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8. The Parable of the Two Debtors
8. दो देनदारों का दृष्टान्त
शुरुआती प्रश्न: क्या आप कभी भी परमेश्वर की उपस्थिति में भावनात्मक हुए हैं? बाँटिए कि इन अनुभवों ने आपको कैसा महसूस कराया।
वैकल्पिक प्रश्न: क्या आप कभी परमेश्वर के प्रति किसी और के प्रेम को देख प्रेरित हुए हैं?
36फिर किसी फरीसी ने उससे विनती की, कि मेरे साथ भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। 37और देखो, उस नगर की एक पापिन स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। 38और उसके पाँवों के पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पाँवों को आंसुओं से भिगाने और अपने सिर के बालों से पोंछने लगी और उसके पांव बारबार चूमकर उन पर इत्र मला। 39यह देखकर, वह फरीसी जिसने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान लेता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिन है। 40यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा कि “हे शमौन मुझे तुझसे कुछ कहना है।” वह बोला, “हे गुरू कह”। 41“किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पांच सौ, और दूसरा पचास दीनार का देनदार था। 42जबकि उनके पास पटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया: सो उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा”। 43शमौन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में वह, जिसका उसने अधिक छोड़ दिया।” उसने उससे कहा, “तूने ठीक विचार किया है।” 44और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा; “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी न दिया, पर इस ने मेरे पाँव आंसुओं से भिगाए, और अपने बालों से पोंछा! 45तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पाँवों का चूमना न छोड़ा। 46तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला; पर इसने मेरे पाँवों पर इत्र मला है। 47इसलिये मैं तुझ से कहता हूँ; कि इसके पाप जो बहुत थे, क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया; पर जिस का थोड़ा क्षमा हुआ है, वह थोड़ा प्रेम करता है।” 48और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।” 49तब जो लोग उसके साथ भोजन करने बैठे थे, वे अपने अपने मन में सोचने लगे, “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?” 50पर उस ने स्त्री से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चली जा।” (लूका 7:36-50)
1977 के जून महीने के अंत में, मैं पहली बार अमरीका का दौरा कर रहा था। यद्यपि मैं इसे उस समय पर नहीं जानता था, लेकिन जब मैं अब पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मैं जानता हूँ कि मैं अनैतिकता और पाप के अपने युवा जीवन के लिए दोषी ठहरा था। मैं कई वर्षों तक सच्चाई के पीछे उत्सुक खोजी रहा था क्योंकि मैंने कई देशों में यात्रा कर विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं में खोज-बीन की थी। वहाँ वर्जीनिया, अमरीका में, परमेश्वर ने एक शिविर में जाने के लिए मेरी अगवाई की, जहाँ मैंने पहली बार यीशु मसीह के सुसमाचार को सुना। मैंने अपना जीवन उसके हाथों में त्याग कर उससे कहा कि वह मेरे जीवन में आकर मेरे पाप को क्षमा करे, तब परमेश्वर मेरे बहुत निकट आ गया।
