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31. The World Hates the Disciples

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31. संसार शिष्यों से बैर रखता है

यीशु और उसके शिष्यों ने एक साथ अपने अंतिम भोज का आनंद ले लिया है, और अध्याय चौदह का अंत बताता है कि वे सभी जैतून पर्वत पर गतसमनी के बागीचे की ओर जाने के लिए ऊपरी कक्ष छोड़ देते हैं (14:31)। यहूदा पहले ही मसीह को धोखा देने के लिए समूह को छोड़ धार्मिक अग्वों के पास जा चुका था। गतसमनी का बगीचा मंदिर टापू के पूर्व में चार या पांच सौ गज की दूरी पर था, इसलिए यह संभावना है कि वे मंदिर के पास से गुजरने के दौरान और बात करने के लिए रास्ते में रुक गए थे। गतसमनी के बाग में यहूदा और सैनिकों के साथ प्रभु यीशु की भेंट में अभी भी दो या तीन घंटे बाकी थे। वह जानता था कि जल्द ही उसे धोखा दिया जाएगा और उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। यह इस संदर्भ में है कि यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अपने दिल की बातें कहकर उन्हें उनके ऊपर आगे आने वाले सताव के लिए तैयार किया। मसीह के सबसे अंधकारमय लम्हों में भी, अर्थात्, उसके प्राण की घोर अंधेरी रात, उन लोगों के लिए उसकी चिंता जिनसे वह प्रेम करता था उसके स्वयं के लिए विचारों पर भारी पड़ी। यह हमें चरवाहे की देखरेख और अपनी भेड़ों के प्रति उसके प्रेम के विषय में बहुत कुछ बताता है।

 

संसार मसीह के शिष्यों से बैर रखता है

 

18यदि संसार तुमसे बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उसने तुमसे पहले मुझ से भी बैर रखा। 19यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, वरन मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया है इसीलिये संसार तुमसे बैर रखता है। 20जो बात मैने तुम से कही थी, कि “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता”, उसको याद रखो; यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे। 21परन्तु यह सबकुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते। 22यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उनके पाप के लिये कोई बहाना नहीं। 23जो मुझसे बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है। 24यदि मैं उनमें वह काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया। 25और यह इसलिये हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, कि “उन्होंने मुझ से व्यर्थ बैर किया”। (यहुन्ना 15:18-25)

 

यीशु शिष्यों से कहता है कि संसार उनसे बैर रखेगा (पद 18), जब वह संसार के बारे में बात करता है तो उसका क्या तात्पर्य है? संसार शिष्यों से बैर क्यों रखेगा?

 

चाहे हम इसे स्वीकार करना चाहें या नहीं, हम सभी एक युद्ध में हैं। सम्पूर्ण मानवता अच्छे और बुरे, शैतान और परमेश्वर के बीच अनदेखी लौकिक युद्ध की चपेट में हैं। मांस-और-लहू के व्यक्तियों के संसार में क्या होता है उसे दुष्ट आत्माएं प्रभावित कर रही हैं। शैतान, सभी सच्चे मसीही विश्वासियों का विरोधी और शत्रु, इस विश्व व्यवस्था पर नियंत्रण रखने की कोशिश कर रहा है जिसे उसने परमेश्वर के विरुद्ध स्थापित किया है। बाइबल हमें बताती है कि शैतान इस संसार का देवता, राजकुमार या सरदार है;

 

अब इस जगत का न्याय होता है, अब इस जगत का सरदार निकाल दिया जाएगा। (यहुन्ना 12:31)

 

मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ में उसका कुछ नहीं। (यहुन्ना 12:31)

 

उस भौतिक ग्रह में जो परमेश्वर द्वारा बनाया गया है, और उस संसार में जिससे हमें प्रेम करने को कहा गया है, अंतर है;

 

तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। (1 यहुन्ना 2:15)

 

प्राकृतिक संसार का मन नहीं होता, इसलिए वह दुष्ट नहीं हो सकता है और शिष्यों से नफरत नहीं कर सकता है। जिस संसार के बारे में यीशु बात कर रहा है, वो संसार की वह व्यवस्था है जहाँ उसके मूल्यों का प्रभु और उसके शिष्यों संग विरोध है। यहुन्ना आगे अपने पत्र में "संसार" के मूल्यों को विस्तार से बताता है;

 

16क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। 17और संसार और उसकी अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा। (1 यहुन्ना 2:16-17)

 

