताल मिलाए रखने की आवश्यकता है। जब आप पवित्र आत्मा की ताल से भटक जाते हैं, तो अपने दृष्टिकोण और कार्यों को बदल पश्चाताप करने के लिए त्वरित रहें ताकि आप जल्द उसके साथ कदम से कदम मिला उसके मार्गों में चल सकें। यदि आप अपने आप को परमेश्वर के वचन और परमेश्वर के आत्मा से ताल बनाए रखते हैं, तो परमेश्वर की उपस्थिति आपके साथ और आप में होगी। आपके आसपास के लोगों के लिए आत्मा की उपस्थिति स्पष्ट होगी।
इस संसार का राजकुमार
इसके बाद यीशु यह कहते हुए उन्हें आने वाले समय के लिए तैयार करता है;
मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझमें उसका कुछ नहीं। (यहुन्ना 14:30)
इस संसार का राजकुमार कौन है? यीशु के यह कहने का क्या मतलब है, "मुझमें उसका कुछ नहीं?"
हर बार जब हम पाप करते हैं, तो हम शत्रु के हमारे चरित्र में घुसकर उसकी इच्छा को करने की ओर प्रभावित करने के लिए द्वार और अधिक खोल रहे हैं। यीशु के साथ, यह पूरी तरह भिन्न था। उसने शत्रु को कभी भी अपने जीवन के द्वार में एक ऊँगल जगह भी नहीं दी। यीशु कह रहा था, "मुझमें उसका कुछ नहीं।" मसीह को सबसे अच्छी तरह जानने वालों की गवाही यह थी कि वह हर तरह से परिपूर्ण था और उसने कभी पाप नहीं किया (1 पतरस 2:22)। केवल पापहीन होने के कारण ही वह पाप के लिए पूर्ण निर्दोष बलिदान हो सका कि वो हमारे लिए और हमारे जैसे वह स्थान ले सका। हमें अपने जीवन में शत्रु की किसी भी पकड़ के लिए द्वार बंद कर देना चाहिए। उसे अपने जीवन में कोई भी पहुँच न दें। प्रेरित यहुन्ना क्षमा के बारे में जो हमें सिखाता है वह कितना महत्वपूर्ण है। उसने कहा, "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (1 यूहन्ना 1: 9)। केवल यीशु का लहू ही हमें हमारे पाप से मुक्त करता है।
एक काल्पनिक कहानी है कि स्वर्गदूत गेब्रियल ने यीशु से क्या पूछा होगा जब वह वापस पिता की दायीं ओर आया; "ठीक है, अब जब आप स्वर्ग में वापस आ गए हैं, तो पृथ्वी पर आपका कार्य कौन करेगा?" यीशु ने कहा, "जब मैं पृथ्वी पर था, तो मैंने अपने आस-पास ऐसे लोगों का एक समूह इकट्ठा किया जो मुझ पर विश्वास करते थे और मुझसे प्रेम करते थे। वे सुसमाचार का प्रचार करते रहेंगे और कलीसिया के कार्य को आगे बढ़ाएंगे।" गेब्रियल हैरान था। "आपका मतलब है पतरस, जिसने तीन बार आपका इनकार किया और बाकी सभी वो जो जब आप सूली पर चढ़ाए गए भाग गए थे? क्या आप हमें बताना चाह रहे हैं कि आपने उन्हें अपना कार्य जारी रखने के लिए वहाँ छोड़ा है? हम्म (शान्ति)। दूसरी योजना क्या है? और अगर यह योजना काम नहीं करी तो आप क्या करेंगे?" यीशु ने कहा, "मेरे पास कोई और योजना नहीं है। इसे काम करना ही होगा।" निश्चय, यीशु के पास अपने चेलों के प्रयासों पर निर्भर रहने के अलावा और कोई योजना नहीं है!
तो, योजना यही है। यह एक ऐसी योजना है जो आपके और मेरे आत्मा के मार्गदर्शन और सामर्थ्य में साथ मिलकर काम करती है, अर्थात, एक ऐसी योजना जो हममें से प्रत्येक पर निर्भर करती है कि हम अपनी प्रतिभा, वरदान, समय और संसाधनों का उपयोग सुसमाचार की भलाई के लिए करें। लेकिन, हम अक्सर आराम से बैठे रहते हैं और कहते हैं, "निश्चित रूप से, कोई और इसे कर लेगा।" नहीं, मसीहत यह नहीं है। यह हम में से प्रत्येक के लिए परमेश्वर की ओर से पवित्र आत्मा की आज्ञाकारिता में रहने और अपने परमेश्वर की महिमा करने का आह्वान है। कोई दूसरी योजना नहीं है। हम ही पहली योजना हैं।
प्रार्थना: पिता, हम मांगते हैं कि आप हमें अपनी आवाज़ के प्रति संवेदनशील रहने में मदद करें। जब हम आपके निकट आते हैं, तो आप हमारे निकट आएँ। आपके आत्मा को खेद पहुँचाने वाली हर चीज़ को दूर रखने में हमारी मदद करें। हमें आपकी आवश्यकता है!
कीथ थॉमस
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