40. The Burial and Resurrection of Christ
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40. मसीह का दफनाया जाना और पुनरुत्थान
यीशु की मृत्यु पर क्या हुआ?
हम मसीह के पीड़ा सहने और मृत्यु और क्रूस पर घटी घटनाओं के पिछले अध्ययन से आगे बढ़ रहे हैं। दोपहर के समय, सम्पूर्ण भूमि पर अंधेरा छा गया (मत्ती 27:45)। यह अंधकार पूर्ण अंधकार नहीं था, जैसा कि परमेश्वर ने इजराइल को मिस्र बाहर लाने से पहले होने दिया था (निर्गमन 10:21)। जो लोग वहाँ थे वे अभी भी उस नाटकीय घटना को प्रकट होते देख सकते थे। कलिसिया के कुछ शुरुआती अगवों ने इस अंधकार के बारे में लिखा था कि यह केवल इजराइल की भूमि पर ही नहीं बल्कि पूरे संसार पर आया था। प्रारंभिक कलीसिया का पिता और लेखक, टर्टुलियन ने इस घटना का उल्लेख अपने एपोलोजेटिकम में किया था - जो उस समय रोमी साम्राज्य में अविश्वासियों के लिए लिखी मसीही धर्म की प्रतिरक्षा थी; "मसीह की मृत्यु के समय, प्रकाश सूर्य से विदा हो गया था, और भूमि पर दोपहर के समय अंधेरा हो गया, जो आश्चर्य की बात आपके अपने इतिहास में दर्ज है और आज तक आपके पुरालेखों में संरक्षित है।”
मुझे यकीन है, कि क्रूस पर चढ़ाए जाने के दृश्य को देखने वाले कुछ लोगों हृदयों में यह आशा थी कि मृत्यु नहीं होगी। उन्होंने सोचा था कि एलिय्याह आएगा (मत्ती 27:46) और यीशु अपने आलोचकों और शत्रुओं को चकित करते हुए किसी चमत्कारिक तरीके से क्रूस से नीचे उतर आएगा। उस समय में, वे उसकी मृत्यु की आवश्यकता को नहीं समझते थे। यीशु की प्रतिस्थापन की मृत्यु के द्वारा ही नया जीवन परमेश्वर के लोगों के उपलब्ध हो सका। परमेश्वर के प्रेम और न्याय की मांग थी कि पाप का भुगतान किया जाए; इसलिए, यीशु को हमारे बदले पापी के रूप में मरना पड़ा।
31और इसलिये कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पीलातुस से विनती की कि उनकी टांगे तोड़ दी जाएं और वे उतारे जाएं ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था। 32सो सिपाहियों ने आकर पहले की टांगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे। 33परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उस की टांगें न तोड़ीं। 34परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर भेदा और उसमें से तुरन्त लहू और पानी निकला। 35जिसने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो। 36ये बातें इसलिये हुईं कि पवित्र शास्त्र की यह बात पूरी हो कि उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी। 37फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, कि जिसे उन्होंने भेदा है, उस पर दृष्टि करेंगे। (यहुन्ना 19:31-37)
अपराह्न 3 बजे मसीह की मृत्यु के बाद, फसह का विशेष सब्त निकट आया (अगला दिन सूर्यास्त के समय शुरू होता था), इसलिए रोमी सैनिकों ने क्रूस पर चढ़ाए दो चोरों के पैरों को एक भारी मूसल से तोड़ दिया। पैर टूटने से मृत्यु इसलिए जल्दी हो जाती क्योंकि दोनों चोर सांस लेने के लिए अपने पैरों के नीचे लकड़ी के टुकड़े पर धक्का नहीं दे सकते थे। दम घुटने (हवा से वंचित होने) के कारण जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई। जब सैनिक यीशु के पास आए, तो वह पहले ही मर चुका था, इसलिए उन्हें उसके पैर तोड़ने की जरूरत नहीं थी। कई वर्षों पहले, भविष्यवक्ताओं ने इन घटनाओं के बारे में बात की थी; “19धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है। 20वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती”(भजन 34:19-20)। पवित्रशास्त्र यह आज्ञा भी देता था, कि जब यहूदी लोग फसह के मेमने को खाएं या ग्रहण करें, तो उसकी कोई हड्डी हूटी नहीं होनी चाहिए, "…कोई हड्डी न तोड़ना" (निर्गमन 12:46)। सैकड़ों वर्षों तक, यहूदी लोग फसह की रात मेमने को खाते रहे, लेकिन कभी यह नहीं सोचा था कि एक देहधारी मनुष्य इस मेमने का प्रतीक होगा, एक व्यक्ति जो भविष्यवाणियों के हर एक शब्द को पूरा करने के लिए आएगा। फसह के समय में येरूशलम में कम से कम बीस लाख लोग होते थे, जिसमें हर घर में फसह खाने के लिए कम से कम दस लोग होते ही थे। परमेश्वर ने आज्ञा दी थी कि मेमने को पूरी तरह से खाया जाना था (निर्गमन 12:10)। परमेश्वर के मेमने को आंतरिक रूप से ग्रहण किया जाना था, “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं” (यहुन्ना 1:12)