संसार मानव समाज के परमेश्वर से अलग और उसके बिना स्वयं को नियोजित कर बना है, और मसीह के सभी शिष्यों को प्रभु यीशु द्वारा इस पतित विश्व व्यवस्था में पहुँच उन अनमोल लोगों को बचाने की बुलाहट दी गई है जिनको छुड़ाने के लिए मसीह ने मृत्यु सही है। इसी कारण से, अपनी अनदेखी बुरी ताकतों के साथ यह विश्व व्यवस्था हमेशा प्रभु यीशु मसीह की कलीसिया के विरोध में रहेगी। हमें, उसके गवाहों को, ऐसे चमकना है जैसे अंधकार में ज्योति। संसार की संस्थाएँ, हमारी शिक्षा प्रणाली, संगीत, राजनीति, कार्यस्थल, और हाँ, यहाँ तक कुछ मामलों में धर्म भी, परमेश्वर के विरोध में हैं। यदि आपको इस पर संदेह है, तो उस समाज की उच्च श्रेणियों में जाएँ जिसमें आप रहते हैं और प्रभु यीशु के सुसमाचार का प्रचार करें और देखें कि क्या होता है! वो विरोध में होंगे, और आपको अपने विश्वास के लिए सताया जाएगा। प्रेरित पौलुस अपने चेले को इसी बात की चेतावनी देते हुए लिखते हैं; "पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे" (2 तीमुथियुस 3:12)

 

विश्व व्यवस्था हमेशा उन लोगों के विरोध में होगी जिनके पास ऐसे मूल्य, लक्ष्य और आकांक्षाएं हैं जो स्थापित संसार से भिन्न हैं। यदि आप "प्रवाह के खिलाफ जाते हैं", तो आप हमेशा संघर्ष का अनुभव करेंगे। यहाँ हम जिस बारे में बात कर रहे हैं, वह एक अलग तरीके की सोच के प्रतिरोध से कहीं ज्यादा है। यहाँ हम जिस प्रतिरोध की चर्चा कर रहे हैं, उसका स्वरूप आत्मिक है। यह हमारे प्रभु यीशु के विरोधी बल हैं जो इस संसार की प्रणाली के प्रवाह के खिलाफ जाने पर आपका सामना करेंगे। आप अनदेखी ताकतों, प्रधान्ताओं और शक्तियों के विरोध में होंगे।

 

क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। (इफिसियों 6:12)

 

यदि आप इस संसार के तरीके से अलग चीजें करना शुरू करते हैं और आपको चौकस नजर से देखा जाता है या मित्रों और परिवार द्वारा आपकी आलोचना की जाती है, तो आश्चर्यचकित न हों। यदि आप अपने विश्वास के बारे में अपरोक्ष हैं, तो विरोध और सताव निश्चित रूप से आएगा। यीशु ने अपने शिष्यों को चेतावनी दी कि यह सामान्य होगा और हमें इसकी उम्मीद करनी चाहिए। उसने यह शब्द न केवल उसे सुनने वालों के लिए बल्कि हमारे लिए भी कहे हैं जो इक्कीसवीं सदी में जीते हैं।

 

क्योंकि हम सताव की उम्मीद करते हैं, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि हम, मसीही के रूप में, संसार से दूर हो जाएं या छिप जाएं। जीवन के सभी क्षेत्रों में और सभी सामाजिक वर्गों के लोगों को यीशु ने जो किया है उस सुसमाचार को सुनने की आवश्यकता है, और हमें, हम जिस भी व्यवसाय, शिक्षण संस्थान, या परिस्थिति में मौजूद है, उसमें परमेश्वर के मूल्यों और सच्चाई को जीने की आवश्यकता है। सभी मसीहियों को पवित्र आत्मा की अगुवाई में चल इस डर का गुलाम नहीं होना चाहिए कि संसार क्या कहेगा या करेगा, लेकिन जीवन के जिस भी क्षेत्र में परमेश्वर ने उन्हें रखा है उन्हें वहाँ मसीह की ज्योति को चमकाना है। लेकिन, यदि हम संसार से उलझ इसके मूल्यों का पीछा करते हैं, तो हम अलग कैसे दिखेंगे? यदि हम इस संसार के बंधनों में फंस कर अपनी ज्योति को फीका कर देंगे, तो हम औरों को मसीह की ज्योति में कैसे आकर्षित करेंगे? लोग वास्तविक/सच्चे जीवन की तलाश कर रहे हैं, और जहाँ यह स्पष्ट होगा, वहाँ एक कटनी होगी जहां लोग मसीह की ओर खिंचे चले आएंगे, लेकिन यदि हम विश्वासियों के रूप में, संसार से भिन्न नहीं होंगे, तो ऐसा नहीं होगा। यदि यह आपकी दशा है, तो परमेश्वर से आपके भीतर मसीह के लिए जुनून की आग को प्रज्वलित करने के लिए कहें और संसार की व्यवस्था के प्रेम से मुक्त होने की खोज करें।

