36. The Three-Time Denial of Peter
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36. पतरस का तीन बार इंकार
रूपान्तरण की प्रक्रिया
18उसने गलील की झील के किनारे फिरते हुए दो भाइयों अर्थात शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवारे थे। 19और उनसे कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाऊंगा।” 20 वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। (मत्ती 4:18-20)
अगर मैं आपसे यह पूछूँ कि ऊपर लिखे शब्दों से यीशु का क्या अर्थ है, तो आप शायद कहेंगे कि यीशु दो मछुआरों, शमौन पतरस और अन्द्रियास को, मछ्ली के बजाय मनुष्यों को पकड़ने के लिए बुला रहा है, और आप सही भी होंगे। लेकिन, इस कथन में चार ऐसे शब्द हैं जो उस सब को समाहित करते हैं जो यीशु अपने सभी समर्पित अनुयायियों के साथ करता है। ये शब्द हैं: "मैं तुम को बनाऊंगा।" मछुआरों को उसकी पुकार यह थी कि वह उसके पास आएं, उसके पीछे चलें और उनके उसके पीछे चलने की प्रक्रिया में, वह उनके जीवन में अपने कार्य के द्वारा उन्हें मनुष्यों के पकड़ने वाले बनाएगा। मैं इन चार शब्दों को करीब से देखना चाहता हूँ, कि यीशु के अनुयायियों के रूप में वे हमारे लिए क्या मायने रखते हैं।
यदि मैं आपसे पूछूँ, कि आप अपने कार्य में क्या बनाते हैं, तो उदाहरण के लिए, यदि आप एक कलाकार हैं, आप शायद यह कहकर जवाब देंगे कि आप चित्रकला बनाने के व्यवसाय में हैं। यदि आप एक खानसामा होंगे, तो आप यह कहकर जवाब दे सकते हैं कि आप रोटी बनाते हैं। हम सभी अपने जीवनों में कुछ बना रहे हैं। मैं इस आशा में सिखाने और लिखने के व्यवसाय में हूँ कि मैं शिष्य बनाने के लिए प्रभु के हाथ में एक उपकरण बनूँ। मसीह रूपांतरित, सामर्थी शिष्यों को बनाने का कार्य करता है। शिष्य सीखने वाले और अनुयायी होते हैं, वे लोग जिन्होंने मसीह का अनुसरण करने के लिए अपने पुराने जीवन को त्याग दिया है और उसके और उसके राज्य के उद्देश्यों के प्रति समर्पण और अधीनता में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
आइए पवित्रशास्त्र में एक और वचन को देखें जो हमें यह समझने में मदद करेगा कि परमेश्वर हमारे जीवन में क्या कर रहा है;
क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों। (रोमियों 8:29)
यदि जीवन केवल मसीह को खोजने के बारे में है, तो जब हम उसके पास आते हैं और पवित्र आत्मा द्वारा नए सिरे से जन्म लेते हैं, तो वह हमें घर क्यों नहीं ले जाता? क्या सिर्फ मसीह को खोजने से ज्यादा जीवन में कुछ है?
कई वर्षों से अपने उद्धारकर्ता की सेवा करने में, मैंने एक राय बनाई है कि जब हम मसीह में आते हैं और उसके पीछे चलना शुरू करते हैं, तो प्रभु हमारे बाकी जीवन भर का उपयोग हमें यीशु की तरह बनाने के लिए हमें भीतर से रूपांतरित करने के लिए करता है। पौलुस इस प्रक्रिया के बारे में बात करता है, जो धीरे-धीरे शुरू होती है और जब हम परमेश्वर की आत्मा के प्रति लगातार आज्ञाकारी बने रहते हैं, तब समय के साथ यह बढ़ती जाती है;
परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं (2 कुरिन्थियों 3:18)
यूनानी शब्द मेटामोरफू वह शब्द है जिसका अनुवाद हमारी हिन्दी भाषा में “बदलते” के रूप में किया गया है। इसका अर्थ है "स्थान, स्थिति या रूप का बदलना; रूपांतरित होना, काया पलट होना, मौलिक रूप से बदलना। यह शब्द आत्मिक परिवर्तन के लिए उपयोग किया जाता है, और यह मसीहीयों में एक अदृश्य प्रक्रिया है। यह परिवर्तन इस युग में हमारे जीवन के दौरान होता है।” प्रेरित यहुन्ना भी इस बदलाव की बात करता है जो परमेश्वर हमारे भीतर कर रहा है;
हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। (1 यहुन्ना 3:2)
जे. आर. मिलर ने लिखा, ''कब्र से, शोक करने वालों के साथ वापस जाने वाली और दफन होने से इंकार करने वाली एकमात्र चीज है उस मृतक का चरित्र। मनुष्य जो है, वह उसके बाद भी जीवित रहता है। इसे कभी दफनाया नहीं जा सकता।" हेनरी वार्ड बीचर ने इसे इस तरह कहा; "खुशी नहीं, चरित्र जीवन का अंत है।" एक बार हम मसीही बन जाते हैं, परमेश्वर हमारे जीवन में हमें चरित्रवान बनाने के कार्य पर लग जाता है, और हमारे चरित्र को जीवन की परीक्षाओं और कठिनाइयों के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं से मापा जाता है। थॉमस चाल्मर्स ने भी चरित्र के विषय में इस तरह से लिखा है; "जिस चरित्र के साथ हम मृत्यु के समय कब्र में दफनाए जाते हैं, वही वह चरित्र है जिस में हम पुनरुत्थान के समय प्रकट होंगे।"
स्वयं को संपूर्णता से परमेश्वर के कार्य के लिए दिये जाने की अपनी बुलाहट के बाद के वर्षों में, मैंने कई अगवों की नेतृत्व में प्रशिक्षण और मदद की है। कलीसिया जितनी बड़ी होती है, उतने ही अगवों की बुलाहट होने, सिखाने और तैयार करने की आवश्यकता होती है। मैंने पाया है कि लोग खुद को अगवा नहीं मानते हैं, और जब भी मैंने उन्हें समूह की अगवाई करने के लिए कहा है, तो यह उनके लिए एक झटके के रूप में आता है। जब मैं अगवों की तलाश करता हूँ, तो सबसे पहली चीज जिसे मैं खोजता हूँ वह परमेश्वर के प्रति और लोगों के प्रति प्रेम है। बाकी सब कुछ सिखाया जा सकता है। मैं यह भी देखना चाहता हूँ कि क्या वह व्यक्ति जोखिम उठाने को तैयार है और उसका क्या दिल बाहर की ओर केंद्रित है। लेकिन, आज हमारे सामने सवाल यह है कि परमेश्वर हमें अपने स्त्री और पुरुष कैसे बनाता है, और हम इसमें उसका सहयोग कैसे कर सकते हैं? परमेश्वर लोगों के चरित्र को कैसे निखारता है और उन्हें अनंत काल के लिए कैसे तैयार करता है। यहुन्ना की पुस्तक में पतरस के बारे में खंड हमें यह देखने में मदद करेगा कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है।
पतरस का रूपान्तरण
जब मसीह ने शमौन पतरस को बुलाया, तो उसने देखा कि उसके आत्मिक डी.एन.ए में वह अनिर्मित नेतृत्व था। पतरस जोखिम लेता, जबकि अन्य नहीं। वह साहसपूर्वक नाव से बाहर निकला और यीशु के आदेश पर पानी पर चला (मत्ती 14:30)। उसने अपना साहस तब दिखाया जब उसने यीशु को पकड़वाए जाने से बचाने के लिए गतसमनी में महायाजक के सेवक मलखुस पर हमला किया (यहुन्ना 18:10)। हमने यीशु के प्रति उसकी आज्ञाकारिता को तब भी देखा जब यीशु ने मछली पकड़ने के लिए उसे अपनी नाव को गहरे पानी में उतारने के लिए कहा। उसने ऐसा तब भी किया जब वह मानता था कि यह असंभव है क्योंकि वे गलील सागर में पूरे दिन मछली नहीं पकड़ पाए थे। मछली को रात में पकड़ा गया जब मछली द्वारा जाल देखा नहीं जा सका होगा (लूका 5:4)।
एक अगवे में चरित्र के कौन से गुण या लक्षण आपको उन पर भरोसा करने में मदद करते हैं?
जबकि पतरस अक्सर बहुत विश्वास दिखाता था और जोखिम से नहीं डरता था, लेकिन यदि पतरस को वह आदमी बनाना था जिसकी आवश्यकता परमेश्वर को नए नियम की कलीसिया के स्तंभ के रूप में थी, तो उसके अन्य गुणों को निखारना आवश्यक था। पतरस के लिए आगे बड़ी योजनाएँ थीं, और उसे आगे के कार्य के लिए उपयुक्त बनाने के लिए प्रभु को उसके जीवन में कार्य करना था। पतरस के आत्मिक विकास में बाधा डालने वाली बातें उसकी दीनता की कमी और उसका अहंकार था, जो उसके उतावले और आवेगपूर्ण शब्दों और कार्यों द्वारा प्रदर्शित होता था। अंतिम