top of page

33. Grief Will Turn To Joy

हिंदी में अधिक बाइबल अध्ययन देखने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

33. विलाप आनंद में बादल जाएगा

यह मसीह के क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले की आखिरी रात थी। चेलों और यीशु ने शाम का शुरुआती हिस्सा यीशु के हमारे पापों के छुटकारे के लिए अपनी जान देने से पहले, एक मेज के चारों ओर झुके हुए उसके साथ अपने अंतिम भोज का आनंद लेते हुए बिताया था। यहूदा महायाजक और महासभा के सैनिकों और निजी रक्षकों को लेकर आने के लिए कुछ समय पहले उन्हें छोड़ के जा चुका था। यह संभव है कि, जब यीशु यह शब्द कह रहा था जिन्हें हम पढ़ रहें हैं, तो यहूदा और भ्रष्ट अगवे और सैनिक गतसमनी के बगीचे में जाने के लिए अपनी मशालें जला रहे थे। यहुन्ना के सुसमाचार के अध्याय पंद्रह और सोलह, ग्यारह चेलों को रात के नाटकीय मोड़ से पहले दिए गए अंतिम निर्देश, जैतून पर्वत पर मंदिर टापू के पूर्व में, गतसमनी के बगीचे के रास्ते में कहे गए थे। अध्याय चौदह में मसीह के शब्दों के बाद उन्होंने ऊपरी कक्ष छोड़ दिया था (यहुन्ना 14:31)

 

जब प्रभु ने ग्यारह शिष्यों से कहा कि वह उन्हें छोड़ चला जाएगा, तो वे दुःख से भर गए थे कि अब वह उनके साथ नहीं होगा (यहुन्ना 16:5-7)। हमारे पिछले अध्ययन (यहुन्ना 16:5-16) में, यीशु ने उन्हें उसके जाने पर पवित्र आत्मा के आने के बारे में, और जब वह आएगा तब वह क्या-क्या करेगा, बताकर उन्हें सांत्वना देना शुरू किया था। आज हम जिन पदों का अध्ययन कर रहे हैं, उनमें प्रभु का लक्ष्य उन्हें यह बता कर कि वे उसे फिर से देखेंगे, उन्हें उत्साहित करने का था।

 

फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे (पद 16-22)

 

16थोड़ी देर तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।” 17तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, कि थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे? और यह इसलिये कि मैं पिता के पास जाता हूँ?” 18तब उन्होंने कहा, “यह थोड़ी देर जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।” 19यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझ से पूछना चाहते हैं, उन से कहा, “क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछ-पाछ करते हो, कि थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे। 20मैं तुम से सच सच कहता हूँ; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा; तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा। 21जब स्त्री जनने लगती है तो उस को शोक होता है, क्योंकि उस की दु:ख की घड़ी आ पहुंची, परन्तु जब वह बालक जन्म चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती। 22और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा।” (यहुन्ना 16:16-22)

 

इस रात से पहले के महीनों में, यीशु ने शिष्यों को बताया था कि उसका उद्देश्य संसार के पाप के लिए फिरौती के रूप में अपना जीवन देना है (यहुन्ना 6:33), और अब वह कह रहा था कि, कुछ ही देर में, वे उसे और नहीं देखेंगे और, थोड़ी देर के बाद, वे उसे देखेंगे (पद 16) मृतकों में से पुनरुत्थान उनके लिए एक नई अवधारणा थी। उन्हें पता था कि हनोक और एलिय्याह को मृत्यु देखे बिना स्वर्ग ले जाया गया था। वे लाज़र के उत्थान के गवाह थे, लेकिन वे जानते थे कि लाज़र को अंतत: मरना तो है। जब हम मसीह के पुनरुत्थान को पीछे मुड़कर देखते हैं, तो यह इतिहास का एक सत्य है और हमारे लिए यह समझने में आसान है कि क्या हुआ था, लेकिन जब यीशु ने शिष्यों को बताया कि उस रात क्या होगा, वे सोचने लगे कि किसी के लिए मृत्यु से उबर पाना कैसे संभव हो सकता है।

 

निम्नलिखित इंग्लैंड में मैनचेस्टर इवनिंग न्यूज के पृष्ठों से एक सच्ची कहानी है;

 