 

आप अपने समाज में ऐसे कौन से बड़े जाल देखते हैं जिनके चंगुल से बचना मुश्किल है? वे क्या हैं? क्या आपको लगता है कि ये चीजें या गतिविधियाँ आपको परमेश्वर के प्रति समर्पित होने से रोक रही हैं? "संसार में रहकर संसार के न होने" का क्या मतलब है? (यहुन्ना 17:15-16)

 

जब हम विश्वासियों के रूप में यीशु की ज्योति को दूसरों तक लेकर जाते हैं, तो हम उन लोगों द्वारा विरोध का सामना कर सकते हैं जो शत्रु के हथियार हैं। उदाहरण के लिए, एक बार मेरी पत्नी सैंडी और मैं, इंग्लैंड की हमारी कलीसिया के कुछ अन्य लोगों के साथ एक दूसरे शहर में सड़कों पर लोगों के साथ मसीह को बाँटने गए। जब हम मोटरसाइकिल गिरोह के आठ या नौ लोगों के पास पहुँचे तो हमने प्रतिरोध का सामना किया। हमने उनसे प्रभु यीशु के बारे में बात की। वे बहुत विरोधी और मौखिक रूप से अपमानजनक थे। जब हमने उनके साथ बात की, तो वे बढ़-चढ़ कर धौंस दिखाने लगे। पुरुषों में से एक, फ्रैंक, दूसरों से बहुत आगे बढ़ रहा था। हमारे विरोध में वह कटु आलोचक बन गया। यह सोचकर कि हम उन्हें क्रोधित कर रहे हैं, हम उन्हें छोड़ उस घर की ओर अपने समूह के बाकी सदस्यों के साथ मिलने चल दिए जहाँ से हम साथ निकले थे।

 

लगभग दो घंटे बाद, वही व्यक्ति जो हमारी आलोचना कर रहा था, हमारे समूह के अन्य लोगों के साथ दरवाजे से भीतर आया। वह अपने ऊपर पवित्र आत्मा के सामर्थ और दोष-सिद्धि के कारण काँप रहा था। बिलकुल, हमारे समूह ने उसका अच्छा स्वागत किया। हम उस व्यक्ति में परिवर्तन पर चकित थे; वह अब इतना खुला और विनम्र था और उसने अपने जीवन का विवरण साझा करना शुरू कर दिया। उसने उस रात मसीह के पीछे चलने का फैसला किया। हालाँकि फ्रैंक सबसे ज्यादा बहस कर रहा था, यह इसलिए था क्योंकि वह चुनौती का सामना कर रहा था और वह पिता के पास खिंचा जा रहा था। हम एक भीतर के संघर्ष के गवाह थे। यदि लोग सुसमाचार या आपकी गवाही पर प्रतिक्रिया देते हैं, तो हो सकता है कि वे अपने दिलों में काम कर रहे पवित्र आत्मा की दोष-सिद्धि पर प्रतिउत्तर दे रहे हों।

 

यदि आप जो प्रभु कर रहा है उसके पीछे जाएंगे और प्रार्थना के साथ उसे बल देंगे, तो हो सकता आप उस व्यक्ति को मसीह में विश्वास करते देखें। ऐसे लोगों के लिए हार न मानें, बल्कि प्रार्थना में लगे रहें और उन्हें परमेश्वर का प्रेम दर्शाएं। यदि आप एक शिष्य हैं और यीशु को प्रकट करना चाहते हैं, तो यदि आपको तिरस्कार और क्रोध की प्रतिक्रिया मिले, आपको आश्चर्य नहीं करना चाहिए। याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं। याद रखें कि प्रभु आपके साथ है और जिस व्यक्ति के साथ आप मसीह को बाँट रहे हैं वह उसके हृदय में कार्य कर रहा है।

 

आपके आसपास ऐसे लोग रहते हैं, शायद आपके साथ काम भी करते हैं, जो आपके भीतर वास करने वाले आत्मा से भिन्न आत्मा द्वारा निर्देशित और चलाए जाते हैं;

 

1और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। 2जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है(इफिसियों 2:1-2 बल मेरी ओर से जोड़ा गया है)

 

लोगों की सभी प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती हैं, लेकिन हम यह नहीं जान सकते कि परमेश्वर उनके हृदयों में क्या कर रहा है। लेकिन प्रभु उनके हृदयों को देखता है और पवित्र आत्मा द्वारा अपने वचन की गवाही देगा। ऐसे लोग हमेशा होंगे जो परमेश्वर के अनुग्रहकारी आमंत्रण को हाँ कहेंगे और कुछ जो इनकार करेंगे। जहाँ परमेश्वर के वचन का सत्य चमकता है, वहाँ आत्मिक युद्ध और कभी-कभी, सताव भी होगा।

 

परमेश्वर विश्वासियों को सताव से क्यों गुजरने देता है?