भोज में होने वाले इस विवाद में कि उन में से कौन बड़ा समझा जाता है, संभावना यही है कि उकसाने वाला पतरस ही होगा। "उन में यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है" (लूका 22:24)। हो सकता है, कि पतरस इसलिए नाराज़ था क्योंकि मेज पर यहूदा यीशु के साथ सम्मान का स्थान हासिल करने में कामयाब रहा। निश्चित रूप से, यहूदा यीशु के इतना निकट बैठा होगा कि यीशु उसे रोटी का टुकड़ा दे सके (यहुन्ना 13:26), इसलिए वह संभवतः प्रभु के बाईं ओर बैठा था। अंतिम भोज की मेज़ पर इस विवाद के ठीक बाद, यीशु ने पतरस से कहा कि दुश्मन उसके विश्वास को हिला देगा:
31“शमौन, हे शमौन, देख, शैतान ने तुम लोगों को मांग लिया है कि गेंहूँ की नाईं फटके। 32परन्तु मैंने तेरे लिये विनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे: और जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।” 33उसने उस से कहा; “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, वरन मरने को भी तैयार हूँ।” 34उसने कहा; “हे पतरस मैं तुझ से कहता हूँ, कि आज मुर्ग बांग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता” (लूका 22:31-34)
इन शब्दों को पढ़ना कठिन है। यह हमें बताते हैं कि शैतान ने मांग (मूल यूनानी में प्रयोग किया गया शब्द मांग बहुत ही बलपूर्ण है) की एक आत्मिक फटकने कि प्रक्रिया में चेलों (पद 31 में शब्द तुम बहुवचन में है) में से भूसे को अलग किया जाए। शैतान ने पतरस को भूसे के रूप में देखा और मसीह से उसके "गेंहूँ की नाईं फटके" जाने की अनुमति मांगी क्योंकि भूसे के साथ यही होता है। मसीह की इच्छा के कारण कि वह पतरस को उपयोग करना चाहता था, उसने शैतान को पतरस के विश्वास को चुनौती देने की अनुमति दी।
इस परीक्षा की अनुमति देने में प्रभु का उद्देश्य क्या था? पतरस को अपने चरित्र के दोषों को देखने के लिए टूटेपन में आने की आवश्यकता थी। जब अन्य शिष्य नहीं देख रहे होते, तब इस परीक्षा से प्रकट होता की पतरस किस मिट्टी का बना था। डी.एल. मूडी ने एक बार कहा था, "चरित्र वह है जो एक मनुष्य अंधेरे में होता है।" क्या यह संभव है कि परमेश्वर हमारे चरित्र को प्रकट करने और निखारने के लिए इस प्रकार की परीक्षाओं को रचता है? क्या वह यह सारी परेशानी उठाएगा? हमारे पास अय्यूब के जीवन में से एक उदाहरण है जब शैतान परमेश्वर के दास की परीक्षा लेने की अनुमति मांगता है (अय्यूब 1:9-12)। हमारे पास एक राष्ट्र के रूप में इज़राइल के इतिहास में भी इसका एक उदाहरण है।
और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिये ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा या नहीं। (व्यवस्थविवरण 8:2)
परमेश्वर इज़राइल के लोगों को चालीस वर्षों के लिए रेगिस्तान में उन्हें नम्र बनाने और उनकी परीक्षा करने के लिए लेकर गया। मुझे आपसे एक सवाल पूछने दें। क्या परमेश्वर जानता है कि उनके दिल में क्या था, और आपके, और मेरा दिल में भी क्या है? निश्चित रूप से, वह जानता है! तो, क्या परीक्षा उसके लाभ के लिए है या मेरे? स्वर्ग का परमेश्वर चाहता है कि हम खुद को उसी रीति से देखें जैसे वह हमें देखता है। लेकिन तभी जब हम अपनी वास्तविक दशा देखें, और हम अपने पाप की प्रवृति से उबरने के लिए उसके साथ निकटता से चलने में सहयोग करें। परीक्षा परमेश्वर द्वारा हमें अपने बारे में ऐसा कुछ दिखाने के लिए निर्मित की गई है जिसे हम परीक्षा के समय तक देखते नहीं हैं।
क्या आप ऐसी घटना के बारे में सोच सकते हैं जिसने आपका जीवन बादल दिया हो? इसके परिणामस्वरूप आपके चरित्र में क्या बदलाव आए?