पिछले बुधवार, सलफोर्ड स्टेशन की ओर बढ़ती एक टैक्सी में एक यात्री ने ड्राइवर से एक प्रश्न करने के लिए उसका ध्यान पाने के लिए आगे झुकते हुए धीरे से उसे कंधे पर थपथपाया। ड्राइवर ने चिल्लाकर, टैक्सी पर नियंत्रण खो दिया, लगभग एक बस को टक्कर मार दी, और डिवाइडर पर चढ़ते हुए, एक बड़ी खिड़की से सिर्फ चंद इंच दूर जाकर रुका। कुछ मिनटों के लिए, टैक्सी में सब शांत था। फिर काँपते हुए ड्राइवर ने कहा, "क्या आप ठीक हैं? मुझे बहुत अफ़सोस है, लेकिन आपने मुझे बहुत डरा दिया था।" बुरी तरह से काँपते हुए यात्री ने ड्राइवर से माफी मांगी और कहा, "मुझे एहसास नहीं था कि केवल कंधे पर थपथपाना किसी को इतनी बुरी तरह चौंका सकता है।" ड्राइवर ने जवाब दिया, "नहीं, नहीं, मुझे बहुत खेद है; यह पूरी तरह से मेरी गलती है। आज टैक्सी चलाने का मेरा पहला दिन है। मैं 25 वर्षों से एक कफन ले जाने वाली गाड़ी चला रहा था।

 

जैसा कि उस टैक्सी के ड्राइवर के मामले में था, किसी व्यक्ति के मृत्यु से जीवन में वापस आना उसकी समझ के दायरे से परे था। जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो यह एक भयावह सोच है। उसके शब्दों से शिष्यों को आश्चर्य हुआ होगा।

 

यह खंड जिसे हम आज हम पढ़ रहे हैं (पद 16-22), ऐसा है जिसे डबल एंटेंडर के रूप में जाना जाता है, एक शब्द या वाक्यांश जिसकी दो व्याख्याएं हो सकती हैं। डबल एंटेंडर क्या है? पूरे पवित्र शास्त्र में, विभिन्न खंडों के दोनों शाब्दिक और आत्मिक अर्थ है। उदाहरण के लिए, जब पौलुस इफिसुस की कलिसिया को लिखता है तो वह एक पुरुष और स्त्री के विवाह के बारे में दो स्तरों पर बात करता है; 31 इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनों एक तन होंगे। 32यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूँ। ”(इफिसियों 5: 31-32) वह मानवीय स्तर पर एक रिश्ते के बारे में लिखता है, अर्थात्, एक पुरुष और स्त्री के विवाह के बारे में, लेकिन, जैसा कि वह खुलासा करता है, वह मसीह और उसकी कलिसिया के बारे में, डबल एंटेंडर के रूप में सोच रहा है।

 

हम यहेजकेल की भविष्यवाणी में एक समान उदाहरण देखते हैं, जो यहेजकेल 28: 12-18 में सोर के राजा के लिए कही गई है। एक स्तर पर, भविष्यद्वाक्ता एक सांसारिक राजा से बात कर रहा है, लेकिन साथ ही साथ, यह स्पष्ट हो जाता है कि यहोवा शैतान के बारे में भी बात कर रहा है, जो अदन की वाटिका में था और एक अभिषिक्त चरूब (स्वर्गदूत) था। यहुन्ना के सुसमाचार में हमारे इस खंड में, यीशु डबल एंटेंडर में उन्हें बताता है कि कुछ ही समय में, जब वह तीन दिनों के बाद मृतकों में से जीवित हो उठेगा, वह उसे फिर से देखेंगे। लेकिन, डबल एंटेंडर में अर्थ यह है कि जब वह अपने पिता की महिमा (मत्ती 16:27) में दूसरी बार आएगा, तो वह सभी विश्वासियों को देखेगा, और यह क्या ही अद्भुत दिन होगा!

 

मसीह की मृत्यु पर संसार आनंद क्यों करेगा? "तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा" (यहुन्ना 16:20)

 

जब यीशु संसार के बारे में बात कर रहा है, तो वह इस संसार की उस बुरी व्यवस्था के बारे में बात कर रहा था जो परमेश्वर के शासन और प्रभुत्व का विरोध कर रही है। इस संसार की आत्मा समाज में संपूर्णता से परमेश्वर का नाम मिटा देना चाहती है। मेरा मानना ​​है कि क्रूस पर जब प्रभु यीशु ने अपनी आत्मा को त्यागा होगा तब दुष्ट आत्मिक शक्तियाँ खुशी से चीखे होंगे, और शायद, उनके बीच जश्न भी हुआ होगा। प्रेरित यहुन्ना ने कहा कि " सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है" (1 यहुन्ना 5:19), इसलिए अंधकार में पड़ी दुष्ट आत्माएं जो अगवों पर अपना नियंत्रण रखती थीं, उन्होंने क्रूस पर मसीह का मजाक उड़ाने में आनंद लिया;

 

41इसी रीति से महायाजक भी शास्त्रियों और पुरनियों समेत ठट्ठा कर करके कहते थे, इस ने औरों को बचाया, और अपने को नहीं बचा सकता। 42यह तो “इस्राएल का राजा है”। अब क्रूस पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। 43उस ने परमेश्वर का भरोसा रखा है, यदि वह इस को चाहता है, तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इस ने कहा था, कि “मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ  (मत्ती 27:41-43)

 