परमेश्वर के पूर्वज्ञान में, वह जानता था कि कुछ लोग कहेंगे कि यीशु वास्तव में कभी नहीं मरा, लेकिन वह क्रूस पर बेहोश हो गया था। संदेहियों को गलत साबित करने के लिए, पिता ने एक रोमी सैनिक को अपने भाले से यीशु के पंजर को भेदने की अनुमति दी। यहुन्ना ने गवाही दी कि उस तरफ से लहू और पानी निकला (यहुन्ना 19:34), यानी, चिकित्सा साक्ष्य जो कानून की अदालत में साबित करता है कि मृत्यु हुई थी। क्रूस पर चढ़ने से मृत्यु के दो प्राथमिक कारण थे; हाइपोवोलेमिक शॉक और थकावट से दम घुंटना।
हाइपोवोलेमिक शॉक एक ऐसा शब्द है जो डॉक्टर कम रक्त की मात्रा के लिए देते हैं। मसीह की बेरहमी से कोड़े मारे जाने और पिटाई से उसे इतना खून खोना पड़ा कि वह अपना क्रूस उठाने के लिए भी बहुत कमजोर था। हाइपोवॉलेमिक शॉक में, पीड़ित निम्न रक्तचाप के कारण निपातावस्था में चला जाता है। महान प्यास के कारण शरीर के तरल पदार्थों को संरक्षित करने के लिए गुर्दे भी काम करना बंद कर देते हैं जिस से अत्यंत प्यास लगती है और दिल के आसपास की थैली, पेरीकार्डियम के आसपास पानी इकट्ठा हो जाता है। मृत्यु से पहले, रक्त की कम मात्रा और तेजी से दिल की धड़कन के कारण द्रव हृदय और फेफड़ों के आसपास की थैली में इकट्ठा हो जाता है। यहुन्ना की गवाही कि पानी और लहू, जो मसीह की पसली में भाले के घाव से निकला था, दर्शाता है कि मृत्यु हो गयी थी क्योंकि सीरम से थक्का अलग हो गया था। जिस तरह प्रभु ने पहले मनुष्य, आदम की पसली से एक पत्नी बनाई (उत्पत्ति 2:22), उसी तरह, मसीह की दुल्हन भी अंतिम आदम, यीशु के पंजर से आई।
यीशु की मृत्यु के समय की आलौकिक घटनाएँ
50तब यीशु ने फिर बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिए। 51और देखो मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया; और धरती डोल गई और चटानें तड़क गईं। 52और कब्रें खुल गईं; और सोए हुए पवित्र लोगों की बहुत लोथें जी उठीं। 53और उसके जी उठने के बाद वे कब्रों में से निकलकर पवित्र नगर में गए, और बहुतों को दिखाई दिए। 54तब सूबेदार और जो उसके साथ यीशु का पहरा दे रहे थे, भुईंडोल और जो कुछ हुआ था, देखकर अत्यन्त डर गए, और कहा, सचमुच “यह परमेश्वर का पुत्र था”। (मत्ती 27:50-54)
सैनिकों के लिए यह क्रूस पर चढ़ाए जाना इस हद तक अलग कैसे था कि "वे अत्यंत डर गए?" (मत्ती 27:54)। जैसा उन्होंने देखा और अनुभव किया, उस पर चर्चा करें।
दोपहर के समय तीन घंटे तक रहने वाला अंधेरा किसी भयानक घटना के होने या घटित होने का पूर्वाभास था। हम सभी समझते हैं कि भूकंप क्या है, लेकिन मत्ती स्पष्ट रूप से चट्टानों के तड़कने का उल्लेख करता है (पद 51)। यह उन लोगों के लिए कितना असहज रहा होगा जो मसीह की मृत्यु के गवाह थे। आपको क्या लगता है कि मत्ती चट्टानों के तड़कने की बात को क्यों उठाता है?
यरुशलम बहुत ही चट्टानी इलाके में स्थापित है जहाँ लोगों को दफनाने के लिए कम ही मिट्टी है। अधिकांश कब्रों को आसपास की चट्टानों को काटकर या जमीन के ऊपर बनाया गया है और उन्हें एक सिल्ली, चट्टान या बड़े पत्थर से बंद किया गया है। क्या ऐसा हो सकता है कि यह वे तड़की हुई चट्टानें हों जिनका वह जिक्र कर रहा है? उन लोगों ने देखा कि बंद कब्रें खुल गईं हैं और पवित्र पुरुष और महिलाएँ उठ वहाँ घूम रहे थे! हम नहीं जानते कि ये कौन लोग थे, केवल यह कि वे पवित्र पुरुष और महिलाएं थीं जिनकी मृत्यु हो गई थी और उन्हें दफनाया गया था। मुझे इस घटना के बारे में अपने सभी प्रश्न पूछने के लिए स्वर्ग जाने का इंतजार करना होगा!