मुझे पवित्र आत्मा द्वारा मेरे कंधे से पाप का बोझ उठाए जाने का एक बहुत शक्तिशाली अनुभव हुआ। क्योंकि मैं इसका इतना आदि हो गया था, मैं वास्तव में पाप के इस बोझ के बारे में जागरूक नहीं था जिसे मैं ढोए जा रहा था। लेकिन जब प्रभु यीशु ने मेरे उपर से इस पाप को उठा लिया, मुझे यकीनन इसका बोध था! शब्दों को समझना मुश्किल है, लेकिन मेरा हृदय मोम की तरह था। मैं अक्सर यीशु के बारे में विचार कर और उसने मेरे पापों को क्षमा करने के लिए क्या किया था सोच कर बहुत रोता। मेरे बहुत सारे आँसू इसलिए थे क्योंकि मैं ऐसे अनुग्रह के अयोग्य था (और हूँ) जो मुझे दिया गया है। पहली मसीही किताब जिसे मैंने पढ़ा था वो हन्ना हनार्ड की किताब, हाईन्ड्स फीट ऑन हाई प्लेसिज़ थी। मेरे नम्र किए गए हृदय से बहते आँसुओं के कारण मुझे इस पुस्तक को कई बार नीचे रखना पड़ा। यीशु से आमना-सामना आपके हृदय को एक भले रूप में कई दिनों तक गड़बड़ा सकता है! आज के हमारे दृष्टांत में, हम दो ऐसे लोगों से मिलेंगे जिनकी प्रभु के प्रति उनके हृदय की प्रतिक्रिया काफी अलग थीं। एक तो अनियंत्रित होकर रोने लगी जबकि दूसरा इतना कठोर हो गया कि यीशु को उसे स्वयं को उस रीती से देखने के लिए जैसे परमेश्वर उसे देखता है, उसके साथ एक दृष्टान्त साझा करना पड़ा।
दृष्टांत के लिए पृष्ठभूमि बनाना
इस खंड को अन्य तीनों सुसमाचारों में दिए सरूप विवरणों से भ्रमित नहीं करना चाहिए। यहाँ कुछ ऐसी चीजें हैं जो समान हैं। दोनों विवरणों में, एक महिला महंगे इत्र से प्रभु यीशु का अभिषेक करती है, और दोनों बताते हैं कि यह घटना शमौन नाम के एक व्यक्ति के घर में होती है, जो उस समय एक सामान्य नाम था। अंतर यह है कि एक घटना शमौन जो फरीसी है उसके घर में होती है, जबकि दूसरा यह कहता है कि यह शमौन कोढ़ी (मैथ्यू 26:6) का घर है। लूका के सुसमाचार में दिया विवरण गलील में है (लूका 7:11), जबकि दूसरा यरूशलेम में जैतून के पर्वत की दूसरी तरफ बैतनिय्याह में है। यूहन्ना के विवरण में, स्त्री बैतनिय्याह की महिला, लाजर की बहन मरियम है, एक ऐसा परिवार जो यीशु के साथ घनिष्ठता से परिचित है (यूहन्ना 12:2-3)। हम लूका में जिस खंड को पढ़ रहे हैं, उस स्त्री का नाम नहीं दिया गया है, और उसे "एक पापिन स्त्री" कहा गया है जो पापी जीवन जी रही थी (लूका 7:37)। लूका का विवरण यीशु की सेवकाई के शुरुआती समय का है; जबकि, मरियम का बाद में है, और यह अभिषेक उसके दफनाए जाने के लिए है।
समीक्षक विलियम बार्कले हमें बताते हैं कि उस समय के संभ्रांत लोगों के घर एक खुले आंगन के चारों ओर एक खोखले वर्ग के रूप में बनाए जाते थे। अक्सर वहाँ एक बगीचा और एक फव्वारा होता। गर्मी के मौसम में, बिना पीठ के सहारे वाले सोफे ट्रिकलिनियम की मेज के साथ आंगन में स्थापित कर दिए जाते थे। ट्रिकलिनियम की मेज़ जमीन के लगभग अठारह इंच उपर और यू-आकार की होती थी। सेवकों के मेज पर भोजन और पेय लाने के लिए मेज़ तक आसान पहुँच होती थी। मेहमान टेबल के चारों ओर बैठते नहीं थे, लेकिन वे अपनी बाईं कोहनी पर सहारा लेकर लेटे हुए अपने दाहिने हाथ से मेज पर से भोजन खाते। इसका मतलब यह था कि झुकते हुए टांगें और पैर एक दूसरे के पीछे उनकी पीठ के आसपास होते थे। यही कारण था कि पैरों के धोने और दरवाज़े पर जूते छोड़ने की आवश्यकता होती थी।
