38. Jesus Sentenced to be Crucified
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38. यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने की सज़ा सुनाई गई
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पुराने नियम में, पाँच सौ वर्ष से भी पहले, भविष्यद्वक्ता यशायाह ने परमेश्वर के पीड़ित सेवक की बात की थी जिसे इजराइल के लिए भेजा गया था। उसने लिखा;
मैंने मारने वालों को अपनी पीठ और गलमोछ नोचने वालों की ओर अपने गाल किए; अपमानित होने और थूकने से मैंने मुंह न छिपाया (यशायाह 50:6)
मसीह के साथ जो कुछ भी हुआ वह परमेश्वर की योजना के अनुसार था। पिन्तेकुस्त के दिन, प्रेरित पतरस ने अपने सम्मुख 3,000 से अधिक यहूदियों से कहा, "उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधमिर्यों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वा कर मार डाला" (प्रेरितों के काम 2:23; बल मेरी ओर से जोड़ा गया है)। परमेश्वर के संप्रभु हाथ के नीचे, पिता ने अपने पुत्र को हमारे पाप के लिए हमारे प्रतिस्थापन बलिदान के रूप में उपहार में दिया, यहूदियों और अन्यजातियों, अर्थात्, सम्पूर्ण मानवता के लिए, हमारी दुष्टता में हमारी पापमयता को उस पर रोपित किया।
पीलातुस ने यीशु को दूसरी बार भी निर्दोष पाया (यहुन्ना 19:6-12)
6जब महायाजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर”! पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उसमें दोष नहीं पाता।” 7यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया।” 8जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया। 9और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया। 10पीलातुस ने उससे कहा, “मुझ से क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।” 11यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिये जिसने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।” 12इससे पीलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा, परन्तु यहूदियों ने चिल्ला चिल्लाकर कहा, “यदि तू इस को छोड़ देगा तो तेरी भक्ति कैसर की ओर नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का सामना करता है।” (यहुन्ना 19:6-12)
जब सैनिक यीशु को अपमानित कर चुके, तब उन्होंने उसे पीलातुस को लौटा दिया। मुझे लगता है कि पीलातुस अपने सम्मुख खड़े अधमरे आदमी को देख चौंक गया होगा। मेल गिब्सन द्वारा फिल्म, पैशन ऑफ द क्राइस्ट, सुस्पष्ट रूप से इसका चित्रण करती है, हालांकि वचन में पीलातुस के चौंकने या अफ़सोस की बात नहीं है। पीलातुस को यकीन था कि मसीह के कोड़े खाने से आंगन में यहूदियों की भीड़ के बीच उसके प्रति सहानुभूति बढ़ेगी, और मसीह को उनके सामने उस दशा में पेश करने में, पीलातुस को उम्मीद थी कि वह उसे रिहा कर पाएगा। जैसा कि हम लूका 23:4, 15, 20, 22 यहुन्ना 19:4,12,13 से जान पाते हैं; पीलातुस ने प्रभु को मुक्त करने के लिए पाँच प्रयास किए। प्रभु यीशु के कोड़ों से घायल अवस्था में भीड़ के सम्मुख होने के इस भयानक दृश्य की भविष्यवाणी पाँच सौ से अधिक वर्षों पहले यशायाह द्वारा की गई थी;
जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए (क्योंकि उसका रूप यहाँ तक बिगड़ा हुआ था कि मनुष्य का सा न जान पड़ता था और उसकी सुन्दरता भी आदमियों की सी न रह गई थी) (यशायाह 52:14)
मसीह को इतनी बुरी तरह पीटा गया था कि उसका रूप अब इस हद तक भंग हो गया था कि वह अब शायद ही इंसान दिख रहा था। पीलातुस ने उनके सामने यीशु को प्रस्तुत किया, “देखो, यह पुरूष” (यहुन्ना 19:5b)। उनके सम्मुख धरती पर जन्मा सबसे सिद्ध, प्रेम करने वाला, और दयालु मनुष्य था। यहाँ परमेश्वर देह में था, हमारी समझ में आने वाली रीति से यह दर्शाते हुए कि परमेश्वर कैसा है, फिर भी मानवता ने उसे अस्वीकार कर दिया। वचन में यीशु का विवरण मनुष्य का अस्वीकारा, दुखों का मनुष्य और दु:ख से परिचित के रूप में दिया गया है (यशायाह 53:3)।