आत्मिक रूपान्तरण कुछ ऐसा नहीं है जो हम करते हैं, लेकिन कुछ ऐसा जो परमेश्वर अपने पवित्र आत्मा की सामर्थ से हमारे भीतर करता है। पहला कदम मसीह का प्रकाशन है। परमेश्वर हमपर हमारे हृदयों को भी प्रकट करता है। उदाहरण के लिए, प्रेरित पतरस को लीजिए। जब पतरस ने शैतान द्वारा फटके जाने के बारे में मसीह की भविष्यवाणी की चेतावनी सुनी, तो उसने अपने सामान्य उत्सुक अंदाज़ में यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि वह मसीह के लिए जेल जाने के लिए और यहाँ तक कि मृत्यु के लिए भी तैयार था। पतरस अपनी आत्मिक निर्बलताओं और कमजोरियों के प्रति जागरूक नहीं था। इस बारे में पतरस कुछ नहीं सुनना चाहता था। आत्मविश्वासी रूप से पुष्टि करते हुए कि उसके पास अंत तक चलने के लिए चरित्र की मजबूती है, उसने मसीह के भविष्यवाणी के शब्दों पर विश्वास करने से इनकार कर दिया। उसे खुद पर इतना यकीन था। इस परिचय को ध्यान में रखते हुए, आइए अब पढ़ें कि यीशु की गिरफ़्तारी के बाद क्या हुआ और देखें कि कैसे परमेश्वर ने पतरस के हृदय को झकझोडते हुए उसे अपने चरित्र के दोषों को देख पाने की अनुमति दी।
पतरस के विश्वास की परख
यह शायद आधी रात के बाद होगा जब यीशु को गतसमनी के बगीचे में गिरफ्तार किया गया था। मत्ती लिखता है कि पतरस यीशु और सैनिकों के पीछे सावधानीपूर्वक कुछ दूरी पर गया; “और पतरस दूर से उसके पीछे महायाजक के आंगन तक गया, और भीतर जाकर अन्त देखने को प्यादों के साथ बैठ गया” (मत्ती 26:47)। यह दूरी गतसमनी से हन्ना और काइफा के महल परिसर तक लगभग एक मील थी। यहुन्ना ने लिखा है कि यीशु को सबसे पहले हन्ना (यहुन्ना 18:16) के घर ले जाया गया। बीच में एक आंगन के साथ इमारतों के इस बड़े परिक्षेत्र में संभवतः हन्ना और काइफा, जिन्हें नए नियम में महायाजक कहा गया है, दोनों रहते थे।
इजरायल के महायाजक का पद धारण करना उस समय राष्ट्र के राजा होने के समान था। हन्ना ईसा पश्चात 6-15 के बीच महायाजक था और उसका दामाद काइफा उसका उत्तराधिकारी बना, जिसने ईसा पश्चात 36/37 तक पद संभाला था। पुराने नियम में यह आज्ञा थी कि महायाजक का कार्यालय उस व्यक्ति के जीवन भर के लिए था (गिनती 35:25), इसलिए भ्रष्ट याजकों के मुखिया के रूप में हन्ना सबसे ज़्यादा ताकतवर था। उसके दामाद काइफा को पिलतुस से पहले रोमी प्रभारी रहे ग्राटस द्वारा कार्यभार दिया गया था।
आपको क्या लगता है कि जब वह कुछ दूरी पर उनके पीछा जा रहा था, तो पतरस के दिमाग में क्या चल रहा होगा?
हो सकता है उसने सोचा हो कि मसीह ने रोमी सैनिकों को उसे गिरफ्तार करने की इजाजत क्यों दी, खासकर तब जब यीशु ने अपने शब्दों "मैं हूँ" के साथ लगभग छह सौ की टुकड़ी को सन्न कर दिया था। जब यीशु को महायाजक के घर ले जाया गया तो उसका जी छोटा हो गया होगा, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि उसने महायाजक के सेवक पर तलवार से हमला कर उसका कान काट दिया था। हो सकता है कि वह सैनिकों के हाथों मृत्यु से डर गया हो। अपने वर्णन में, यहुन्ना हमें एक शिष्य के बारे में बताता है जो महायाजक को जानता था जिसे द्वार से प्रवेश करने की अनुमति थी। इस शिष्य के बारे में सभी साक्ष्य स्वयं यहुन्ना की ओर इशारा करते हैं।
महायाजक और उसके कर्मचारी एक मछुआरे को कैसे जान सकते थे? कुछ लोगों का कहना है कि क्योंकि यहुन्ना के पिता ज़ब्दी का अपने पुत्रों और कई नौकरों संग गलील के समुद्र पर नावों पर काम करने का कारोबार था (मरकुस 1:20 देखें)। यह संभव है कि ज़ब्दी गलील से महायाजक के घर खारे पानी की मछली की आपूर्ति करता था और प्रेरित यहुन्ना मछली लेकर यरूशलेम आता हो। केवल यहुन्ना मलखुस के नाम को दर्ज करता है, वह जिसने पतरस की तलवार से अपना कान खोया था। मलखुस महायाजक के सेवकों में से एक था।
पतरस का पहला इंकार
15शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए; यह चेला महायाजक का जाना पहचाना था और यीशु के साथ महायाजक के आंगन में गया। 16परन्तु पतरस बाहर द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महायाजक का जाना पहचाना था, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया। 17उस दासी ने जो द्वारपालिन थी, पतरस से कहा, “क्या तू भी इस मनुष्य के चेलों में से है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” 18दास और प्यादे जाड़े के कारण कोयले धधकाकर खड़े ताप रहे थे और पतरस भी उनके साथ खड़ा ताप रहा था (यहुन्ना 18:15-18)