यरूशलेम के द्वार से गुजरने से पहले उन्हें यीशु के पुनरुत्थान तक इंतजार क्यों करना पड़ा? कई लोगों को उनके दिखने का क्या महत्व था?
प्रेरित पौलुस ने लिखा है, "परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ" (1 कुरिन्थियों 15:20)। यीशु उन लोगों में पहला फल था, जो "सो गए थे।"
जब मसीह मरा, तो मंदिर में क्या हुआ?
मत्ती ने लिखा है, कि जब यीशु ने अपनी आत्मा को त्याग दिया, तो मंदिर के अंदर एक घटना घटी। आइए हम पहले मंदिर के अंदर की तस्वीर प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, और फिर पर्दे के साथ जो हुआ उसके महत्व को देखेंगे।
मंदिर की इमारत में दो कमरे थे जो एक विशाल पर्दे द्वारा एक दूसरे से अलग थे। पहले कमरे को पवित्र स्थान कहा जाता था, और पर्दे के पीछे दूसरे आंतरिक कमरे को अति-पवित्र स्थान या अत्यंत पवित्र स्थान का नाम दिया गया था। पहले कमरे, पवित्र स्थान में, याजकों को रोटी की मेज़ पर रोटी, धूप की मेज पर धूप, और सात-हाथों वाले दीवट में जैतून का तेल फिर से भरने की अनुमति थी। परमेश्वर की उपस्थिति से याजकों को अलग करता एक मनुष्य के हाथ जितना मोटा तीस फुट चौड़ा भारी पर्दा था। उस पर्दे के उस पार अति-पवित्र स्थान था जहाँ परमेश्वर की उपस्थिति एक बादल में वास करती थी। सुलेमान के मंदिर में, भीतरी अति-पवित्र कक्ष में एक सन्दूक था जिसे वाचा का सन्दूक कहा जाता था। यह बबूल की लकड़ी से बना था और अंदर और बाहर से शुद्ध सोने से ढका हुआ था। वाचा के सन्दूक में दस आज्ञाओं की पट्टियाँ रखीं थीं जिन पर और एक सोने का आवरण या ढक्कन था जिसे प्रायश्चित्त का ढकना कहा गया था। वाचा के दोनों ओर प्रायश्चित्त का ढकने पर नीचे देखते हुए दो सुनहरे करूब या स्वर्गदूत थे जिनके पंख कमरे में हर तरफ छूते थे (1 राजा 6:23-28)।
यह प्रायश्चित्त के ढकने पर था कि परमेश्वर की प्रकट उपस्थिति, शकाईनाह महिमा, एक बादल के रूप में प्रकट थी। "मैं प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर से और उन करूबों के बीच में से, जो साक्षीपत्र के सन्दूक पर होंगे, तुझ से वार्तालाप किया करूंगा" (निर्गमन 25:22)। वर्ष में एक दिन, प्रायश्चित के दिन, महायाजक अपने शानदार अनुष्ठान के वस्त्र उतार, छालटी से बने कोरे सफ़ेद वस्त्र पहनता था। अपने बाएं टखने में एक रस्सी और अपने परिधान के छोर पर छोटी सी घंटी बांध, धूप की वेदी से धधकते हुए कोयलों को एक तवे पर लेकर हवा को एक धूमिल बादल और धूप की सुगंध के साथ भरते हुए वह अति-पवित्र स्थान में प्रवेश करता था। अपनी उंगलियों का उपयोग करते हुए, वह प्रायश्चित्त के ढकने और वाचा के सन्दूक के आगे बैल का खून छिड़कता था। घंटी याजकों को यह बताती कि महायाजक अभी भी जीवित था, और रस्सी यदि बलि का लहू स्वीकार नहीं किया गया और वह मारा गया होता तो उसे बाहर निकाले जाने के लिए थी।
यदि महायाजक बाहर निकलता, तो बलि का प्रायश्चित्त का लहू स्वीकार्य था। यहोवा ने कहा था कि वह मनुष्य के साथ वहाँ मिलेगा; यह प्रायश्चित्त के ढकने पर छिड़के गए रक्त की स्वीकृति थी जिसे परमेश्वर ने दया के रूप में दिया था। परमेश्वर के लोग मंदिर के प्रांगण में महायाजक के बाहर निकल कर दो शब्द कहने की प्रतीक्षा करते, "क्षमा हुआ।" जब लोग इस शब्द को सुनते थे, तो वहाँ राहत और आनन्द होता था, और उनके पापों को एक और वर्ष के लिए माफ कर दिया जाता।
यह हर वर्ष पाप से क्षमा के लिए लहू बहाने की याद दिलाने का अनुस्मारक इजराएलियों की आराधना का एक अनिवार्य हिस्सा था। परमेश्वर उन्हें इस प्रथा के द्वारा क्या सिखाने और दिखाने की कोशिश कर रहा था?