इसराइल के शासकों और अंधकार की दुष्ट आत्माओं (संसार) ने उनके सामने प्रभु यीशु के संग हुई क्रूरता और अत्याचार में आनन्द उठाया। यह संभव है कि उसकी मृत्यु पर उनकी मुस्कुराहट और खुशी तब गायब हो गई हो जब उसकी आत्मा अपना शरीर छोड़ कर शोल (इब्रानी) या यूनानी भाषा में अधलोक में उतरी। अचानक, जब यीशु की आत्मा उसके अत्याचार की हुई देह से मुक्त हुई, तो अधलोक के अंधकार में एक महान प्रकाश देखा गया। जो बुराई के प्रति समर्पित थे, वे निश्चित रूप से परमेश्वर की मसीह की मृत्यु द्वारा संसार के पाप के लिए भुगतान की सिद्ध योजना को पूरा होते देख क्रोधित हुए होंगे। जैसा हमने अपने अंतिम अध्ययन में कहा था, मसीह की मृत्यु अनदेखी दुष्ट आत्मा के लिए एक चौंकाने वाली बात थी; "जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो तेजोमय प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते" (1 कुरिन्थियों 2:8) यीशु ने यह कहते हुए पुष्टि की थी मृत्यु के समय वह पृथ्वी के भीतर उतरेगा:

 

योना तीन रात दिन जल-जन्तु के पेट में रहा, वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा। (मत्ती 12:40)

 

यीशु के पृथ्वी के भीतर रहने के दौरान जो कुछ हुआ, उसके बारे में हमें ज्यादा नहीं बताया गया है, लेकिन जब प्रभु यीशु ने मृत्यु और अधलोक की कुंजी हमारे दुश्मन, शैतान से छीनी, तो मुझे शैतान के और उसके दुष्ट दूतों और दुष्ट आत्माओं के चेहरों को देखना बहुत अच्छा लगता। (प्रकाशितवाक्य 1:18)। शायद, जब हम अपने असली घर पहुंचेंगे, तो हम उस घटना को दोबारा देख पाएंगे! तीन दिन बाद, जब यीशु मृतकों में से जी उठा, तो उसके चेलों को बहुत आनंद का अनुभव हुआ। उसी तरह, इस संसार में हम जिस पीड़ा और दुःख का अनुभव करते हैं, वह हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता के प्रकट होने पर पूर्ण आनन्द में बदल जाएगा। प्रभु इसे एक महिला की प्रसव पीड़ा के समान देखता है (यहुन्ना 16:21)। इस संसार के क्लेश से गुजरने पर होने वाली पीड़ा और तनाव अपने प्रभु को देखने और हमारे नश्वर शरीरों को अमर शरीर होने के सम्पूर्ण रूपान्तरण में देखने के आनंद में भुला दिए जाएंगे (1 कुरिन्थियों 15:51-53)। अगर आप उसके लोगों में से एक हैं, तो उस दिन आप अच्छे लग रहे होंगे!

 

प्रभु उन्हें अपने जाने के परिणामों में से एक के बारे में बताकर अपने शिष्यों को प्रोत्साहित करना जारी रखता है।

 

प्रार्थना का नया दिन (पद 23-30)

 

23उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे; मैं तुम से सच सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। 24अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं मांगा; मांगो तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए। 25मैंने ये बातें तुम से दृष्टान्तों में कही हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तों में और फिर नहीं कहूँगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊंगा। 26उस दिन तुम मेरे नाम से मांगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से विनती करूंगा। 27क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिये कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है, और यह भी प्रतीति की है, कि मैं पिता कि ओर से निकल आया। 28मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूँ, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूँ।” 29उसके चेलों ने कहा, “देख, अब तो तू खोलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता। 30अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और तुझे प्रयोजन नहीं, कि कोई तुझ से पूछे, इस से हम प्रतीति करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है। (यहुन्ना 16:23-30)

 

जब प्रभु साढ़े तीन वर्ष तक चेलों के साथ था, तो उन्होंने उससे प्रार्थना करने का तरीका सिखाने को कहा था (लूका 11:1)। ऐसा लगता है कि वे आत्मा के आने तक प्रार्थना में अप्रभावी महसूस करते थे। शायद, उन्होंने उनसे पारिवारिक परिस्थितियों के लिए विशिष्ट प्रार्थना के बारे में भी पूछा होगा, या हो सकता है, उन्होंने उसे उनके लिए प्रार्थना करने के लिए कहा हो। अब, यीशु उन्हें बताता है कि अब वे उससे कुछ नहीं मांगेंगे, क्योंकि प्रार्थना के माध्यम से सभी शिष्यों के पास सीधे पिता तक पहुंचना संभव होगा। पद 23, अध्याय 14-16 में यीशु के विदाई के वचनों में चार स्थानों में से अंतिम है, जहाँ प्रभु कलीसिया के युग में प्रार्थना के नए दिन के बारे में बात करता है (यहुन्ना 14:13-14; 15:7,16; 16:23-26)। उस दिन का उसका उल्लेख एक सामान्य दिन नहीं है; बल्कि, वह एक समय अवधि की बात कर रहा है जिसमें हम अब हैं, अर्थात्, वह समय जो पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा के उड़ेले जाने के साथ शुरू हुआ था। ग्यारह चेलों को, और विश्वासियों के रूप में हमें, प्रार्थना के विषय में यह सुंदर वचन दिए गए हैं। जब यीशु क्रूस पर मृत हुआ, जबकि याजक लोग मंदिर के भीतर ही सेवा कर रहे थे, तब मनुष्य को परमेश्वर से अलग करने वाला पर्दा ऊपर से नीचे तक फट गया (मत्ती 27:51)। पर्दा यहोवा परमेश्वर और पापी मानवता के बीच अलगाव का प्रतीक था (यशायाह 59:2)