कोड़े लगने के बाद, जब यीशु को भीड़ के सामने पेश किया गया, तो मुख्य पुजारियों, अगवों और अधिकारियों ने भीड़ को सहानुभूति महसूस करने के लिए कोई समय नहीं दिया। वे ही वह लोग थे जिन्होंने तुरंत चिल्लाने की पहल की, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” भीड़ में उसकी माँ और भाइयों और शिष्यों की भावनाओं की कल्पना करें (हमें नहीं बताया गया है), खासकर जब वे सैनिकों की पलटन के दुर्व्यवहार के बाद अपने प्यारे मसीह की ओर देख रहे होंगे। भीड़ को, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” (यहुन्ना 19:6-12) की चीख-पुकार करते सुनकर वे चौंक गए और भयभीत हो गए होंगे।
हमें यह नहीं सोचना चाहिए, अगर हम वहाँ होते, तो कुछ अलग होता। हमारे हृदयों में भी उतनी ही मानवीय प्रव्रत्ति और पाप की समस्या है जितनी कि उनके हृदयों में थी। हम सभी अपने आप को उस आंगन में देखते हैं। हमारे पापी स्वभाव से उद्धार का एक ही तरीका था। एक विकल्प होना चाहिए था जो हमारे अपराध को अपने ऊपर ले ले और इसे दूर कर दे। यीशु के लिए परमेश्वर का शुक्र है। वह परमेश्वर का सिद्ध मेमना है।
जब उसने यीशु को दोषी नहीं पाया, तब पीलातुस ने फिर से दूसरी बार भीड़ से कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उस में दोष नहीं पाता” (यहुन्ना 19:6b)। इस बिंदु पर पीलातुस ने कार्यवाही समाप्त क्यों नहीं कर दी? अगर यीशु को दोषी नहीं ठहराया गया था, तो इन भरमाने वाले लोगों को क्यों सुनना? 7यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया।” 8जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया। (यहुन्ना 19:7-8)
जब यहूदी अगवों ने बताया कि यीशु ने परमेश्वर का पुत्र होने का दावा किया है, तो उस विचार ने पीलातुस को और अधिक भयभीत क्यों किया?
यहूदी नेताओं में बुराई और नफरत की गहराई की कोई सीमा नहीं थी। अपने विकृत मनों में, वे एक ऐसे मसीहा की उम्मीद कर रहे थे जो उन्हें रोमी कब्जे से छुड़ाएगा। उन्हें पाप से उद्धारकर्ता की आवश्यकता नहीं थी; वे अपने जैसे मसीहा की तलाश में थे।
कभी-कभी, मेरा सामना ऐसे लोगों से हुआ है जिन्होंने मुझसे कहा है कि यीशु ने कभी भी परमेश्वर के पुत्र होने का दावा नहीं किया। मैं नहीं जानता कि वे कौन सी बाइबल पढ़ते हैं, लेकिन यहाँ इस खंड में, यहाँ तक कि यीशु के दुश्मन भी कह रहे हैं कि यीशु ने कहा की वो परमेश्वर का पुत्र है (पद 7)। उन्होंने उस पर विश्वास नहीं किया, लेकिन क्या आप करते हैं? यहूदियों ने अब मूसा के कानून से पीलातुस से गुहार लगाई, जिसमें कहा गया है; "यहोवा के नाम की निन्दा करने वाला निश्चय मार डाला जाए" (लैव्यव्यवस्था 24:16)। जैसा कि हमने पिछले अध्ययन में कहा था, वे नहीं चाहते थे कि उसका पथराव किया जाए, यानी, मृत्युदंड का विशिष्ट यहूदी तरीका। वे पीलातुस को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे कि वह उसे एक काठ पर लटकाकर शापित करे (व्यवस्थाविवरण 21:23, क्रूस को काठ के खंभे के रूप में देखा जाता था)।
अधिकार और जवाबदेही (यहुन्ना 19:9-11)
इस आमने-सामने में पहली बार, पीलातुस ने अब डर में चलते हुए कार्य किया। रोमी लोग अपने अलग-अलग देवताओं के देव समूह के डर से शासित थे। कैसर को जवाब देना एक बात थी, लेकिन रोमी देवताओं को भी? यह तो डरावना था! शायद, पीलातुस ने देखा कि यीशु में कोई डर नहीं था, यानी, उसने बिना किसी अंगीकार के, कोड़े खाने की यातना का सामना किया था। मसीह के आचरण ने शायद उसे इस संभावना का आभास कराया कि शायद यह मनुष्य परमेश्वर का पुत्र था। शायद उसे अपनी पत्नी की टिप्पणी भी याद आई जिसमें उसने उस निर्दोष व्यक्ति के मामले में हाथ न डालने को कहा था (मत्ती 27:19)। पीलातुस व्यक्तिगत रूप से उससे बात करने के लिए अब यीशु को फिर से अपने निवास स्थान में ले गया। और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया (यहुन्ना 19:9)। भले ही वह पीलातुस के फर्श पर लहू टपकते हुए एक खूनी द्रव्यमान लग रहा था, यीशु अपने मौन रहने में राजसी और पूरी तरह से नियंत्रण में था। यह पीलातुस था जो परीक्षा में था। यीशु द्वारा बचाए जाने के रास्ते की कोई गुहार नहीं थी। वह पिता की योजना के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध था। पीलातुस ने उसे धमकी देते हुए बात करने की आज्ञा दी, “क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।” 11यीशु ने उत्तर दिया, “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिये जिस ने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।” (पद 10-11)
पद 11 में यीशु क्या कह रहा था? अधिकार में कौन है?