यह प्रेरित यहुन्ना था जिसने पहले द्वार से प्रवेश किया और फिर जाकर पतरस के लिए भी आंगन में आने की अनुमति मांगी। जबकि पतरस बाहर द्वार पर इंतजार कर रहा था, हम उसके दिल की धड़कन बढ़ने की कल्पना कर सकते हैं, क्योंकि वह जानता था कि कुछ सैनिक उसे पहचान सकते हैं, शायद मलखुस भी, जिस पर उसने हाल ही में शारीरिक हमला किया था। पतरस वहाँ उपस्थित होकर क्या हासिल करने की उम्मीद कर रहा था? मुझे लगता है कि वह बहादुर बनने और अपने स्वामी के साथ रहने की कोशिश कर रहा था।
अपने कथन में, यहुन्ना प्रभु यीशु के साहस और डगमग पतरस के बीच अंतर की तुलना करता है, अर्थात्, हन्ना के सामने यीशु मसीह के साहस और एक अधीन सेवक लड़की के सामने पतरस की असफलता। ध्यान दें कि जैसे ही पतरस को द्वार से अंदर जाने दिया गया, शत्रु ने कैसे द्वार पर महिला का उपयोग नकारात्मक प्रश्न करने के लिए किया, जिसका उत्तर आसानी से "मैं नहीं हूँ" के साथ दिया जा सकता था। शैतान के प्रलोभन हमेशा स्वीकार करने में आसान होते हैं, और वे हमारा अधिक महत्वपूर्ण और छल के पाप में नेतृत्व करते हैं, जो सच बोलने को और ज़्यादा कठिन बना देता है।
एक सेवक लड़की के सामने शिष्य होने से इनकार करने के लिए प्रेरित पतरस को किस बात ने प्रभावित किया? क्या ऐसा हो सकता है कि पतरस का यह पहला इनकार इसलिए था क्योंकि वह डर गया था कि यह युवा लड़की सैनिकों को बुलाएगी और अब उसके पीछे का दरवाजा या द्वार भी बंद कर दिया गया, जिससे उसका आसानी से बचना कठिन होगा? हम नहीं बता सकते कि उस समय उसके मन में क्या डर थे। यहुन्ना कहाँ था? शायद, वह हन्ना द्वारा यीशु से किए जा रहे सवालों को सुन रहा था। लूका हमें बताता है कि पतरस पहले इनकार के बाद आग सेक रहे एक समूह के साथ बैठ गया (लूका 22:55)। युवा लड़की ने पतरस के पहले इनकार पर यकीन नहीं किया और आग की रोशनी में उसका चेहरा देखने के लिए और करीब आई।
दूसरा इनकार
ऐसा लगता है कि दूसरा इनकार पतरस के अपने दुश्मनों के साथ आग के चारों ओर बैठे हुए कई लोगों के सामने हुआ था;
69और पतरस बाहर आंगन में बैठा हुआ था: कि एक सेवक लड़की ने उसके पास आकर कहा; “तू भी यीशु गलीली के साथ था।” 70उसने सबके सामने यह कह कर इन्कार किया और कहा, “मैं नहीं जानता तू क्या कह रही है।” (मत्ती 26:69-70)
एक बार जब वह आंगन में था, तो कोयले की आग ताप रहे प्रभु के दुश्मनों के साथ बैठने के अलावा उसके पास जाने के लिए कोई और स्थान नहीं था। मूल यूनानी लेख में, यहुन्ना आंगन में जलाई गई आग को अलग प्रकार की आग बताता है। यह एक कोयले की आग थी। दिलचस्प बात यह है कि मसीह के पुनरुत्थान के बाद, पतरस को यीशु द्वारा प्रेरित होने के लिए गलील समुद्र के तट पर एक कोयले की आग के पास पुन: स्थापित किया गया था, जब यीशु ने पतरस से तीन बार पूछा कि क्या वह उससे प्रेम रखता है (यहुन्ना 21: 9)। यहुन्ना अपने सुसमाचार में इस प्रकार के प्रतीकात्मक विवरणों को लिखने का इच्छुक रहा है। आग के चारों ओर पतरस का इनकार उसका दूसरा इनकार था। परीक्षा अकसर हमारे पास इसी रीति से आती है। हम शत्रु की उंगली पकड़ते हैं तो वह हमारा पौछा पकड़ लेता है। हमें अपने जीवन का एक इंच भी अपने प्राण के शत्रु से समझौता करने के लिए नहीं देना चाहिए। हमें यह बताने के लिए कुछ भी नहीं है कि घर के सेवक पतरस के साथ कुछ करते; वह डर के मारे इनकार कर गया।
जबकि आंगन में यह हुआ, यहुन्ना हमें हन्ना के सम्मुख के दृश्य में ले जाता है, जब अगली सुबह काइफा, सत्तर बुजुर्गों के सम्मुख वास्तविक अदालती सुनवाई से पहले यीशु से जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है। सभी अदालतों में क्रूरता और अन्याय गैरकानूनी था, लेकिन यह बात हन्ना और उसके लोगों को रोक नहीं पाई;
19तब महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा। 20यीशु ने उसको उत्तर दिया, “मैंने जगत से खुलकर बातें की; मैंने सभाओं और आराधनालय में जहाँ सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा। 21तू मुझसे क्यों पूछता है? सुनने वालों से पूछ कि मैंने उनसे क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैंने क्या क्या कहा।” 22जब उसने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है।” 23यीशु ने उसे उत्तर दिया, “यदि मैंने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?” 24हन्ना ने उसे बन्धे हुए काइफा महायाजक के पास भेज दिया। (यहुन्ना 18:19-24)