यह संभव है कि शमौन फरीसी वह व्यक्ति था जिसने सब्त के दिन सुबह की सेवा/ सभा के बाद मेहमान वक्ता का अतिथि-सत्कार किया हो। यह कलीसिया के समय के बाद की बैठक थी। यह प्रथागत था कि किसी को भी आंगन के बाहर आकर बातचीत सुनने और निर्देश पाने की अनुमति होती थी। शमौन एक फरीसी था, एक अलग किया हुआ जिसे चसीडीम भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है परमेश्वर के प्रति वफादार। बाबुल में यहूदियों के निर्वासन के समय में, यहूदी लोगों ने व्यवस्था के चारों ओर सख्ती से पालन किये जाने वाले इतने सारे नियमों की एक बाड़ का निर्माण कर दिया था कि अगर कोई व्यक्ति उनका नियम तोड़ भी दे, तो भी वह परमेश्वर की व्यवस्था को नहीं तोड़ेंगे। फरीसी सभी के लिए अपने मौखिक नियमों के पालन के बारे में अति सतर्क थे, जिसके कारण वह यीशु के साथ विरोध में आ गए थे। यीशु एक व्यवस्था का पालन करने वाला था, परन्तु फरीसियों के मानव-निर्मित नियम का नहीं।
तो, शमौन ने यीशु को रात के भोजन के लिए क्यों आमंत्रित किया? जैसा कि मैंने कहा, यह आराधनालय में बैठक के बाद अतिथि वक्ता के अतिथि-सत्कार करने के लिए उनकी सामान्य जिम्मेदारी हो सकती थी। यह भी हो सकता है कि वह फरीसी मसीह के व्यक्तित्व द्वारा कुतूहल से भर गया था और उसे और सुनना चाहता था। बेशक, यह भी हो सकता है कि शमौन को यीशु को उन शब्दों में जो उसने कहे थे पकड़ने का निर्देश दिया गया हो। मैं चकित हूँ कि यीशु शमौन के सत्कार की पेशकश को स्वीकर करता है; फरीसी यीशु के द्वारा सिखाए जा रहे प्रेम के सुसमाचार की स्वतंत्र करने वाली ताज़गी के इतन विरोध में थे। प्रभु यीशु को इस बात की परवाह नहीं है कि निमंत्रण किससे आता है; वो अपने वचन के प्रति भला है। यदि आप उसे अपने जीवन में आमंत्रित करते हैं, तो वह आयेगा और आपके साथ खाएगा (प्रकाशितवाक्य 3:20)। एक साथ भोजन घनिष्ठता और संगति का प्रतीक था। मध्य पूर्व में रहने वालों के लिए अतिथि-सत्कार बड़ी बात थी और आज भी है। हम मान सकते हैं कि शमौन संभ्रांत था, क्योंकि वचन हमें बताता हैं कि फरीसियों को पैसे से प्रेम था (लूका 16:14)।
उसका घर शायद बड़ा था। इसे न केवल मेज़ के चारों ओर झुके दल की मेजबानी करने के लिए पर्याप्त होने की आवश्यकता होगी, बल्कि मेजबानों के आसपास भीड़ के खड़े होने की जगह की आवश्यकता भी होगी। आम तौर पर, एक व्यक्ति के घर में आने वाले मेहमानों के लिए काफी आवभगत होती थी। मेज़ पर आमंत्रित किए गए प्रत्येक अतिथि के पैरों को धोने के लिए सेवक उपस्थित होते। ठोस सड़कें या फुटपाथ नहीं थे, इसलिए सब कुछ बहुत धूल भरा था। क्योंकि उस समय के जूते चमड़े के टुकड़े में पट्टियों के साथ होते थे जो जूते को पैरों पर बाँधने के काम आती थीं, लोगों के पैर बहुत गंदे हो जाते थे। पैर की उंगलियों खुली रहती थीं और बहुत मटमैली हो जाती थीं। जब यीशु ने यहुन्ना 2 में पानी को दाखमधु में बदला था, तब हमें हाथों और पैरों को धोने के लिए पानी से भरे पत्थर के छ: मटकों के बारे में बताया गया है जिसमें हर एक में 75-110 लीटर पानी था। इसके अलावा, एक दूसरे को एक पवित्र चुंबन के साथ शुभकामना देने की प्रथा थी, और क्योंकि मध्य पूर्व में हवा बहुत सुर्ख है, वहाँ सुगंधित जैतून के तेल से माथे को अभिषेक करने की प्रथा भी थी। क्योंकि उसने उस समय के प्रथागत तरीके से यीशु का स्वागत नहीं किया था, शमौन की प्रभु यीशु के प्रति सम्मान की कमी हमें काफी चौंकाती है।
आप क्या सोचते हैं कि फरीसी के घर पापी स्त्री क्यों आई थी? आप उन लोगों के बारे में क्या सोचते हैं जो इस घटना के समय वहाँ उपस्थित थे?