यीशु ने कहा कि कैफा, जिसने मसीह को पीलातुस को सौंपा था, वह बड़े पाप का दोषी है। क्या पाप के विभिन्न स्तर हैं, और आपको क्या लगता है कि वह क्या है जो एक मनुष्य को दूसरे की तुलना में अधिक उत्तरदायी ठहरता है?
पीलातुस ने खुद को उस एकमात्र व्यक्ति के रूप में देखा जो अब मसीह की मदद कर सकता था। उसके दृष्टिकोण से, यीशु का संसार में कोई मित्र नहीं था। यदि आप एक मसीही हैं, तो दुश्मन के इस झूठ पर कभी विश्वास न करें। परमेश्वर आपके ऊपर नज़र रखे है, और आपका राजा बिलकुल निकट है। भौतिक स्तर पर होने वाली हर चीज पर ध्यान दिया जाता है; कुछ भी स्वर्ग की चौकस नज़र से बचता नहीं है (2 इतिहास 16:9)। प्रभु अपने लोगों द्वारा दर्दनाक बातों को अनुभव करने की अनुमति देगा, लेकिन हर कार्य को न्याय में लाया जाएगा। लोगों को उनके मुंह से निकलने वाले हर शब्द के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा; "और मैं तुम से कहता हूँ, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे" (मत्ती 12:36)। एक अन्य स्थान पर लिखा है, "और सृष्टि की कोई वस्तु उससे छिपी नहीं है वरन जिससे हमें काम है, उसकी आंखों के सामने सब वस्तुएं खुली और बेपरदा हैं" (इब्रानियों 4:13)।
पीलातुस ने सोचा कि उसके पास अधिकार है, लेकिन प्रभु यीशु ही वह था जो वास्तव में नियंत्रण में था। पीलातुस जवाबदेह था और एक दिन मसीह के न्याय के आसन के समक्ष उपस्थित होगा; "क्योंकि अवश्य है, कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने-अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों पाए” (2 कुरिन्थियों 5:10)। उस दिन, यदि कोई व्यक्ति मसीह के बिना है, तो अपराध और दंड के विभिन्न स्तर होंगे। अपने कार्यों द्वारा खुद को भ्रष्ट करना एक बात है, लेकिन दूसरों को पाप के लिए प्रभावित करना पूर्णत: अलग बात है। उनके प्रभाव के स्तर के कारण अगवों को जवाबदेही के उच्च स्तर पर रखा जाता है (याकूब 3:1)। उन सभी के लिए जिन्होंने मसीह पर भरोसा किया है, वे अपने पाप के विषय में न्याय में प्रवेश नहीं करेंगे; यीशु द्वारा मसीह के क्रूस पर न्याय का भुगतान चुका दिया गया था (यहुन्ना 5:22-24)। इस अन्याय से निपटने में पीलातुस का न्याय किया जाएगा, लेकिन महायाजक और सत्ताधारी अगवे मसीहा (क्रीष्ट) की अस्वीकृति में अपने हिस्से के लिए अधिक दोषी ठहरेंगे।
पीलातुस ने फिर से यीशु को आज़ाद करने की कोशिश की (पद 12), लेकिन यहूदी जिद पकड़े थे। उनके पास भरमाने का एक और तरीका था जो अब भी उनके पास था, और यीशु के साथ पीलातुस की अंतिम व्यक्तिगत बातचीत के बाद और उसके द्वारा मसीह की बेगुनाही में विश्वास की उसकी तीसरी घोषणा के बाद, यहूदियों ने अपना तुरुप का इक्का यह चिल्लाते हुए निकाला, “यदि तू इस को छोड़ देगा तो तेरी भक्ति कैसर की ओर नहीं; जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर का सामना करता है” (पद 12)।
पद 12 में यहूदी पीलातुस को क्या धमकी दे रहे थे?