 

जब मसीह हमारे लिए और हमारे स्थान पर एक प्रतिस्थापन की मृत्यु मरा, तो परमेश्वर ने अपने लोगों को दिखाया कि परमेश्वर और मनुष्य के बीच अब एक नया मार्ग खुला था; "19हमें यीशु के लहू के द्वारा उस नए और जीवते मार्ग से पवित्र स्थान में प्रवेश करने का हियाव हो गया है। 20जो उस ने परदे अर्थात अपने शरीर में से होकर, हमारे लिये अभिषेक किया है" (इब्रियों 10:20) मसीह ने पाप के ऋण का भुगतान किया; "जो पाप से अज्ञात था, उसी को उस ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धामिर्कता बन जाएं" (2 कुरिन्थियों 5:21), और हम मसीह में हमारे स्थान के कारण एक साफ विवेक और आत्मविश्वास के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में सकते हैं। यीशु ने हमें केवल एक ही शर्त दी है, जब उसने कहा था, "यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो मांगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा" (यहुन्ना 15:7) बने रहने का अर्थ उसके साथ संबंध में रहना है, उसके मूल जीवन और सामर्थ का हम में और हमारे द्वारा प्रवाहित होना। उसने कहा है कि हम प्रार्थना में परमेश्वर से मसीह के नाम में मांग सकते हैं;

उस दिन तुम मुझ से कुछ न पूछोगे; मैं तुम से सच सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। (यहुन्ना 16:23)

 

पद 23-30 में यीशु तीन बार अपने नाम से मांगने के बारे में बात करता है (पद 23, 24, 26) यीशु के नाम से प्रार्थना करने का क्या अर्थ है?

 

यह शब्द हमारे लिए एक नई फेरारी या लेम्बोर्गिनी मांगने के लिए नहीं हैं, लेकिन उसके नाम में प्रार्थना करने का अर्थ उसके उद्देश्यों के अनुरूप या उसकी इच्छाओं के अनुसार प्रार्थना करना है। वह जो कुछ भी जिसे हम परमेश्वर की इच्छा में (मेरे नाम से) से मांगते हैं, हमें मिलेगा। टिप्पणीकार कॉलिन जी. क्रूस ने यीशु के नाम में प्रार्थना के बारे में कहा है;

 

उसके नाम में मांगने का अर्थ उसके चरित्र के अनुसार मांगना हो सकता है (बाइबिल के समय में, लोगों के नाम उनके व्यक्तित्व को दर्शाते थे)। लेकिन, एक अधिक सरल व्याख्या यह है कि "यीशु के नाम में" का अर्थ है यीशु की खातिर, अर्थात्, पिता को महिमा देने के लिए उसकी इच्छा और उद्देश्य के अनुरूप।

 

आज विभिन्न धर्मों में, परमेश्वर को पापी मनुष्य पर क्रोधित देखा जाता है। यीशु लोगों के प्रति पिता के प्रेम के हृदय को प्रकट करने के लिए आया था। उसने कहा, "जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है" (यहुन्ना 14:9) जब हम यीशु के नाम में पिता से मांगते हैं, तो यह ऐसा है जैसे हम मसीह में खड़े होकर उसके अधिकार के साथ प्रार्थना में पिता से मांग रहे हैं।

 

लगभग 2600 साल पहले, भविष्यवक्ता यशायाह ने कलीसिया के युग और परमेश्वर के लोगों के लिए प्रार्थना के इस नए समय या दिन के बारे में बात की थी। उसने भविष्यवाणी की कि एक समय ऐसा आएगा जब परमेश्वर प्रार्थना करने से पहले ही उत्तर देगा।

 

वे यहोवा के धन्य लोगों का वंश ठहरेंगे, और उनके बाल-बच्चे उन से अलग न होंगे। 24उनके पुकारने से पहिले ही मैं उन को उत्तर दूंगा, और उनके मांगते ही मैं उनकी सुन लूंगा। (यशायाह 65:23-24)

 

भविष्यवक्ता का यह कहने से क्या मतलब है कि परमेश्वर प्रार्थना करने से पहले ही उत्तर देगा? आपको क्या लगता है कि प्रार्थना का उत्तर मिलने में क्या बाधाएं आती हैं?