मत्ती लिखता है कि मसीह की मृत्यु पर, मंदिर में कुछ चौंकाने वाला हुआ। मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फट गया जिससे यह संकेत मिलता है कि यह परमेश्वर था जिसने पर्दे को फाड़ा था, न कि कोई मनुष्य। पिता दिखा रहा था कि मसीह के बलिदान के समय से, परमेश्वर के निकट आने के एक नए तरीके का उद्घाटन हुआ था (औपचारिक रूप से प्रस्तावित)। अब, न केवल एक ही व्यक्ति, लेकिन क्रूस के सम्पन्न कार्य के द्वारा सभी पुरुष और स्त्रीयाँ परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश कर पाएंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि प्रेरितों के कार्य की पुस्तक दर्ज करती है कि "याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के अधीन हो गया" (प्रेरितों के कार्य 6:7)। जब याजकों ने सुना कि यीशु की मृत्यु ठीक उसी समय पर हुई जब पर्दा फटा, तो उनमें से कई लोग चौंक गए और इसके महत्व का एहसास करते हुए बड़ी संख्या में विश्वास में आए। परमेश्वर भविष्यवक्ता द्वारा दी गई एक नई वाचा की भविष्यवाणी को पूरा कर रहा था (यर्मयाह 31:31-34)।
यीशु का दफनाया जाना
जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, यहोवा ने यीशु के सम्मानजनक रूप से दफनाए जाने के लिए एक अमीर आदमी को प्रेरित किया।
38इन बातों के बाद अरमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पीलातुस से विनती की, कि मैं यीशु की लोथ को ले जाऊं, और पीलातुस ने उस की बिनती सुनी, और वह आकर उस की लोथ ले गया। 39निकुदेमुस भी जो पहले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया। 40तब उन्होंने यीशु की लोथ को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा। 41उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिस में कभी कोई न रखा गया था। 42सो यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी। (यहुन्ना 19:38-42)
यहूदी शासक व्यवस्थाविवरण 21:23 में दी व्यवस्था को बनाए रखना चाहते थे, अर्थात, रात के दौरान एक शव को लटके नहीं छोड़ा जाना चाहिए, इसलिए वे पिलातुस के पास गए और मांग की कि वे शाम होने से पहले तीनों की मृत्यु निश्चित करें, और फसह भी शुरू हो गया (यूहन्ना 19:31)। अगवे छोटे नियमों का पालन करने के लिए उत्सुक थे, जबकि उन्होंने मानवता का सबसे बड़ा अपराध किया था; परमेश्वर के पुत्र की अस्वीकृति और हत्या। मसीह की अस्वीकृति से बड़ा कोई पाप नहीं हो सकता।
दो गुप्त विश्वासी, अरमतियाह के यूसुफ और निकुदेमुस, महासभा के सदस्य, गुप्तता से निकल यीशु को उसकी मृत्यु में सम्मानित करने के लिए आगे आए, हालांकि उन्होंने उसकी सेवकाई के दौरान उसमें अपने विश्वास के बारे में खुल कर सामने आने का साहस नहीं जुटाया था। उन दोनों ने शव के लिए पिलातुस से विनती की और यहूदी दफनाने के रीति-रिवाजों के अनुसार, महंगे मुर या गंधरस और एलवा खरीद लगभग पैंतीस किलो दफनाने के मसालों में शव को लपेटना शुरू किया।
गन्धरस एक सुगन्धित चिपचिपा राल का गोंद था जिसका उपयोग मिस्र के लोग शवरक्षालेप में करते थे। लेकिन यहूदी एलवा के साथ मिलाकर, जो सुगंधित चंदन है, इसका उपयोग पाउडर के रूप में करते थे। यह दोनों मिलकर कठोर हो जाते और शव के चारों ओर एक कोकून का निर्माण करे लेते।
आपको क्या लगता है, कि यीशु की मृत्यु के बाद दोनों अपने विश्वास के बारे में काफी खुले क्यों थे?