पापिन महिला
जब मेहमान मेज़ के चारों ओर बैठकर बात कर रहे थे, तब एक पापिन महिला पीछे की ओर से यीशु के पास आती है। इस महिला की घुसपैठ पर सभी की आँखें उसपर टिक जाती हैं और सब बातचीत बंद हो जाती है। वह सोफे के पीछे उसके पैरों के पास अपने घुटनों पर गिरने से पहले वहाँ खड़ी होकर अनियंत्रित रोती है। वो संगमरमर के उस पात्र को लेती है जो उस समय की अन्य महिलाएं भी अपनी गर्दन में टंग कर घूमती थीं, और उसे तोड़ते हुए, वो उसके पैरों पर सारा कीमती इत्र उड़ेलना शुरू करती है। यह इत्र शुद्ध जटा से बनाया गया था, जो भारत में मूल रखने वाले जटामासी पौधे के बहुत महंगे निचोड़ से बनता है।
जब वो ऐसा कर रही थी, तब उसके आँसू भी यीशु के पैरों पर टपक रहे थे। मार्टिन लूथर ने जिस तरह से वह अपने हृदय को प्रभु के सम्मुख उड़ेल रही थी, इस स्त्री के आँसुओं को "हृदय का पानी" कहकर बुलाया है। इस सब से बढ़कर, वो कुछ ऐसा करती है जो उस समय की कोई भी आत्मसम्मान रखने वाली महिला न करती। वो अपने बाल को खोलती है और उसके पैरों की धूल-मिट्टी अपने बालों से पोंछना शुरू कर देती है। उस समय की संस्कृति में, एक स्त्री के बाल उसकी गरिमा का प्रतीक होते थे (1 कुरिन्थियों 11:6, 15)। बालों से पैरों का पोंछना दीनता का सबसे चरम कार्य था, क्योंकि केवल सेवक ही पैर धोते थे, लेकिन यहाँ यह स्त्री थी, उसके पैरों को धो रही थी और अपने बालों से उन्हें सुखा रही थी। उसके पैरों पर जमी धूल-मिट्टी इस स्त्री के बालों को उलझा रही थी। लूका ने उसके रोने, पैरों के चुंबन, बालों से पोंछने, और अभिषेक करने का विवरण देने के लिए अपूर्ण काल का उपयोग किया है। इससे पता चलता है कि यह काफी लंबे समय तक चला होगा। कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति जो कुछ उन्होंने देखा था उसके कारण स्तब्ध रह गए थे।
हमें बताया जाता है कि उसे एक पापी के रूप में जान जाता था, लेकिन हमें यह नहीं बताया गया है कि उसका पाप क्या था, लेकिन ज़्यादातर लोगों द्वारा यह माना जाता है कि वह एक वेश्या थी। शायद वो भीड़ में थी और उस दिन अपना सर ढक-कर ताकि सभा के लोग यह न देख लें कि वो कौन है, उसने सुबह यीशु को आराधनालय में बोलते हुए सुना था। उस सुबह उसका हृदय छुआ गया था। यह शायद पहली बार था कि उसे पता चला था कि परमेश्वर उन लोगों से जिन्होंने जीवन में गलतियाँ की हों, पापियों से, आपके और मेरे जैसे लोगों से, कितना प्रेम करता है। वो वेश्या क्यों बनी हमें नहीं पता। शायद, उसके माता-पिता ने उसे वेश्यावृत्ति में धकेल दिया। शायद, वो सिर्फ प्रेम की लालसा कर रही थी, लेकिन उसने गलत जगहों पर इसके लिए खोज की थी। कोई नहीं जानता कि वह इस प्रकार की जीवन शैली में क्यों थी। हम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि या उसकी परिस्थितियों के बारे में कुछ नहीं जाते जिनके कारण वो अपने जीवन में बदनामी के इस स्थान पर आई थी। युवा स्त्रीयों को सही प्रकार की अभिपुष्टि की आवश्यकता होती है, और जब उन्हें यह किसी सुरक्षित स्थान पर नहीं मिलती, तो वे कभी-कभी अन्य स्रोतों की ओर मुड़ जाती हैं। हम किसी अंधकारमय इतिहास के व्यक्ति का न्याय करने में गलत होंगे, क्योंकि अगर परमेश्वर की कृपा न होती, तो हमारा भी एक अंधकारमय अतीत होता।
आपको क्या लगता है कि इस स्त्री की क्या मंशाएं थीं? वो क्या चाहती थी, या फिर वो इस कार्य से क्या हासिल करना चाहती थी?