राजा यीशु का नकारा जाना (यहुन्ना 19:13-16)
13ये बातें सुनकर पीलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा था जो इब्रानी में गब्बता कहलाता है, और न्याय आसन पर बैठा। 14यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था; तब उसने यहूदियों से कहा, “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!” 15परन्तु वे चिल्लाए कि “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” पीलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊं?” महायाजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” 16तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए। (यहुन्ना 19:13-16)
पीलातुस एक कठिन परिस्थिति में आ गया था, क्योंकि उसे यह तय करना था कि वह किस राज्य की सेवा करेगा। "दोषी नहीं" का फैसला देना लगभग निश्चित रूप से उसके राजनीतिक जीवन को बर्बाद कर देता। रोम किसी ऐसे व्यक्ति को सजा न देने के बदले जिसने कैसर के अधिकार को खुली चुनौती दी थी, उसे सजा दे सकता था। पीलातुस गवर्नर के रूप में अपनी भूमिका में सहज था और कैसर द्वारा उसके खराब नेतृत्व के बारे में सुनने के बजाए उसके लिए एक निर्दोष व्यक्ति को अपराधी ठेहरना बेहतर था। अपनी खीज में, वह हार मान गया। परमेश्वर के राज्य की अधीनता में आने के बजाय, पीलातुस ने सत्ता, सांसारिक सफलता और अल्पकालिक आराम के लिए सत्य को नकार दिया।
24जब पीलातुस ने देखा, कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत हुल्लड़ होता जाता है, तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धोए, और कहा; “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम ही जानो।” 25सब लोगों ने उत्तर दिया, “इस का लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।” (मत्ती 27:24-25)
क्या आपको लगता है कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने के बाद पिलातुस ने पुनर्विचार किया या अपने कार्य पर कोई पछतावा किया होगा? क्या आपको लगता है कि वह बाद में अपराध बोध से ग्रस्त हुआ था?
काश कि हमारे पाप के लिए अपराध बोध और जवाबदेही को हाथ धोने से दूर किया जा सकता। काश यह इतना आसान होता! केवल एक चीज है जो पाप को दूर करती है; पाप के लिए पूर्ण भुगतान के रूप में क्रूस पर बहाया गया यीशु का लहू। यह उस दिन लोगों द्वारा एक दुखद बात कही गई; "इस का लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो” (मत्ती 27:25)। लगभग दो हजार वर्षों के लिए, अर्थात् 70 मसीह पश्चात से वर्ष 1948 तक, यहूदी लोगों को उनकी भूमि से भगा दिया गया था। यह संभावना है कि परमेश्वर ने उन्हें एक राष्ट्र के रूप में अनुशासित किया है, लेकिन साथ ही, उन प्रारंभिक यहूदी विश्वासियों का उपयोग अन्यजातियों तक सुसमाचार पहुँचने के लिए भी किया है।
यहुन्ना लिखता है कि पीलातुस, यहूदी नेतृत्व से खिजते हुए कि वह यीशु को अपने राजा के रूप में अपनाने से नकार रहे हैं, ने कहा; “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!” 15परन्तु वे चिल्लाए कि “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” पीलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊं?” महायाजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” 16तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए। (यहुन्ना 19:15-16)। इस बिंदु पर अगवों ने क्या झूठी बात कही। बाइबल कहती है कि मुँह के द्वारा हृदय बात करता है (मत्ती 15:18)। यह सोचना अविश्वसनीय है कि इस समय पर यहूदियों ने कैसर के उनका राजा होने का दावा किया। परमेश्वर के लोग खुद को अलग और पवित्र के रूप में देखते हैं, जो किसी अन्य राजा द्वारा शासित नहीं हो सकते, लेकिन इज़राइल के अगवे कह रहे थे कि वे इस पुरुष यीशु के बजाय जिसे वे विधर्मी समझते थे, उनके राजा के रूप में उस कैसर के शासन के लिए तैयार थे।