शायद, मसीह के लिए उनके प्रेम की मांग थी कि वे उसके लिए खड़े हों जिसपर वो विश्वास करते थे। मुझे यकीन है कि उन्होंने सब्त से पहले, जो उस समय से केवल तीन घंटों में शुरू हो रहा था, मसीह के दफनाये जाने के लिए अगवों द्वारा नियत शहर के ढेर के स्थान के बजाय सम्मानपूर्वक रूप से दफनाए जाने की आवश्यकता को देखा। यहुन्ना एकमात्र शिष्य है जो हमें निकुदेमुस के यीशु को दफनाने में अरमतियाह के यूसुफ की सहायता करने के बारे में बताता है। इस पल तक वे दोनों गुप्त विश्वासी थे, और शायद उन्होंने अपने द्वारा यीशु की उपेक्षा या उसके जीवित रहते उसका समर्थन करने के लिए साहस की कमी के कारण उसकी मृत्यु में भरपाई करना ज़रूरी जाना।
उपयोग किए गए मसालों की मात्रा को असाधारण माना जाता, जो एक राजा के दफनाने के लिए पर्याप्त मसाले थे, जो इस बात का भी प्रतीक है कि यीशु राजाओं का राजा है। निकुदेमुस लगभग 100 लिटराई या लगभग 35 किलो गन्धरस और एलवा से बना सुगंधित लेप लेकर आया। यह अत्यधिक महंगा होगा। कुल मिलाकर, हम जानते हैं कि परमेश्वर, पिता, ने अपने पुत्र की मृत्यु और उसके दफनाए जाने के बारे में सभी बारीकियों पर नज़र रखी। यहाँ तक कि यीशु के दफनाए जाने में भी भविष्यवाणी पूरी हुई, क्योंकि अगवों ने उसे चोरों के साथ एक सामान्य कब्र देने की योजना बनाई या दी, लेकिन परमेश्वर ने उसके लिए एक अमीर आदमी की कब्र की योजना बनाई थी;
उसकी कब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उसने किसी प्रकार का अपद्रव न किया था और उसके मुंह से कभी छल की बात नहीं निकली थी (यशायाह 53:9)
दोनों पुरुषों के साथ कई महिलाएं थीं जिन्होंने यीशु और शिष्यों के साथ गलील से यहाँ तक की यात्रा की थी (लूका 23:55)। उन्होंने देखा कि कब्र कहाँ थी ताकि वे सब्त के बाद और अधिक मसाले और इत्र के साथ लौट सकें। अपनी पुस्तक, द रिऐलिटी ऑफ़ द रेज़्ररेकशन में, मेरिल टैनी ने हमें दफनाए जाने के लिए प्रथागत प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।
शरीर को आमतौर पर धोया जाता था और सीधा किया जाता था और फिर बगलों से लेकर एड़ियों तक लगभग एक फुट चौड़ी पट्टी से कस कर बांधा जाता था। सुगंधित मसाले, अक्सर एक चिपचिप लेप के समान परतों या तहों के बीच लगाए जाते थे। वह कपड़े को लपेटने से आंशिक रूप से सीमेंट के एक ठोस आवरण के रूप में कार्य करते थे। जब शरीर को इस प्रकार लपेट लिया जाता था, तो सिर के चारों ओर कपड़े का एक चौकोर टुकड़ा लपेट दिया जाता था और निचले जबड़े को शिथिल रखने के लिए ठोड़ी के नीचे बांध दिया जाता था।
मत्ती लिखता है कि यीशु को चट्टान से काटकर बनाई एक नई कब्र में रखा गया था। अरमतियाह का यूसुफ गुलगुता के करीब इस कब्र का मालिक था, और मत्ती उसे अमीर होने के रूप में दर्ज करता है (मत्ती 27:57)। अमीर लोगों की कब्रें, जैसे कि यह थी, इतनी बड़ी बनाई जाती थीं कि उसमें खड़ा हुआ जा सके। मत्ती यह भी जोड़ता है कि कब्र के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का दिया गया था। यहूदी महायाजक और बुजुर्ग फिर पीलतुस के पास कब्र की पहरेदारी करने के लिए चार रोमी सैनिकों कि गुहार लेकर गए। उन्हें डर था कि मसीह के कुछ शिष्य शरीर को चुरा लेंगे और दावा करेंगे कि मसीह मृतकों में से जी उठा है। किसी भी धोखे को रोकने के लिए, पत्थर के दरवाजे पर मुहर लगाई गई थी (मत्ती 27: 60-66)। एक टन से अधिक वजन वाले पत्थरों को छेनी के द्वारा एक सिक्के के आकार में लाया गया और साथ ही प्रवेश के स्थान पर लुढ़का कर बंद होने वाले पत्थर के दरवाजे को भी काटा गया।
यहूदी अगवे कब्र के चारों ओर रोमी पहरेदार रखे जाने के लिए पीलतुस के पास क्यों गए? उन्होंने इस पर अपने लोगों के द्वारा पहरेदारी क्यों नहीं की?