इस महिला को आमंत्रित नहीं किया गया था, फिर भी वह साथ आ गई और खड़े हुए अन्य श्रोताओं में मिल-जुल गई। मुझे लगता है कि जब वो वहाँ खड़ी हुई थी, उसने गौर किया होगा कि घर में प्रवेश करने पर यीशु के साथ सामान्य शिष्टाचार नहीं किया गया था। यीशु पद 45 में कहता है कि उसने जब से वहाँ प्रवेश किया था, वो वहाँ थी। जब उसने देखा कि यीशु मेज पर बैठा है और उसके साथ सामान्य शिष्टाचार नहीं किया गया है, उसका प्रेम, आभार, और आशा उसके भीतर उमड़ गए। वह सामान्य शिष्टाचार स्वयं ही करने के लिए मजबूर हो गई, बस जो कुछ उसके पास था केवल उसके साथ, उसका इत्र, उसके आँसू और उसके बाल।
उसके मन में किस प्रकार की बातें दौड़ रही होंगी? क्या उसे यीशु के पास आने की वजह से फटकार पड़ने का डर था? मैं कल्पना करता हूँ कि उसकी स्वयं की छवि बहुत बुरी होगी। उसके पेशे में, लोग निरंतर हर तरह की बातें फुसफुसाते होंगे, और फिर उन पत्नियों द्वारा अपमान और चोट जो इस बात के बारे में संदेह करती होंगी कि उनके पति पिछली रात कहाँ थे। मुझे यकीन है कि उसके लिए जो वह बन गई थी उससे घृणा करते हुए स्वयं को आईने में देखना काफी कठिन होता होगा। वो इस बात की कितनी लालसा करती होगी की काश उसके जीवन में सब कुछ अलग होता। वो क्यों इस राह की ओर मुड़ी? मुझे यकीन है कि वो एक अलग जीवन की कामना करती होगी। यह जानना कितना अद्भुत है कि हम में से हर एक नए सिरे से शुरूआत कर सकता है और अपनी गलतियों और पापों को ढांपने के लिए परमेश्वर के अनुग्रह को प्राप्त कर सकते हैं! मैं व्यक्तिगत रूप से सोचता हूँ कि वो यीशु के प्रेम के बारे में जागरूक थी; मुझे लगता है कि उसने यीशु को परमेश्वर की करुणा, जीवन में खोए हुए और टूटेपन की अवस्था में पड़े लोगों के विषय में बात करते सुना होगा। प्रभु यीशु का चेहरा ऐसा था जो दयालु था और उस जैसे पापियों से परमेश्वर के करुणामय होने के विषय में बात करता था। सामाजिक रूप से, वह एक जाती से निकाली हुई जन थी, लेकिन यहाँ प्रभु उसे स्वीकार करता है और उसे रुकने के लिए नहीं कहता है। उसके हृदय में पाप के विषय में दोष भावना और अपने स्वामी के लिए प्रेम का मिश्रण होगा। वो जानती थी कि यीशु में वह क्षमा और दया उपलब्ध है जिसकी उसे जरूरत थी।
जिस क्षण से यीशु ने वहाँ प्रवेश किया, प्रभु जानता था कि वह कौन थी और उसने क्या किया था। वो हम सभी को जानता है; हम उससे यह नहीं छिपा सकते हैं कि हम कौन हैं और हमने क्या किया है। आपके बारे में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे वो जानता नहीं है। अद्भुत बात यह है कि एक पल भी इस बात की चिंता किये बिना कि वो कहाँ से आई है, यीशु को परवाह नहीं थी कि कोई उसे देख रहा होगा। यीशु ने अपने लिए उसे उसकी भक्ति और प्रेम को प्रकट करने दिया। उसने महसूस किया कि यीशु ने उस स्त्री को खुल-कर व्यक्त करने की बहुत आवश्यकता थी। उसे यह परवाह नहीं थी कि कोई उसे देख रहा होगा। कभी-कभी, जब दूसरे हमारी तरफ देख रहे हों तब हम अपनी भावनाओं को लेकर बहुत झिझकने लगते हैं। अपनी भावनाएं प्रभु को प्रदर्शित करें। उसे बताएं कि आपको कैसा महसूस हो रहा है। और वैसे भी, किसे परवाह है की कौन क्या सोचता है!