बाद में पीलातुस का क्या हुआ? एक रोमी इतिहासकार और बाइबिल के एक विद्वान यूसेबियस ने शुरुआती एपोक्रिफ़ल लेखों को उद्धृत करते हुए लिखा कि पीलातुस को कैलीगुला (मसीह पश्चात 37–41) के शासनकाल में एक दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा, उसे गॉल में निर्वासित कर दिया गया था, और अंततः उसने विएना में आत्महत्या कर ली। 10वीं शताब्दी के इतिहासकार, हिरापोलिस के अगापियस ने अपने यूनिवर्सल हिस्ट्री में कहा है कि पीलातुस ने कैलीगुला के शासनकाल के पहले वर्ष के दौरान मसीह पश्चात 37/38 में आत्महत्या कर ली थी।
हो सकता है कि वहाँ ऐसे भी लोग थे, जो यीशु के निर्दोष होने के बारे में निश्चित थे, लेकिन फिर भी उन्हें लग रहा था कि जो कुछ हुआ वह उसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते थे और गुस्साई भीड़ के बीच सार्वजनिक जाँच का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। जबकि भीड़ में कई लोग शायद यीशु के शिष्य थे, कई लोग बर्रअब्बा चिल्ला रहे थे। उनका आचरण वैसा था जो पिछले बीस सदियों से लगातार पाया गया है; "हम नहीं चाहते कि यह मनुष्य हमारे ऊपर शासन करे!" यह इस बात को तय करने का सबसे बुनियादी तरीका है कि कौन सच्चा मसीही है और कौन नहीं।
जब यीशु ने परमेश्वर के राज्य के बारे में बात की, तो उसके मन में राजा के शासन और प्रभुता की बात थी। यीशु वह राजा है और उसकी माँग हर मानव हृदय में उसके राजा और प्रभु के रूप में होने की उसकी सही जगह के लिए है। यदि वह राजा और प्रभु नहीं, तो हम स्वयं है। या तो हम उसे हर चीज का प्रभु होने देते हैं, या हम खुद को हर चीज का प्रभु बनाते हैं।
यह इतना आसान है और मौलिक है। दो हजार वर्ष पूर्व, लोगों ने उसके शासन और प्रभुता को खारिज कर दिया था। आज भी वही कहानी है। अधिकांश लोग यीशु को इस कारण अस्वीकार करते हैं कि वे स्वयं की आराधना करना पसंद करते हैं, वे अपने पाप से प्रेम करते हैं, और वे किसी और के आगे झुकने से इनकार करते हैं। वे यीशु को नहीं चाहते क्योंकि इसका अर्थ खुद को ना कहना और उसको हाँ कहना है। यह निष्ठा का विशाल परिवर्तन है। जिस मार्ग पर हम सफर कर रहे हैं उसमें एक से ज़्यादा मोड़ हैं। यीशु मसीह पर भरोसा करने का हमारा प्रारंभिक निर्णय हमारे द्वारा लिया सबसे महत्वपूर्ण निर्णय होगा, लेकिन यह कईयों में पहला है। प्रत्येक दिन, हमें चुनना होगा कि हम किस राज्य की सेवा करेंगे। क्या आप सच्चाई के आधीन होंगे या अधिकार के आगे झुकेंगे?
यीशु, परमेश्वर के सिद्ध मेमने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद। वह एकमात्र ऐसा जन था जो पूर्णत: हमारा दाम चुका सकता था, अर्थात, फसह के मेमने के जैसा एक सिद्ध, पाप रहित बलिदान। परमेश्वर का धन्यवाद कि उसके प्रेम के बलिदान के कारण मृत्यु की हम पर कोई पकड़ नहीं है।
प्रार्थना: पिता, आपके सिद्ध पुत्र यीशु के बलिदान के लिए धन्यवाद। मैं मांगता हूँ कि आपका पवित्र आत्मा मुझे बुराई से दूर रखे, अपना वचन मेरी समझ के लिए खोलिए, और मुझे आपकी सच्चाई, आपकी इच्छा और आपके राज्य को चुनने का बल दें। महिमा सदा आपकी है। आमिन!
कीथ थॉमस
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