यहूदी अगवों को पता था कि यहूदी लोगों (पहरेदारों) को पाना मुश्किल होगा क्योंकि वे सभी अपने परिवार के साथ फसह का भोजन खाने के लिए तैयारी कर रहे थे; इसके अलावा, रोमी सैनिकों का अधिकार अधिक वजनी होगा, क्योंकि वे उच्च प्रशिक्षित थे। सैनिकों को पता था कि अगर उन्होंने किसी कैदी को जाने दिया तो यह उनके जीवन का प्रश्न था। प्रेरितों की पुस्तक में, हम पढ़ते हैं कि प्रेरित पतरस को जेल में डाला गया था और चार सैनिकों वाले चार दस्ते उसकी रखवाली कर रहे थे। जब एक स्वर्गदूत उसे बाहर लेकर आया, तो हेरोदेस ने अपने कैदी को खोने के लिए सभी सोलह रोमी पहरेदारों को मार डाला (प्रेरितों के कार्य 12:4-19)।
आइए अब यहुन्ना की पुस्तक में अध्याय 20 पर आगे बढ़ते हैं;
1सप्ताह के पहले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा।2तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिससे यीशु प्रेम रखता था आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहाँ रख दिया है।” 3तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले। 4और दोनों साथ साथ दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहले पहुंचा। 5और झुककर कपड़े पड़े देखे, तौभी वह भीतर न गया। 6तब शमौन पतरस उसके पीछे-पीछे पहुंचा और कब्र के भीतर गया और कपड़े पड़े देखे। 7और वह अंगोछा जो उसके सिर से बन्धा हुआ था, कपड़ों के साथ पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा। 8तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुंचा था, भीतर गया और देखकर विश्वास किया। 9वे तो अब तक पवित्र शास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा। (यहुन्ना 20:1-9)
आपको क्या लगता है कि यहुन्ना ने क्या देखा कि उसे विश्वास हुआ कि यीशु जीवित है?
जब शिष्यों ने पहली बार कब्र के प्रवेश द्वार से पत्थर के हटे होने के बारे में सुना, तो उन्होंने यही माना कि यीशु का शव चोरी हो गया है। मरियम मगदलीनी ने पतरस और यहुन्ना को बताया; "वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहाँ रख दिया है!" (यहुन्ना 20:2)। जब यहुन्ना ने कब्र में प्रवेश किया, तो उसने विश्वास किया, लेकिन उसने क्या विश्वास किया? जब उसने कब्र के कपड़े देखे तो उसने माना कि यीशु जी उठा है। वह पहला था "जिसके पल्ले बात पड़ी”। आइए इस बारे में सोचें कि जब यहुन्ना ने कब्र में लपेटने के कपड़ों को देखा तो उसने क्या देखा। हम जानते हैं कि शव को छालटी के कपड़े में लपेटा गया था जिसमें मिस्र की लपेटने की शैली के समान तहों के बीच मसालों का लेप था। सिर लपेटना बाकी सब से अलग था। जिस तरह से मैं इसकी कल्पना करता हूँ, लपेटन शायद गन्धरस, एलवा और मसालों से कठोर था। शरीर लपेटन के बीच से निकल गया था, कुछ ऐसा जो लपेटन और मसालों के कोकून के समान कहा जा सकता है। मुझे विश्वास है कि यह अखंड लपेटन ही वह हैं जिसे यहुन्ना ने देखा और उनसे उसे यह विश्वास मिला कि यीशु जीवित है।
यह विचार करना दिलचस्प है कि, जब मरियम मगदलीनी अंत में कब्र में वापस गई और उसमें प्रवेश किया, तो उसने यीशु के स्थान पर दो स्वर्गदूतों को देखा;
11परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते रोते कब्र की ओर झुककर, 12दो स्वर्गदूतों को उज्ज़वल कपड़े पहने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहां यीशु की लोथ पड़ी थी। (यहुन्ना 20:11-12)
यह अति-पवित्र स्थान का क्या ही प्रतीक है, जहाँ प्रायश्चित्त के ढकने के दोनों ओर दो स्वर्गदूत खड़े थे! जिस स्थान पर मसीह का शव रखा गया था, अब दफनाने के लपेटन के सिर और पैरों में दो स्वर्गदूत उपस्थित थे। उसकी कब्र अब स्वयं परमेश्वर के प्रायश्चित्त के ढकने का प्रतीक था! यह भी कितना प्रतीकात्मक है कि उसे सफेद छालटी कि पट्टियों में लपेटा गया था, जो उच्च याजक होने और पवित्रता की बात करते हैं, जो पिता के सामने हमारा पक्ष रखता है और हमारे पाप के प्रायश्चित के लिए स्वयं अपने लहू की पेशकश करता है!