 

निम्नलिखित अफ्रीका में काम करने वाली एक डॉक्टर द्वारा लिखी गई सच्ची कहानी है;

 

एक रात मैंने प्रसव वार्ड में एक माँ की मदद करने में कड़ी मेहनत की थी; लेकिन भरसक प्रयास के बाद भी, वह, समय से पहले जन्मे एक छोटे शिशु, और एक रोती हुई दो साल की बच्ची हमारे साथ छोड़ मर गई। हमें बच्चे को जीवित रखने में कठिनाई होती, क्योंकि हमारे पास कोई इनक्यूबेटर नहीं था (हमारे पास इनक्यूबेटर चलाने के लिए बिजली नहीं थी)। हमारे पास शिशु के आहार की भी कोई विशेष सुविधा नहीं थी।

 

यद्यपि हम भूमध्य रेखा पर रहते थे, रातें अक्सर भयंकर हवाओं के साथ सर्द होती थीं। एक छात्र दाई ऐसे बच्चों के लिए हमारे खास डब्बे को लेने गई जिसमें कपास की रुई थी जिसमें बच्चे को लपेटते थे। दूसरी आग बढ़ाने और एक गर्म पानी की बोतल भरने के लिए चली गई। वह जल्द ही तनावग्रस्त मेरे पास मुझे यह बताने के लिए आई कि बोतल भरने में वह फट गई थी (ऊष्णकातिबंधीय, ज़्यादा गर्मी और उमस वाली जलवायु में रबर आसानी से फट जाती है) "और यह हमारी आखिरी गर्म पानी की बोतल है," उसने कहा! जैसा कि पूर्व में कहावत है कि टूटे घड़े पर रोने का कोई फायदा नहीं, वैसे ही मध्य अफ्रीका में, पानी की बोतलों पर रोने का कोई फायदा नहीं, वे पेड़ों पर नहीं उगतीं, और जंगली रास्तों में कोई दवा की दुकान नहीं होती। "ठीक है," मैंने कहा, "बच्चे को सुरक्षित रूप से आग के जितना पास रखा जा सकता है, रख कर, बच्चे को तेज़ हवाओं से बचाए रखने के लिए बच्चे और दरवाजे के बीच सो जाओ। तुम्हारा काम बच्चे को गर्म रखना है।”

 

अगली दोपहर, जैसा मैं अक्सर करती थी, मैं अनाथालय में मेरे साथ प्रार्थना का चुनाव करने वाले इच्छुक बच्चों के संग प्रार्थना करने चली गई। मैंने युवाओं को प्रार्थना करने के लिए विभिन्न विषयों के सुझाव दिए और उन्हें नन्हे शिशु के बारे में बताया। मैंने बच्चे को गर्म रखने की हमारी समस्या के बारे में बताया, जिसमें गर्म पानी की बोतल का जिक्र था, और यह भी कि अगर बच्चे को ठंड लग जाएगी तो वह जल्द ही मर सकता है। मैंने उन्हें उसकी साल की बहन के बारे में भी बताया, जो इसलिए रो रही थी क्योंकि उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। प्रार्थना के समय, एक दस वर्षीय लड़की रूथ ने हमारे अफ्रीकी बच्चों की सामान्य कुंदता के साथ प्रार्थना की। "कृपया कर के परमेश्वर," उसने प्रार्थना की, "आज हमें एक गर्म पानी की बोतल भेजें। परमेश्वर, कल इसका कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि बच्चा मर जाएगा, इसलिए कृपया इसे आज दोपहर ही भेजें। जबकि मैं अंदर ही अंदर इस साहसिक प्रार्थना से हाँफी भर रही थी, उसने आगे कहा, “और जब आप ऐसा कर ही रहे हैं, तो कृपया आप छोटी बच्ची के लिए गुड़िया भी भेज दें, ताकि वह जान जाए कि आप सच में उससे कितना प्रेम करते हैं?” जैसा बच्चों की प्रार्थना के साथ अक्सर होता है, मैं कठिनाई में पड़ गई थी। क्या मैं ईमानदारी से आमिनकह सकती हूँ? मुझे विश्वास नहीं था कि परमेश्वर ऐसा कर सकता था। अरे हाँ, मुझे पता है कि वह सब कुछ कर सकता है; बाइबल ऐसा कहती है। लेकिन क्या इसमें सीमाएँ नहीं हैं? परमेश्वर इस तरह की विशेष प्रार्थना का उत्तर मुझे मेरी मातृभूमि से एक पार्सल भेजकर ही दे सकता है।

 