जब हम अपने विश्वास के लिए सताव से गुजरते हैं तो हमारे पास परमेश्वर में एक गहरा विश्वास आता है। जहाँ तक हम जानते हैं, प्रेरित पौलुस ने कलीसिया के शुरुआती दिनों में अपने विश्वास के लिए किसी अन्य की तुलना में सबसे अधिक कष्ट झेला, लेकिन वह अपने जीवन में एक ऐसे स्थान पर गए थे, जहाँ उन्होंने यह समझा कि मसीह की सामर्थ उनपर तब और महत्वपूर्ण रीती से ठहरी रहती थी जब वह सबसे कमजोर और सबसे निर्बल महसूस करते थे;

 

9और उसने मुझ से कहा, “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है; इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे। 10इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूँ; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ। (2 कुरिन्थियों 12:9-10))

 

जब हम अपने आप में निर्बल होते हैं, तो परमेश्वर अपनी सामर्थ को हमारे उपर ठहरता है और हमारे शब्दों को शक्तिशाली रूप से प्रयोग करता है। जब प्रेरित पौलुस ग्रीस के कुरिन्थ में आए, तो ऐसे धार्मिक लोगों द्वारा उनका विरोध हुआ जो उनके साथ अपमानजनक थे (प्रेरितों के कार्य 18:5-6), लेकिन परिणाम स्वरुप हम क्या देखते हैं? प्रभु उसके शब्दों द्वारा ऐसे लोगों को सुसमाचार की ओर खींचता है जिन्हें उसने पूर्व में ही जीवन के लिए ठहराया था;

 

9और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, “मत डर, वरन कहे जा, और चुप मत रह। 10क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ; और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” 11सो वह उनमें परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा। (प्रेरितों 18:9-11)

 

क्या यह आसान नहीं होगा अगर परमेश्वर हमें वह लोग दिखा दें जो अनन्त जीवन के लिए पूर्व में ही ठहरा लिए गए हैं? सुसमाचार का निमंत्रण सभी को जाता है, लेकिन हम उस छिपे हुए कार्य को नहीं देख पाते हैं जो परमेश्वर लोगों के हृदयों में कर रहा है। हम नहीं जानते कि यदि हम अपने चारों ओर मौजूद लोगों के साथ सुसमाचार बाँटने में आज्ञाकारी रहते हैं तो परमेश्वर क्या करेगा। यदि हम उस पर भरोसा करते हैं, तो परमेश्वर हमारे जीवन से महान फल उत्पन्न कर सकता है, सताव में भी। आइये, अब हम अपने खंड में आगे बढें;

 

दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता

 

20जो बात मैने तुम से कही थी, कि “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता”, उसको याद रखो; यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे। 21परन्तु यह सबकुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते। (यहुन्ना 15:20-21)

 

आप आज के समय में मसीहियों को किस तरह सताया जाता देखते हैं, और जब एक विश्वासी का उसके आसपास के अन्य लोगों द्वारा विरोध किया जाता है, तो उनके समर्थक कौन हैं, और विश्वासी को किस तरह प्रतिउत्तर देना चाहिए?

 

हमें इस संसार से छिपना नहीं है, लेकिन हमें सामना करते हुए युद्ध के मैदान में एक अलग भावना के साथ आना है। जब यीशु का लोगों द्वारा विरोध हुआ, तो उसने प्रतिस्पर्धी आलोचनात्मक भावना के साथ उत्तर नहीं दिया। उसका आत्मिक युद्ध क्रोध का जवाब एक नरम उत्तर के साथ देना था; "कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है" (नीतिवचन 15: 1) सच्चा आत्मिक युद्ध शत्रु जो करना चाहता है उसके विपरीत करना है। लोग कभी आपके शत्रु नहीं हैं। लोग "इस संसार की आत्मा" से प्रभावित हैं, जो हमेशा हमारे प्रभु के विरोध में रहा है। हम शब्दों या मुक्कों से नहीं लड़ते हैं, लेकिन प्रार्थना के द्वारा;

 

क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। (2 कुरिन्थियों 10:4)

 