यीशु को चेहरे पर इसलिए मारा गया था क्योंकि वह अपने शिष्यों या अपनी शिक्षा के बारे में जानकारी देने के लिए भयभीत नहीं हो रहा था। हन्ना किसी भी ऐसी जानकारी की तलाश में था जो पिलातुस के सामने मसीह को दोषी साबित कर देगी, लेकिन यीशु इस प्रकार की पूछताछ की अवैधता के कारण और खुद को मासूम और महायाजक और बुज़ुर्गों को भ्रष्ट स्थापित करने के लिए आपत्ति कर रहा था। जब यीशु ने हन्ना को कोई भी सबूत देने से इंकार कर दिया, तो हन्ना ने उसे अगले आंगन में काइफा के पास भेज दिया, जो अपराधिक अदालत की कार्यवाही, अगवों की समिति, महासभा के लिए तैयारी कर रहा था (यहुन्ना 18:24)।
पतरस का तीसरा खंडन उसी समय हुआ जब यीशु को हन्ना के घर से काइफा के पास ले जाया जा रहा था। तीसरे और अंतिम इनकार के समय, समूह के पास एक ऐसा गवाह था जिसके कारण पतरस ने पूरी तरह से संयम खो दिया, क्योंकि यहुन्ना हमें बताता है;
25शमौन पतरस खड़ा हुआ ताप रहा था। तब उन्होंने उससे कहा; “क्या तू भी उसके चेलों में से है?” उसने इनकार करके कहा, “मैं नहीं हूँ”। 26महायाजक के दासों में से एक जो उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था, बोला, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बारी में न देखा था?” 27पतरस फिर इनकार कर गया और तुरन्त मुर्गे ने बांग दी। (यहुन्ना 18:25-27)
साक्षी के दबाव और साथ में आसपास के कुछ सेवकों ने उसे अपने आप को धिक्कार देने और शपथ खाने को मजबूर कर दिया, कि अगर वह यीशु को जानने के बारे में झूठ बोल रहा था, तो परमेश्वर के हाथों उसकी हिंसक मौत होगी;
73थोड़ी देर के बाद, जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर उस से कहा, सचमुच तू भी उनमें से एक है; क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है। 74तब वह धिक्कार देने और शपथ खाने लगा, कि “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता”; और तुरन्त मुर्गे ने बांग दी। 75तब पतरस को यीशु की कही हुई बात स्मरण आई की मुर्गे के बांग देने से पहले तू तीन बार मेरा इनकार करेगा और वह बाहर जाकर फूट-फूट कर रोने लगा। (मत्ती 26:73-75)
आग के पास दूसरे इनकार के बाद, लूका लिखता है कि तीसरा इनकार दूसरे से एक घंटे बाद था (पद 59)। मलखुस के रिश्तेदार के दबाव में, उसके गलीली लहेजे के आरोप का सामना करने ने उसे घबरा दिया वह बदहवास हो गया। जैसे ही पतरस ने यीशु को न जानने की बात कबूली, मुर्गे ने बांग दी। उसने उसी क्षण यीशु के वचनों को याद किया, जब प्रभु को काइफा के आंगन में लेकर जाया जा रहा था। यीशु और पतरस की आँखें मिलीं;
59कोई घंटे भर के बाद एक और मनुष्य दृढ़ता से कहने लगा, निश्चय यह भी तो उसके साथ था; क्योंकि यह गलीली है। 60पतरस ने कहा, “हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तू क्या कहता है!” वह कह ही रहा था कि तुरन्त मुर्गे ने बांग दी। 61तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा, और पतरस को प्रभु की वह बात याद आई जो उसने कही थी, कि आज मुर्गे के बांग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इनकार करेगा। 62और वह बाहर निकलकर फूट-फूट कर रोने लगा। (लूका 22:59-62)
पतरस के लिए यीशु के शब्दों को याद करना कितना दर्दनाक था, कि मुर्गे के बांग देने से पहले, वह तीन बार अपने प्रभु का इनकार करेगा। मुझे नहीं लगता कि यीशु की आंखों में कोई आरोप था, बल्कि पतरस के लिए केवल दुख रहा होगा। शब्द "देखा" यूनानी शब्द इमबल्पो का अनुवाद है, जो एक टक देखने का वर्णन करता है, यह लगभग घूरने के समान। इस देखने ने पतरस के हृदय को झकझोड़ दिया; वह बाहर गया और फूट-फूट कर रोया। फूट-फूट के रूप में अनुवादित यूनानी शब्द का अर्थ है हिंसक, अनियंत्रित, आक्षेपकारी रोना। जब उसका हृदय उस क्षण की शर्मिंदगी से जकड़ा, तब उसका सिर झुका हुआ था, और उसके कंधे लज्जा से ढलक गए।
पवित्र-शास्त्र में पतरस के इनकार के साथ-साथ उसके तात्कालिक पश्चाताप के बारे में विस्तार से लिखा गया है। पतरस टूट गया और उसका पर्दा फ़ाश हो गया, लेकिन हमें उसका त्वरित पश्चाताप भी दिखाई देता है। हम में से कितने हैं जो ठोकर खा गए और हमने अपने परमेश्वर को नकार दिया? हो सकता है कि पतरस के जैसे हमने अपने होठों से ऐसा न किया हो, लेकिन मुझे यकीन है कि कभी न कभी, हमने अपने कार्यों से उसका इनकार किया है। यह खंड हमारे लिए इसलिए दर्ज किया गया है ताकि हमें परमेश्वर की दया और पूर्ण क्षमा का एक उदाहरण मिल सके। प्रभु अक्सर हमें दर्द का अनुभव करने की अनुमति देता है, क्योंकि यह एक उत्कृष्ट शिक्षक है।
आपको क्या लगता है कि परमेश्वर इस समय आपके जीवन के अनुभवों के द्वारा आपको क्या सिखा रहा है? क्या आप अभी इसके सबक जानते हैं?