शमौन और दो देनदारों का दृष्टान्त
शमौन जो फरीसी था जिस पल वह स्त्री साए से निकल यीशु के निकट आने लगी, उसे पहचान गया। अपने हृदय के गुप्त स्थान में, उसने यीशु और पापी स्त्री का न्याय करना शुरू कर दिया। जब आराधना और स्नेह का यह प्रदर्शन जारी रहा, यह देखकर, वह फरीसी जिसने उसे बुलाया था, अपने मन में सोचने लगा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान लेता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है? क्योंकि वह तो पापिन है।” (लूका 7:39) ध्यान दें कि शमौन के विचार मन में ही थे। प्रभु ने उसके विचारों को भाँप कर उसके मन में जो कुछ चल रहा था उसे एक दृष्टान्त साझा करने के द्वारा शिक्षा के क्षण के रूप में उपयोग किया:
40यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा कि “हे शमौन मुझे तुझसे कुछ कहना है।” वह बोला, “हे गुरू कह”। 41“किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पांच सौ, और दूसरा पचास दीनार धारता था। 42जबकि उनके पास पटाने को कुछ न रहा, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया: सो उनमें से कौन उससे अधिक प्रेम रखेगा”। (लूका 7:40-42)
हालांकि वे शमौन और पापी महिला का प्रतिबिंब हैं, इस दृष्टान्त में देनदार आपकी और मेरी छवि भी हैं। हममें से हर एक के पास पाप का कर्ज है जो हमारे ऊपर है। मसीह के समय, एक दीनार एक व्यक्ति के लिए वह वेतन होता था जो वह एक दिन की मज़दूरी के लिए घर लेकर जाया करता था। एक के पास डेढ़ महीने के बराबर का ऋण था, और दूसरे का ऋण डेढ़ साल के वेतन के बराबर था। प्रभु यह बात समझा रहा था कि, बाहरी रूप से, उसका पाप उसके ऊपर एक बड़ा ऋण लेकर आया था, परन्तु उसी समय, वह बता रहा था कि हालांकि शमोन सोचता था कि वह नैतिक रूप से एक बेहतर व्यक्ति है, फिर भी वह अपने कर्ज का भुगतान नहीं कर सकता था। दोनों भुगतान करने में असमर्थ थे। हम सभी इस पवित्र परमेश्वर के सम्मुख कंगले हैं जिसे हमें एक दिन लेखा-जोखा देना है (रोमियों 14:12)। आइये एक ओलंपिक लम्बी कूद का खिलाड़ी होने के सादृश्य का उपयोग करें। हो सकता है कि आप बॉब बीमॉन की ओलंपिक विश्व रिकार्ड की 29 फुट, 2 इंच की लंबी छलांग की उपलब्धि के मुकाबले में आठ फीट तक कूद सकते हों। लेकिन, यदि आप दोनों को 1800 फीट की दूरी पर नियाग्रा फॉल्स के एक छोर से दूसरे छोर तक कूदना पड़े, तो दोनों विफल हो जाएंगे। यह कोई मायने नहीं रखता कि आप 50-दीनारी पापी हैं या 500-दीनारी पापी हैं, कोई भी पवित्र परमेश्वर की मांगों पर खरा नहीं उतर सकता। यीशु ने इसे इस तरह कहा:
क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे। (मत्ती 5:20)