मैं उस समय लगभग चार साल से अफ्रीका में थी, और मुझे कभी भी, घर से कोई पार्सल नहीं मिला था। वैसे भी, अगर कोई मुझे एक पार्सल भेजता भी, तो गर्म पानी की बोतल कौन डालेगा? मैं भूमध्य रेखा पर रहती थी! मध्य दोपहर, जब मैं नर्सों के प्रशिक्षण स्कूल में पढ़ा रही थी, मुझे एक संदेश भेजा गया कि मेरे सामने वाले दरवाजे पर एक गाड़ी खड़ी थी। जब मैं घर पहुंची, तब तक गाड़ी जा चुकी थी, लेकिन बरामदे में 22 पाउंड का एक बड़ा पार्सल था। मैंने अपनी आँखों में आँसू छलकते महसूस किए। मैं अकेले पार्सल नहीं खोल सकती थी, इसलिए मैंने अनाथालय के बच्चों को बुलाया। हमने साथ में यह निश्चित करते हुए कि उसे बेकार में फाड़ें, प्रत्येक गाँठ को बड़े ध्यान से खोला। उत्साह बढ़ता जा रहा था। कुछ तीस या चालीस जोड़ी आँखें बड़े गत्ते के डब्बे पर केंद्रित थीं। ऊपर से, मैंने चमकीले रंग के, हाथ से बुने स्वेटर निकाले। जब मैंने उन्हें बाँटा, आंखें चमक उठीं। फिर कुष्ठ रोगियों के लिए बुनी हुई पट्टियाँ थीं, और बच्चे थोड़े ऊब रहे थे। फिर मिश्रित किशमिश और मुनक्कों का एक डब्बा निकला - जो सप्ताहांत के लिए डबलरोटी के लिए काफी था। फिर, जब मैंने फिर से अपना हाथ अंदर डाला, मुझे लगा ... क्या यह वास्तव में हो सकता है? मैंने उसे पकड़ा और बाहर निकाला। हाँ, बिल्कुल, एक नई रबर की गर्म पानी की बोतल। मैं रोई। मैंने परमेश्वर को इसे भेजने के लिए नहीं कहा था; मुझे वास्तव में विश्वास नहीं था कि वह ऐसा कर सकता है।

 

रूथ बच्चों की अग्रिम पंक्ति में थी। वह चिल्लाते हुए आगे बढ़ी, "अगर परमेश्वर ने बोतल भेजी है, तो उसने गुड़िया भी भेजी होगी!" डब्बे के नीचे तक टटोलते हुए, उसने सुंदर कपड़े पहनी एक छोटे गुड़िया को बाहर निकाला। उसकी आँखें चमक उठीं! उसने कभी संदेह नहीं किया! मेरी तरफ देखते हुए उसने पूछा, "क्या मैं आपके साथ चल सकती हूँ और उस छोटी लड़की को यह गुड़िया दे सकती हूँ, ताकि वह जान जाए कि यीशु वास्तव में उससे प्रेम करता है?" "बिलकुल," मैंने उत्तर दिया! उस पार्सल को मेरे पूरे संडे स्कूल की कक्षा ने भेजा था, जिसके अगवे ने परमेश्वर से भूमध्य रेखा तक एक गर्म पानी की बोतल भी भेजने की बात सुनी और उसका पालन भी किया, और पूरे पांच महीने का सफर तय कर वह हम तक पहुंचा था। और लड़कियों में से एक ने, दस साल की लड़की की विश्वास की प्रार्थना के उत्तर में कि "उस दोपहर" वह पहुँच सके, पाँच महीने पहले एक अफ्रीकी बच्चे के लिए गुड़िया भी डाली थी। "उनके पुकारने से पहिले ही मैं उन को उत्तर दूंगा" (यशायाह 65:24)

 

एक विशिष्ट प्रार्थना का क्या ही सुंदर उत्तर। परमेश्वर की संतान के लिए प्रार्थना का एक स्पष्ट विशिष्ट उत्तर प्राप्त करना एक जीवन बदलने वाला आनंद है, यह जानना कि परमेश्वर हमारी आवश्यकता को देखता और जानता है। परमेश्वर अपने वचन निभाता है और हमारे प्रति संवेदनशील है। प्रभु यीशु ने ग्यारह शिष्यों के दिलों को यह कहकर सुकून दिया कि जब पवित्र आत्मा आएगा, तो वह पिता से प्रार्थना के इस नए दिन की शुरूआत करेगा।

 

चेले तित्तर-बित्तर होंगे (पद 31-33)

 

31यह सुन यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम अब प्रतीति करते हो? 32देखो, वह घड़ी आती है वरन आ पहुंची कि तुम सब तित्तर बित्तर होकर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है। 33मैंने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझमें शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैंने संसार को जीत लिया है। (यहुन्ना 16:31-33)

 