यदि यीशु प्रभु है और फिर से जी उठा है, तो उसकी ओर हमारी प्रतिक्रिया क्या है? इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? यदि हम मानते हैं कि वह वास्तव में जी उठा है, तो उसके दावों पर व्यक्तिगत प्रतिक्रिया होनी आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को यह तय करना होगा कि क्या वह मेरा राजा है?
इतने सारे विवरण क्यों?
कुछ संदेह करने वालों का कहना है कि यीशु क्रूस पर नहीं मरा, यानी, वह बस बेहोश हो गया था और बाद में जाग गया था। आइए इसके बारे में सोचें। मसीह के बगल में एक भाला घोंपा गया था, जहाँ से लहू और पानी, अर्थात, मृत्यु का प्रमाण, बह रहा था। उसका शरीर लगभग पैंतीस किलो मसालों में लिपटा हुआ, बिना भोजन या पानी के तीन दिनों तक एक ठंडी कब्र में मुहरबंद किया गया था, और कब्र के बाहर रोमी सैनिकों का एक समूह था। यह विचार कि वह मृत नहीं था और बस उठकर चल दिया, तार्किक रूप से ही गलत लगता है। यीशु यह सब कैसे सह सकता था?
समान रूप से हास्यास्पद यह विचार है कि उसके शत्रुओं ने शव को चुरा लिया था। उसके शत्रु मसीह के चेलों को यह घोषणा करने का मौका नहीं देना चाहते थे कि यीशु जी उठा है और इसलिए, आलौकिक है। मत्ती लिखता है कि यहूदी अगवों ने यह कहकर पुनरुत्थान का खंडन करने का प्रयास किया कि शिष्यों ने शव को चुरा लिया था और रोमी सैनिकों को अपने साथ करने के लिए पैसा दिया था (मत्ती 28:11-15)। खाली कब्र को नकारने के लिए अगवों की ओर से कभी कोई भी बात नहीं आई। उनके "चुराए गए शव" के सिद्धांत ने स्वीकार किया कि कब्र खाली थी।
उसके शिष्यों के पास भी शव को चुराने का कोई कारण नहीं होगा, क्योंकि उसकी मृत्यु के बाद, वे दुःख से भर गए थे। मसीह की मृत्यु के बाद, वे सताव के डर से छिप गए थे। हम यह भी जानते हैं कि यीशु में विश्वास के कारण उनमें से अधिकांश ने पीड़ा सही और उनकी मृत्यु इसी विश्वास के कारण हुई, वो उनके इस भरोसे पर आधारित है कि यीशु, वास्तव में, वो है जो होने का दावा उसने किया था; अर्थात, परमेश्वर का पुत्र। अगर उन्होंने वास्तव में शव चुराया होता, तो वे इस झूठ को जानते हुए इसके लिए अपनी जान क्यों देंगे? फिर, निश्चित रूप से, अगले चालीस दिनों में, जी उठे प्रभु यीशु के कई दर्शन हुए, उदाहरण, एक समय में पाँच सौ लोग, और उनमें से कुछ तब भी जीवित थे जब पौलुस ने इसके बारे में लिखा था (1 कुरिन्थियों 15: 6)।
अन्य आलोचकों ने कहा है कि महिलाएँ गलत कब्र पर गई थीं, लेकिन कब्र की पहरेदारी करने वाले सैनिक जमीन पर गिरे हुए थे (मत्ती 28:4)। रोमी सैनिकों को गलतियाँ करने के लिए नहीं जाना जाता था। सुसमाचार के लेखक इस तरह की बातों पर बहुत विस्तार से इसलिए जाते हैं क्योंकि इस बिंदु पर सुसमाचार की कहानी का मर्म टिका हुआ है। यदि पुनरुत्थान नहीं हुआ है, तो मृत्यु के बाद कोई आशा और कोई जीवन नहीं है। तथ्य यह है कि उसके कई अनुयायी शहीद हो गए क्योंकि उन्हें यकीन था कि मसीह जीवित है।
यहाँ तक कि यीशु के शिष्य भी भयभीत और डरे हुए थे। यदि वो, जिसने रोगों को चंगा किया था और मृतकों को जी उठाया था, वह स्वयं को नहीं बचा सकता, तो वह उन्हें कैसे बचा सकता था? एक बार जब वे समझ गए कि वह जी उठा है, तो इतिहास और परंपरा हमें बताती है कि कई शिष्यों ने, आत्मा की परिपूर्णता में अपनी यशस्वी मृत्यु तक बहादुरी के साथ उसकी गवाही दी। जॉन फॉक्स ने एक पुस्तक लिखी जिसे आज हम फॉक्स बुक ऑफ मार्टियर्स के नाम से जानते हैं। यह 1563 में "अक्ट्स एंड मोनुमेंट्स ऑफ दीज़ लैटर एंड पेरिलस डेज़" शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया था। इसमें वे इतिहास और परंपरा द्वारा बताए कई शिष्यों की मृत्यु के बारे में तथ्य दर्ज करते हैं। यहाँ कुछ विवरण हैं जो वह अपनी पुस्तक में प्रारंभिक कलीसिया के शिष्यों के अंतिम दिनों के विषय में प्रस्तुत करते हैं;