कुछ लोगों पर दुष्ट आत्मा दूसरों की तुलना में कुछ अधिक प्रबल है। जितने अधिक लोग अपने आप को इस संसार की आत्मा के प्रति देते हैं, उतना ही वे उसी आत्मा द्वारा शासित और नियंत्रित होते हैं। जब इस संसार की बुरी आत्मा लोगों का नेतृत्व करती और उन्हें प्रभावित करती है, तो वह पहचान सकती है कि आप पर प्रभु का नाम है। याद रखें कि आपको एक कीमत के साथ मोल लिया गया है और आप अपने स्वयं के नहीं हैं (1 कुरिन्थियों 6:20)। जब आपने अपना जीवन प्रभु को दिया था, तो परमेश्वर की आत्मा ने आप पर स्वामित्व की मुहर लगा दी थी (इफिसियों 4:30)। आप पर परमेश्वर की उस मुहर के कारण, विपरीत आत्मा वाले लोग आत्मा के अभिषेक और अधिकार पर प्रतिक्रिया देंगे। जब स्क्किवा के अविश्वासी सात पुत्रों ने उसी तरह से बुरी आत्मा को बाहर निकालने की कोशिश की जिस तरह से प्रेरित पौलुस ने की थी, तो दुष्ट आत्मा ने उन पर मसीह के आत्मा को नहीं देखा। यह सात पुत्रों की एक बड़ी गलती थी:

 

13परन्तु कितने यहूदी जो झाड़ा फूंकी करते फिरते थे, यह करने लगे, कि जिनमें दुष्टात्मा हों उन पर प्रभु यीशु का नाम यह कहकर फूंके कि जिस यीशु का प्रचार पौलुस करता है, मैं तुम्हें उसी की शपथ देता हूँ। 14और स्क्किवा नाम के एक यहूदी महायाजक के सात पुत्र थे, जो ऐसा ही करते थे। 15पर दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, कि यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूँ; परन्तु तुम कौन हो? 16और उस मनुष्य ने जिसमें दुष्ट आत्मा थी; उन पर लपककर, और उन्हें वश में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया, कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे। (प्रेरितों 19:13-16 बल मेरी ओर से दिया गया है)

 

हमें इस तरह के अंशों को पढ़ते हुए घबराहट नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन लोगों ने आत्मा के उनके ऊपर उतरे बिना ही परमेश्वर के अधिकार को प्रयोग करने का प्रयास किया। उन पुरुषों के पास परमेश्वर के स्वामित्व की मुहर नहीं थी, लेकिन यदि आप एक विश्वासी हैं, तो आपके पास है, और दुष्ट आत्माएं आप पर परमेश्वर के आत्मा को देख सकती हैं, और उन्हें प्रभु के सामने झुकना होगा। हमें भरोसा करना है कि हम अकेले नहीं हैं और हम पर परमेश्वर का आत्मा टिका हुआ है।

 

सहायक (वकील) हमारे साथ होगा

 

उस रात जब प्रभु यीशु ने अपने आस-पास ग्यारहों को देखा, तो उसने उन्हें याद दिलाया कि आत्मा के आने से उन्हें उस सताव और विरोध को सहने में मदद मिलेगी जो वह जानता था उनपर आएगा।

 

26परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास भेजूंगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा। 27और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो। (यहुन्ना 15:26-27)

 

ग्यारह शिष्यों को पवित्र आत्मा के आने की प्रतीक्षा करनी थी; वह उनका सहायक होगा, उनका पैराकलीट, वह जो उनकी मदद करने के लिए उनके साथ होगा। पिन्तेकुस्त के दिन आत्मा का आना उस आत्मिक युद्ध का प्रतिकार करेगा जो संसार की आत्मा द्वारा उनके विरुद्ध किया जायेगा। मुझे यकीन है कि जिस तरह से बातचीत आगे बढ़ रही थी, शिष्यों को यह पसंद नहीं आया होगा, लेकिन प्रभु सभी चीजों को जानता था, और वे उसपर और उसके शब्दों पर भरोसा करना सीख गए थे। उनके विरुद्ध सताव शुरू होने से पहले, उसने उन्हें चेतावनी दी कि ऐसा होगा। उन्हें आरधनालयों से बाहर निकाल दिया जाएगा, और जो कोई भी उन्हें मार डालेगा, उसे लगेगा कि वह परमेश्वर की सेवा कर रहा है;

 

1ये बातें मैंने तुमसे इसलिये कहीं कि तुम ठोकर न खाओ। 2वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ। 3और यह वे इसलिये करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं 4 परन्तु ये बातें मैंने इसलिये तुम से कहीं, कि जब उनका समय आए तो तुम्हें स्मरण आ जाए, कि मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था; और मैंने आरम्भ में तुमसे ये बातें इसलिये नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। (यहुन्ना 16:1-4)

 