इससे पहले कि वे गतसमनी के बगीचे में अपनी यात्रा जारी रखें, मसीह उन्हें फिर से चेतावनी देता है कि आगे आने वाले घंटों में क्या होगा, यानी, वे उसे बिलकुल अकेला छोड़ तितर-बितर हो जाएंगे और घर चले जाएंगे। यीशु समय से पहले सटीकता से जानता था कि क्या होगा और चाहता था कि वे जानें कि उसका प्रेम परीक्षा कि इस घड़ी के दौरान उसके साथ खड़े रहने में उनकी विश्वासयोग्यता पर निर्भर नहीं था। शत्रु शीघ्रता से उनके उसके साथ चलने में विफलता पर दोष कि उंगली उठाते हुए आएगा। भविष्यवक्ता जकर्याह ने पाँच सौ वर्ष से अधिक पहले, ऐसे समय की बात की थी जब चरवाहा मारा जाएगा, और भेड़ें तितर-बितर हो जाएंगी;

 

सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, हे तलवार, मेरे ठहराए हुए चरवाहे के विरुद्ध अर्थात जो पुरूष मेरा स्वजाति है, उसके विरुद्ध चल। तू उस चरवाहे को काट, तब भेड़-बकरियां तितर-बितर हो जाएंगी। (जकर्याह 13:7)

 

जैसा हमेशा से रहा है, आज भी मसीह लोगों के लिए शत्रु का हमारी विफलताओं पर आरोप लगाने की यह रणनीति एक सामान्य अनुभव है। शैतान की रणनीतियाँ बदली नहीं हैं। उसे बिना कारण भाइयों पर दोष लगाने वाला नहीं कहा गया है (प्रकाशितवाक्य 12:10)। दोष लगाने वाला हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि पाप से दूर रहने की विफलता के बाद आगे बढ़ना नामुमकिन है। उसकी आवाज़ हमारे लिए निंदा और अंतिमता की है। शत्रु फुसफुसाते हुए कहता है, "अब तुमने यह कर लिया है। तुमने क्षमा न होने वाला पाप किया है। तुम यीशु के प्रति आज्ञाकारी होने में विफल रहे हो। तुम्हें तो अब बस अपने विश्वास को पूरी तरह से त्याग देना चाहिए क्योंकि परमेश्वर तुमसे प्रेम नहीं करता।" नरक की गहराई से कितना बड़ा झूठ! प्रभु जानता था, कि जब कठिनाइयाँ आएंगी, शिष्यों का विश्वास टूट जाएगा, लेकिन जब आत्मा आकर उनके दिलों को दृढ़ करेगा तो चीजें अलग होंगी। यीशु ने उनके विफल होने से परे उस समय को देखा जब वे विश्व व्यवस्था पर विजय प्राप्त करेंगे, यहाँ तक ​​कि उस सताव के बीच भी जो वे अनुभव करेंगे। हम भी उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं (रोमियों 8:37)

 

उसने आगे कहा, तुम मुझे अकेला छोड़ दोगे, तौभी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है” (यहुन्ना 16:32) कुछ कहेंगे कि यह यीशु द्वारा एक विरोधाभासी कथन है। वे हमें याद दिलाएंगे, कि जब वह क्रूस पर था, तब उसने पुकारा था, "हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?" (मत्ती 27:46) भविष्यवक्ता हबक्कूक ने परमेश्वर के विषय में इस तरह से बात की, तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता,और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता” (हबक्कूक 1:13) प्रेरित पौलुस ने प्रभु यीशु के आपके और मेरे पाप को क्रूस पर अपने शरीर पर लेने के विषय में लिखा है (1 पतरस 3:18) यह संभव है कि पिता अपने पुत्र की ओर तब देख सका जब मसीह ने आपका और मेरा पाप अपने ऊपर लिया, लेकिन मेरा मानना ​​है कि परमेश्वर की उपस्थिति तब भी अपने पुत्र के साथ थी। इससे पहले अपनी सेवकाई के दौरान यीशु ने कहा था, "जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊंचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ....और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उस ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा" (यहुन्ना 8:28-29)

 

संसार में क्लेश और शांति (पद 33)

 

मैंने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझमें शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैंने संसार को जीत लिया है। (यहुन्ना 16:33)

 