याकूब, यहुन्ना का भाई, शहीद होने वाले बारह प्रेरितों में से पहला था और कहा जाता है कि यहूदिया के राजा हेरोद अग्रिप्पा 1 के आदेश पर उसका सर कलम किया गया था। प्रेरित फिलिप्पुस को कोड़े लगाए गए, जेल में डाला गया और फिर सूली पर चढ़ा दिया गया। यह कहा जाता है कि मरकुस को अलेक्जेंड्रिया की गलियों में तब तक खींचा गया था जब तक उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े नहीं हो गए क्योंकि उसने उनके देवता सेरापिस के लिए एक समारोह के विरोध में कुछ बोला था। पतरस को उल्टा सूली पर चढ़ाया गया क्योंकि उसने यह महसूस करते हुए कि वह प्रभु के समान मृत्यु के योग्य नहीं है, अपने प्रभु की तरह से मारे जाने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि याकूब (यीशु का भाई) का पथराव कर उसे मार दिया गया था, लेकिन कुछ विवरणों में कहा गया है कि उसे पहले मंदिर की मीनार से फेंक दिया गया था, फिर उसके सर को कुचला गया था। अन्द्रियास (एंड्रयू), पतरस के भाई ने कई एशियाई देशों को उपदेश दिया था और उसे एक X आकार के क्रूस पर चढ़ाया गया था, जिसे सेंट एंड्रयूज क्रॉस के रूप में जाना गया। मत्ती के बाद के जीवन के बारे में बहुत कम जाना जाता है, लेकिन कुछ लेखों में कहा गया है कि उसे इथियोपिया में ज़मीन पर लेटाकर उसका सर कलाम कर दिया गया था। मत्तिय्याह पर यरूशलेम में पहले पथराव हुआ और फिर उसका सर कलम कर दिया गया। याकूब के भाई यहूदा को मेसोपोटामिया के एडेसा में क्रूस पर चढ़ाया गया था। परंपरा में कहा गया है कि नतनएल प्रचार करने के लिए पूर्वी भारत गया था और उसे वहाँ सूली पर चढ़ा दिया गया था। थोमा ने फारस, पार्थिया और भारत में सुसमाचार का प्रचार किया। भारत के कैलामिना में, उन्हें यातनाएं दी गईं, भाले गोदे गए और तंदूर में फेंक दिया गया। हमें नहीं पता कि लूका के साथ क्या हुआ। कुछ लोग कहते हैं कि उसे एक जैतून के पेड़ से लटका दिया गया था, और अन्य खातों में कहा गया है कि वह बुढ़ापे में मर गया। प्रेरित युहन्ना को इफिसुस में गिरफ्तार कर लिया गया और रोम भेज दिया गया जहाँ उसे उबलते हुए तेल के एक पात्र में दाल दिया गया जिससे उसकी मृत्यु नहीं हुई। फिर उसे पतमुस नामक टापू में निर्वासित कर दिया गया जहाँ उसने प्रकाशितवाक्य की पुस्तक लिखी। पतमुस से रिहा होने के बाद, वह इफिसुस लौट आया जहाँ 98 मसीह पश्चात उसका निधन हो गया। सभी उत्पीड़न और हिंसक मौतों के बावजूद भी, प्रभु ने प्रतिदिन कलिसिया में बढ़ौत्री की।
उनकी मौतों की गवाही पर विचार करने के बाद, क्या आपको लगता है कि यह संभव है कि शिष्यों ने झूठ के लिए अपनी जान दी हो? मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने के बाद उन्होंने जो कुछ भी अनुभव किया, उससे उनकी आत्मा में ऐसी आग लगी कि वे उत्पीड़न और कठिनाइयों में भी लगातार सुसमाचार का प्रसार करने और यीशु के कृत्यों के बारे में बताने में अग्रसर होते चले गए।
यह सब सुनने या पढ़ने के बाद, मैं आपसे पूछता हूँ, “आप इस यीशु के साथ क्या करेंगे जो परमेश्वर का पुत्र और राजाओं के राजा होने का दावा करता है? उसके प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया है? ”
प्रार्थना: प्रार्थना के बारे में, मैं आप में से प्रत्येक को पिता के सामने अपनी प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करूँगा। आपके लिए उसके प्रेम के लिए धन्यवाद दें, और अगर आपने कभी अपना जीवन उसे पूरी तरह से नहीं दिया है, तो शायद आज ऐसा करने का दिन है।
कीथ थॉमस
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