यीशु के समय में एक यहूदी व्यक्ति के लिए आराधनालय के बाहर निकाला जाना एक आपदा समान था। मित्रता और सामुदायिक जीवन आराधनालय के इर्द-गिर्द ही था। शाऊल, जो प्रेरित पौलुस बना, इसी समान के धोखे से प्रभावित था। एक धार्मिक आत्मा ने उसे परमेश्वर की सच्चे कलीसिया पर हमला करने में धोखा दिया। उन्होंने लिखा, "यहूदी मत में जो पहले मेरा चाल चलन था, तुम सुन चुके हो; कि मैं परमेश्वर की कलीसिया को बहुत ही सताता और नाश करता था" (गलातियों 1:13)। मुझे यकीन है कि यह कलीसिया ही थी जिसने उसके लिए प्रार्थना की थी, और प्रभु ने इस वास्तविकता के लिए उसकी आँखें खोल दीं कि वह उन लोगों में से एक था जो कि वह मसीह के विश्वासियों को सता कर परमेश्वर को सेवा की पेशकश कर रहा था (पद 2)

 

इस इक्कीसवीं सदी में, संसार भर में धार्मिक लोगों द्वारा इस तरह का सताव हो रहा है। यीशु ने चेलों और उन के विश्वासियों को चेतावनी दी कि वे अपने आराधनालय, मस्जिदों, मंदिरों और समुदायों से मसीह की खातिर बाहर कर दिए जाएंगे और हमें इसकी अपेक्षा करनी चाहिए। हमें उन लोगों के लिए जिनकी हम अगवाई करते हैं सुसमाचार को चिकनी चुपड़ी बातों से नहीं समझाना चाहिए। हम में से उन लोगों के लिए जो मसीह यीशु में हैं आगे मुश्किल समय हो सकता है। बाइबल बताती है कि आगे अंत के समय में एक ऐसा काल आएगा जहाँ कई लोग सताव के कारण विश्वास से दूर हो जाएंगे।

 

9तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएंगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे। 10तब बहुतेरे ठोकर खाएंगे, और एक दूसरे से बैर रखेंगे। (मत्ती 24:9-10)

 

जिस तरह आत्मा के सामर्थ में आने से शुरुआती शिष्यों को बल प्राप्त हुआ था, मुझे विश्वास है कि सच्चे विश्वासी सताव को सहन करेंगे और उन दिनों में उन्हें महान सामर्थ दी जाएगी। अंतिम दिनों में क्षत्रु कलीसिया पर सब कुछ लादने की कोशिश करेगा। संसार के इतिहास में किसी भी समय से अधिक, संयुक्त रूप से पिछली सभी शताब्दियों की तुलना में इस समय अधिक मसीही लोग अपने विश्वास के लिए मारे गए हैं। हमारे भाई-बहन चीन, रूस, रोमानिया, अल्बानिया, क्यूबा, ​​निकारागुआ, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, इंडोनेशिया, सूडान, भारत, सीरिया, मिस्र जैसे देशों में सताव झेल रहे हैं, और यह सूची आगे बढ़ती चली जाती है।

 

1563 में, जॉन फॉक्स ने उन लोगों के लिए एक स्मारक शुरू किया, जिन्होंने सुसमाचार की गवाही देने के लिए अपना जीवन खो दिया, जो स्तीफुनुस से शुरू कर उनके समय के सबसे हालिया (प्रोटेस्टेंट) शहीदों के साथ समाप्त हुआ, यानी, वे जो ब्लडी मैरी (रानी मैरी (1516-1558)) के शासनकाल के दौरान मारे गए। फोक्सेस बुक ऑफ़ मार्टयर्स को हाल के वर्षों में मसीह के लिए सताए लोगों को शामिल करने के लिए हाल ही में अघतनीकरण किया गया है। यहाँ चीन की कई कहानियों में से एक है जो 1969 से है;

 

कम्युनिस्ट श्रमिक शिविर में कई मसीहियों की मौत के बारे में एक प्रत्यक्षदर्शी विवरण प्राप्त हुआ था। एक जवान लड़की के हाथ और पैर बांध ऐसे लोगों के घेरे के बीच में घुटने टेकने पर मजबूर किया गया था जो उसे पत्थर या गोली मारने की आज्ञा दे रहे थे। गाँव के कई लोगों ने पत्थर उठाने से इनकार कर दिया और उन्हें तुरंत गोली मार दी गई। पत्थरों की बरसात के नीचे उस लड़की की मृत्यु हो गई - उसका चेहरा वैसे ही चमक रहा था जैसा संत स्तीफुनुस के बारे में तब कहा गया था जब उसे सताया गया था और पत्थराव कर मार दिया गया था (प्रेरितों के कार्य 6:15)। बाद में, पत्थर फेंकने वालों में से एक टूट गया और उसने मसीह को उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया।