अक्सर, मेरा सामना ऐसे लोगों से होता है जो कहते हैं कि विश्वासियों के रूप में, हमें परेशानी या क्लेश नहीं होगा। वे क्लेश को दंड के रूप में देखते हैं, और हम जानते हैं कि परमेश्वर ने हमें अपने क्रोध के लिए दोषी नहीं ठहराया है। लेकिन, हमें क्लेश और परीक्षाओं के लिए तैयार रहना है। वचन कभी भी क्लेश के समय को परमेश्वर का प्रकोप और दंड नहीं कहते हैं; यह कुछ शिक्षकों की एक धारणा है। इस खंड में प्रयोग किया यूनानी शब्द उस अंधकार का वर्णन करता है जो शिष्य आने वाले दिनों में सहन करेंगे। यह यूनानी शब्द, थ्लिप्सिस है (नए अंतर्राष्ट्रीय संस्करण (एनआईवी) में "परेशानी" के रूप में अनुवादित)। इसी यूनानी शब्द का उपयोग प्रभु यीशु के दूसरे आगमन से पहले परेशानी के समय (क्लेश) का वर्णन करने के लिए किया जाता है। किंग जेम्स संस्करण इसे "क्लेश" के रूप में अनुवादित करता है, जबकि, नया अंतर्राष्ट्रीय संस्करण संकट शब्द का उपयोग करता है।

इस ग्रह पर आने वाले क्लेश से पहले हमें इस संसार से विदा होने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें जयवंत होने के लिए बुलाया गया है। क्या यीशु ने ऐसा ही नहीं किया? क्रूस पर जाने से पहले निर्देश के उसके अंतिम शब्द हैं कि उसने संसार पर विजय प्राप्त कर ली है, और आत्मा के आने के साथ, हम मसीह-विरोधी और विश्व व्यवस्था पर भी उसी तरह जयवंत हो सकते हैं जैसे यीशु ने किया था।

 

वे मेम्ने के लहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवंत हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली। (प्रकाशितवाकय 12:11)

 

कलीसिया को जो भी अनुभव करना है, यीशु ने कहा कि, उस सब के बीच में, हम उसकी शांति को जानेंगे। जब वह रात खत्म होगी, तो शिष्यों को दुश्मन के आरोपों का एहसास होगा, लेकिन यीशु ने उन्हें समय से पहले बताया कि वे उसकी शांति पाएंगे।

 

क्या आप न केवल उस पीड़ा की, बल्कि वह मानसिक वेदना की भी कल्पना कर सकते हैं जो यीशु ने हमारे लिए सहन की थी क्योंकि वह जानता था कि वह मानव जाति के लिए अपने कष्ट के समय के करीब पहुंच रहा था? उसे न केवल शारीरिक पीड़ा का सामना करना था, बल्कि अपने राष्ट्र और अपने करीबी मित्रों द्वारा कुछ समय के लिए तिरस्कृत कर दिए जाने के दर्द का भी सामना करना था, जबकि वह आपके और मेरे लिए पाप बन, उस क्रूस पर लटका।

 

क्या आप पर कभी ऐसा कुछ करने का आरोप लगाया गया है जो आपने नहीं किया? क्या आपको कभी किसी ऐसी चीज़ के लिए अनुचित सजा मिली जो आपकी गलती नहीं थी? यदि आपके लिए संभव हैं, तो संक्षेप में अपना अनुभव साझा करें।

 

यीशु को किस बात ने सहने में मदद की? यह महान पुनर्मिलन का दिन है जब वह उस इनाम को देखेगा; तौभी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब तू उसका प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।” (यशायाह 53:10)

 

और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्ज़ा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा। (इब्रानियों 12:2)

 

उसने ऐसा उस आनन्द के लिये करा जो उसके आगे धरा था, क्योंकि उसने भविष्य में देखा कि उसकी प्रतिस्थापना की मृत्यु उन सभी के लिए कीमत चुकाएगी जो अपना भरोसा उस में रखेंगे। वह जानता था कि आपके और मेरे लिए जीवन उसकी मृत्यु से निकलेगा और वह दुःख उस आनंद द्वारा निगल लिया जाएगा। उसी तरह, हमें उस आनन्द की ओर आगे देखना होगा जो हमारे लिए निर्धारित है जबकि हम में से प्रत्येक उसकी धार्मिकता में उसके सामने खड़े होंगे। इस प्रकार के विचार हमें इस संसार में शांति प्रदान करेंगे, चाहे हमें इस जीवन में कितना भी सहना पड़े।

 

क्या आपके पास आज ऐसी परिस्थिति है जिसमें आपको परमेश्वर की शांति का अनुभव करने की आवश्यकता है? आइए एक दूसरे या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रार्थना करने का समय लें जिसे अभी परमेश्वर की शांति का अनुभव करने की आवश्यकता है।

 

प्रार्थना: धन्यवाद पिता, आपकी उस शांति के लिए जिसे विश्वासियों के रूप में हम किसी भी परेशानी के बीच अनुभव कर सकते हैं। हम उस दिन का इंतजार करते हैं जब हम आपको देखेंगे! आमिन!

 

कीथ थॉमस

-मेल: keiththomas@groupbiblestudy.com

वेबसाइट: www.groupbiblestudy.com

Donate

Your donation to this ministry will help us to continue providing free bible studies to people across the globe in many different languages.

$

And this gospel of the kingdom will be proclaimed throughout the whole world as a testimony to all nations, and then the end will come.
Matthew 24:14

bottom of page