टूटेपन का स्थान
अक्सर, यह तब होता है जब हमारे कार्य हमारे लिए ऐसा दर्द लेकर आते हैं कि हम बुरी तरह टूट जाते हैं। और तब हम घमंड और आत्मनिर्भरता से हार के टूटेपन में अपनी चट्टान, हमारे उद्धारकर्ता की ओर देखते हैं। जीवन में पश्चाताप और टूटेपन में होना एक अच्छा स्थान है। जबतक हमारे पास अपनी लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, प्रभु हमें आगे बढ़ने देता है। जब हम आत्मा में निर्बल होते और टूट जाते हैं, तब हम खुद से परे परमेश्वर की दया और अनुग्रह को देखना शुरू करते हैं। यही वह बिंदु है जहाँ प्रभु हमारे लिए हमारी लड़ाई लड़ने के लिए कदम रखता है। जब हम निर्बल होते हैं, तब हम प्रभु में मजबूत होते हैं; “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती हैं” (2 कुरिन्थियों 12:7-10)।
टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता। (भजन 51:17)
हमारे टूटेपन का स्थान वह स्थान है जहाँ परमेश्वर हमें बचाने, चंगा करने और हमें पुन: स्थापित करने के लिए कदम रख सकता है। परमेश्वर हमारे जीवन में इस तरह के परखे जाने और परीक्षाओं की अनुमति देता है, क्योंकि वह हमें आत्मिक रूप से उसके साथ अनंत काल के लिए आकृत कर रहा है। परमेश्वर का प्रशिक्षण स्कूल बाइबल कॉलेज से और दिमागी ज्ञान से अधिक है। उसके प्रशिक्षण में अक्सर टूटापन और एक खेदित हृदय शामिल होता है। 1977 में मसीह में आने के बाद से, मैंने सीखा है कि परमेश्वर हमारे जीवन के अनुभवों का उपयोग हमें सिखाने और अनंत काल के लिए तैयार करने के लिए एक स्कूल के रूप में करता है। वह रोजमर्रा की परिस्थितियों के द्वारा हमारे चरित्र को आकार देता है। उनमें से कुछ बहुत कठिन हो सकते हैं; परिवार के एक सदस्य की मृत्यु, किसी प्रतिज्ञा के पूरा होने के लिए लंबी प्रतीक्षा, कोई वित्तीय आवश्यकता, एक बीमार बच्चा - सूची अंतहीन है। जब सही समय आता है, और परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाता है, और वह देखता है कि उनकी सामर्थ समाप्त हो चुकी है और अब उनके पास कुछ नहीं बचा, कोई छिपी हुई योजना नहीं है - बस परमेश्वर, तब उसे अपने सेवकों पर दया भाव आता है (व्यवस्थाविवरण 32:36) ।
यिर्मयाह की पुस्तक के अध्याय 18 में, यहोवा नबी को कुम्हार के घर जाने के लिए कहता है और यह कि वह उसे वहाँ एक संदेश देगा। यिर्मयाह ने कुम्हार को मिट्टी का घड़ा बनाते देखा। बर्तन का आकार सभी तरफ से तुड़ा-मुड़ा हुआ था और इसमें न तो सुंदरता थी और न ही इसका इस्तेमाल करने के लिए सही आकार। कुम्हार ने इसे पहिये से हटा लिया और आनम्य मिट्टी के साथ फिर से वह बनाना शुरू कर दिया जो वह शुरुआत से बनाना चाहता था। परमेश्वर ने यिर्मयाह, इज़रायल और हमें भी जो सबक सिखाया, वह यह है कि हमारे टूटेपन के माध्यम से, परमेश्वर हमें फिर से ढालता है और रूपांतरित करता है। लेखक, ए.डब्ल्यू. टोज़र ने एक बार कहा था, "परमेश्वर कभी किसी व्यक्ति का तब तक बहुत उपयोग नहीं करता जब तक कि उसने उसे गहरी चोट नहीं पहुँचाई हो।" बेशक, परमेश्वर की इच्छा कभी भी चोट पहुँचाने की नहीं है, बल्कि चंगाई देने, पुन: स्थापित करने और हमें भीतर से रूपांतरित करने की है, अर्थात ऐसा, जो हमारे मानवीय स्वरूप के लिए आसान नहीं है।
आप इस समय किन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं, और आपके छोटे समूह के अन्य लोग आपके लिए कैसे प्रार्थना कर सकते हैं?