 

क्या आपने कभी मसीह में अपने विश्वास के कारण तिरस्कार या शत्रुता का अनुभव किया है? जो हुआ था उसे बाँटें।

परमेश्वर ने हमें अकेला नहीं छोड़ा है। जिस तरह प्रभु ने शिष्यों से कहा कि उन्हें वह होना है जो प्रभु के लिए बहादुरी से खड़े रहेंगे, तो उसी तरह हमें भी अपने समय में बुराई के खिलाफ बोलना चाहिए।

 

फोक्सेस बुक ऑफ़ मार्टयर्स में साएरस के बिशप थिओडोरेट द्वारा एक कहनी बताई गई है, जो लगभग 400 ईस्वी में सीरिया में रहने वाले टेलिमाकस नाम के एक शख्स के बारे में है। वह एक गैर-धार्मिक व्यक्ति के रूप में बड़ा हुआ और उसने खुद को सांसारिक सुखों के सुपुर्द कर दिया। उसने तब तक अपने जीवन का अर्थ खोजने की कोशिश में कई साल बिताए जब तक उसे यह नहीं बताया गया कि प्रभु यीशु उसे उसके पाप से मुक्ति दिलाने के लिए क्रूस पर मारा गया था। एक मसीही बनने के बाद उसके जीवन में एक उल्लेखनीय बदलाव आया। वह एक मठ में प्रवेश कर भिक्षु बन गया, और वर्ष 402 ईस्वी में, प्रार्थना करते समय, युवा भिक्षु ने परमेश्वर को उससे यह कहते पाया कि वह मठ छोड़कर दूसरों से वही संदेश बाँटें जिसने उसके जीवन को बदल दिया था। परमेश्वर इस बारे में बहुत स्पष्ट था कि उसे कहाँ जाना है। यह रोम के पश्चिम में कई मील की दूरी पर था। इस बात की अनिश्चितता के साथ कि उसे रोम की यात्रा क्यों करनी चाहिए, वह बुलाहट की आज्ञाकारिता में लम्बी पैदल यात्रा पर निकल गया।

 

जब वह रोम गया, तो वह भीड़ में फंस गया; सैकड़ों लोग उत्साहपूर्वक कहीं जा रहे थे। उसे यह नहीं पता था कि वे कहाँ जा रहे हैं, लेकिन उनकी उत्सुकता उसपर हावी हो गयी और वह भीड़ के सैलाब में बहता गया और खुद को रोमी कोलिज़ीयम के अंदर पाया। रोमियों ने अभी-अभी गोथ्स को हराया था, और सम्राट के सम्मान में एक बड़ी जीत का जश्न चल रहा था। सम्राट के बक्से के सामने विशाल तलवारबाज़ खड़े थे। "हम, जो मरने वाले हैं, आपको सलाम करते हैं," वे एकजुट होकर चिल्लाये। तुरंत, टेलीमाकस ने याद किया कि उसे विशाल तलवारबाज़ों (ग्लेडियेटर्स) के खेलों के बारे में बताया गया था, लेकिन भिक्षु ने सोचा था कि यह सिर्फ एक लोक-गाथा थी। अब उसे पता चला कि यह सच था।

 

जैसे ही विशाल तलवारबाज़ों ने लड़ाई शुरू की, हथियार इधर-उधर बिखर गए, और हर जगह खून बह गया, और भीड़ और अधिक के लिए चिल्ला रही थी। जबकि भीड़ क्रूरतापूर्ण बर्बरता के उत्साह में उमड़ रही थी, टेलीमाकस के सामने लोग मर रहे थे। वह न केवल उससे घृणित हुआ जो अखाड़े में चल रहा था, बल्कि उससे भी जो उसने दर्शकों के बीच देखा। उस पल में, उसने महसूस किया कि इसे रुकना होगा। अपनी जगह से ही वह विशाल तलवारबाज़ों की ओर रुख कर के चिल्लाया; "यीशु के नाम में, रुक जाओ!" लेकिन भीड़ के उन्माद में यह किसी ने नहीं सुना।

 

लगभग बिना सोचे-समझे, वो दीवार फांद के लड़ाकों के अखाड़े में कूद गया। ग्लेडियेटर्स इस अप्रत्याशित घुसपैठ पर आश्चर्यचकित थे और उन्होंने कुछ पल लड़ना बंद कर दिया, जबकि टेलीमाकस अपनी पूरी आवाज़ से फिर से चिल्लाया, " यीशु के नाम में, रुक जाओ!" दर्शकों की भीड़ ने सोचा कि यह लड़ाई का हिस्सा था और यह सोच कि खून और हिंसा के बीच में यह एक मसखरा था, उन्होंने हँसना शुरू कर दिया। विशाल तलवारबाज़ों में से एक ने अपनी तलवार से टेलीमाकस पर वार किया, लेकिन वह बाल-बाल बचा। उसके साथ ही, अन्य विशाल तलवारबाज़ अपनी तलवारों के साथ उसकी ओर आने लगे। टेलीमाकस अपनी सम्पूर्ण आवाज़ से फिर से बार-बार चिल्लाया, "यीशु के नाम में, रुक जाओ!"

 

जब उन्होंने सुना कि वह यहोवा के नाम से क्या आदेश दे रहा था, तो भीड़ ने हँसना बंद कर दिया। वह तलवारबाज़ों की तलवारों को चकमा देते हुए, प्रत्येक बीतते पल के साथ चिल्लाता रहा, "मसीह के प्रेम के कारण, रुक जाओ!", "यीशु के नाम में, रुक जाओ!" जब धूल बैठ गई, तो टेलीमाकस सीने में तलवार के साथ जमीन पर पड़ा था। भीड़ में सन्नाटा छाया था। ऐसा कहा गया था कि उस समय उसके शब्द अभी भी कोलिज़ीयम में गूँज रहे थे, "यीशु के नाम में, रुक जाओ।" लम्बे समय के बाद, एक के बाद एक व्यक्ति पूरी चुप्पी और अविश्वास के साथ वहाँ से निकल गए।

 

कोलिज़ीयम के बीच में मृत भिक्षु और भीड़ की प्रतिक्रिया को देख सम्राट और उसके मेहमान भी चुपचाप खड़े हुए, मुड़े और कोलिज़ीयम छोड़ चले गए। कुछ मिनटों के बाद, तलवारबाज़ों ने अपनी तलवारें नीचे रख दीं, और वे भी चले गए। उस विशाल कोलिज़ीयम में केवल उस युवा भिक्षु का पतला, बेजान शरीर था। इतिहास का दावा है कि यह कोलिज़ीयम में अंतिम तलवारबाज़ी का खेल था। भीड़ की ओर चीखते हुए उस आदमी की याद और भीड़ की रक्तपिपासु वासना की छवि ने रोमी दिलों और दिमाग को बदल दिया। एक घंटे के भीतर सम्राट ने भविष्य में रोमी साम्राज्य के भीतर तलवारबाज़ी के किसी भी खेल को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी कर दिया

 

रोम में अब और खुनी तलवारबाज़ी के खेल और खेल के रूप में नरसंहार नहीं रहा। यह सब इसलिए था क्योंकि एक आदमी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा, "यीशु के नाम में, रुक जाओ!" यीशु इस संसार के प्रवाह के विरुद्ध जाने के लिए आया, इस संसार में कार्य करने वाली आत्मा के विरुद्ध खड़ा होने के लिए और उस हर एक व्यक्ति को छुड़ाने को जो उसके प्रेम के संदेश का प्रतिउत्तर देंगे। मसीह में भाइयों और बहनों, इस संसार की आत्मा हमें बुराई के खिलाफ खड़े होकर टेलीमाकस के साथ "यीशु के नाम में, रुक जाओ!" चिल्लाने के बजाय समझौता करने को उकसाएगी।

 

हम भी अपने विश्वास के लिए मारे जा सकते हैं, लेकिन केवल यही संसार सबकुछ नहीं है। मृत्यु के पर्दे की दूसरी ओर हमारे प्रभु संग आनंद मानाने के लिए अनंत काल है। हमें इस संसार के तौर-तरीकों को देखने और अन्याय, दर्द, कड़वाहट, क्रोध, और हत्या का कारण बनने वाली चीजों के विरोध में खड़े होने की जरूरत है। यीशु के नाम में, रुक जाओ! जब हम अपने पड़ोसियों पर अत्याचार, अपने नेताओं का लालच और व्यवस्था को सबसे ज़रुरतमंदों की मदद में विफल होते देखते हैं, तो हमें खड़े होकर कहने की ज़रूरत है, यीशु के नाम में, रुक जाओ!”

 

प्रार्थना: पिता, हम उन सभी के लिए प्रार्थना करते हैं जो आज के समय में मसीह के नाम के लिए सताए जा रहे हैं। उन्हें और हमें बुराई से बचाएँ। हमारी प्रार्थना, पिता, कमजोरी के बीच उनकी मदद करने के लिए अनुग्रह की है। आपकी सामर्थ और महिमा आपकी पीड़ित कलीसिया पर ठहरे, यीशु के नाम में, आमिन!

 

कीथ थॉमस

-मेल: keiththomas@groupbiblestudy.com

वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

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Matthew 24:14

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