प्रभु को एक परमेश्वर के स्त्री या पुरुष बनाने के लिए एक टूटे और खेदित मन की आवश्यकता है। टूटे से मेरा क्या अर्थ है? टूटापन एक व्यक्ति के जीवन में परमेश्वर का कार्य है, जो किसी को अपने जीवन को सम्पूर्ण त्याग के अवस्था तक पिता के हाथों में पूर्ण निर्भरता और भरोसे के स्थान पर छोड़ने के लिए अग्रणी है। जॉन कोलिन्सन, एक अंग्रेजी पासबान, इसे इस तरह से कहते हैं;
जब परमेश्वर की इच्छा को करने का अर्थ है कि मेरे मसीही भाई भी नहीं समझेंगे और मुझे याद है कि प्रभु के भाई भी उसे नहीं समझे थे या उस पर विश्वास नहीं करते थे, और मैं गलतफहमी को अपनाते हुए आज्ञा मानने के लिए अपना सिर झुकाता हूँ, यही टूटापन है। जब मुझे गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, या जानबूझकर गलत समझा जाता है, और मैं याद करता हूँ कि यीशु पर झूठा आरोप लगाया गया था, लेकिन उसने अपनी शांति कायम रखी, और मैं खुद को सही ठहराने की कोशिश किए बिना आरोप स्वीकार करता हूँ, यही टूटापन है। जब मेरे सामने दूसरे को तरहीज दी जाती है, और मुझे जानबूझकर नकारा जाता है, और मैं याद करता हूँ कि वे चिल्लाये "इस का काम तमाम कर, और हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे" और मैं अपना सिर झुका कर अस्वीकृति स्वीकार करता हूँ, यही टूटापन है। जब मेरी योजना को एक तरफ रख दिया जाता है, और मैं दूसरों की महत्वाकांक्षाओं के लिए अपने वर्षों के काम को व्यर्थ होते देखता हूँ और मुझे याद आता है कि यीशु ने उनको उसे ले जाकर क्रूस पर चढ़ाने की अनुमति दी, और मैं अपना सिर झुका कर बिना कड़वाहट अन्याय को स्वीकार करता हूँ, यही टूटापन है।
जब अपने परमेश्वर के साथ सही होने के लिए अंगीकार और पुन: स्थापना का दीन मार्ग लेना आवश्यक है, और मैं याद करता हूँ कि यीशु ने स्वयं की प्रतिष्ठा को शून्य करते हुए अपने आप को मृत्यु के लिए दीन किया, यहाँ तक कि क्रूस की मृत्यु के लिए, और मैं अपना सिर झुकाता हूँ, और शर्मिंदगी उठाने के लिए तैयार हूँ, यही टूटापन है। जब अन्य लोग मेरा अनुचित लाभ उठाते हैं क्योंकि मैं एक मसीही हूँ और मेरे सामान को सार्वजनिक संपत्ति के रूप में मानते हैं और मैं याद करता हूँ कि उन्होंने उसके वस्त्र उतार उन्हें आपस में बाँट लिया था, और मैं अपना सिर झुकाता हूँ और उसके लिए आनंद के साथ अपने समान के खराब होने को स्वीकार करता हूँ, यही टूटापन है। जब कोई मेरे प्रति क्षमा न किए जाने वाली रीति से कार्य करता है, और मैं याद करता हूँ कि जब उसे सूली पर चढ़ाया गया था, उसने प्रार्थना की "पिता उन्हें क्षमा कर क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या करते हैं" और मैं अपना सिर झुकाता हूँ और अपने स्वर्गीय पिता की अनुमति के अनुसार अपने प्रति किसी भी व्यवहार को स्वीकार करता हूँ, यही टूटापन है। जब लोग मुझसे असंभव की उम्मीद करते हैं, ऐसा जो समय और मानव शक्ति से अधिक है, और मैं याद करता हूँ कि यीशु ने कहा था "यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिए तोड़ी गई है" और मैं अपने आत्म-भोग और स्वयं को दूसरों के लिए देने की कमी के लिए पश्चाताप करता हूँ, यही टूटापन है।
प्रार्थना; पिता, हम परमेश्वर के महान व्यक्ति पतरस को याद करते हैं कि कैसे कमियों के बावजूद, वह अपनी परीक्षाओं के द्वारा क्या बना और कैसे आप उसका महत्वपूर्ण रीति से उपयोग कर सके। क्या आप हम में से प्रत्येक में कार्य करना जारी रखेंगे और हमें मिट्टी की तरह आकार देंगे, ताकि हम आपकी तरह बन सकें और आपके द्वारा हमारे लिए तैयार की गई चीजों को पूरा कर सकें?
कीथ थॉमस
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