व्यवस्था इसलिए दी गई थी कि पुरुष और स्त्री एक उद्धारकर्ता के लिए अपनी ज़रूरत को देख पाएं और अपने पापों के ऋण के रद्द किये जाने के लिए उसकी ओर मुड़ें। हम सब कुछ हद तक अपने जीवनों और चरित्रों को सुधार सकते हैं, लेकिन हम स्वयं के द्वारा हमारे उपर पाप के इस कर्ज को रद्द नहीं कर सकते। लेखक आर. केंट ह्यूजेस इसे इस तरह कहते हैं:
हमें समझने की आवश्यकता है कि क्षमा प्राप्त करने की शर्त यह है कि हमें इस बात का एहसास हो जाए के हम कंगले और दिवालिया हैं, फिर चाहे भले ही हम सिद्ध नैतिकवादी या सिद्ध पापी हों। समस्या यही है - लोग परमेश्वर को अपने स्वयं के निर्माण की मुद्रा को स्वीकार करने के लिए मनाने की कोशिश करते रहते हैं। कुछ खरेपन की मुद्रा प्रस्तुत करते हैं "प्रभु, मैं बाध्यकारी झूठों साथ काम करता हूँ। एकमात्र ईमानदार व्यक्ति जिसका मुझे पता है केवल मैं ही हूँ। निश्चित रूप से मैं स्वीकार्य हूँ।” अन्य तर्क देंगे कि उनकी घरेलू मुद्रा से तो उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति हासिल कर लेनी चाहिए। “इस पापी दुनिया में, मेरा जीवन एक स्वस्थ ईश्वरीय जीवन है। मैं अपनी पत्नी के प्रति विश्वासयोग्य हूँ। मैं उसे और अपने बच्चों से प्रेम करता हूँ। मैं एक अच्छा पति, पिता और बेटा हूँ। मुझे लगता है कि मुझे इस सब की ही तो आवश्यकता है!” सामाजिक मुद्रा भी एक पसंदीदा मुद्रा है। “मैं वास्तव में रंगहीन अँधा हूँ जो पैसे का रंग नहीं देखता। मेरा पैसा (बहुत सारा) ज़रुरतमंदों को जाता है।” मैं आपात गर्भावस्था केंद्र में स्वयं-सेवा देता हूँ। मैं वास्तव में परवाह करता हूँ। संसार को मेरे जैसे और अधिक लोगों की जरूरत है, और स्वर्ग को भी।" कलीसिया मुद्रा शायद सबसे बड़ा भ्रम है। “में कलीसिया में रहता हूँ। मेरी भलाई निश्चित रूप से स्वीकार्य होगी।"
हमारे हृदयों के लिए अक्सर इस बात पर विचार करना भला होगा कि हमारे रास्ते में रूकावट बन, अगर यीशु आकर सुसमाचार के द्वारा सदा के लिए हमारा जीवन न बदल देता तो आज हम कहाँ होते। इस प्रकार के विचार हमें मसीह के लिए एक नई प्रशंसा और आभार से भर देंगे। यदि हमारे भीतर मसीह के लिए प्रति प्रेम की कमी है, तो यह हमारे पाप के ऋण की कीमत के भुगतान के विषय में जागरूकता और चेतना की कमी के कारण है।
शमौन को उस महिला के लिए ज़रा भी परवाह नहीं थी। वह उसपर उसके जीवन के लिए दया या चिंता से ध्यान नहीं देता, बल्कि इस घृणा के साथ कि वो इस समारोह में बिन बुलाए आकर गड़बड़ी कर देगी। बेशक, शमौन यह नहीं जानता था कि यीशु ने उसके विचारों को भाँप लिया है, इसलिए जब यीशु कहानी साझा करता है, तो शमौन इसे अपने हृदय में किए गए न्याय के साथ कतई नहीं जोड़ पाता। यहाँ पर फिर से, हम यीशु को एक कहानी बताते पाते हैं, जहाँ वो कहानी से एक प्रतिक्रिया या निष्कर्ष निकालना चाहता है, और फिर एक निजी उदाहरण के रूप में श्रोताओं पर छोड़ देता है। जब शमौन ने पहली बार यीशु को उत्तर दिया, तो आपको क्या लगता है कि यीशु के बताने से पहले क्या उसने अपने प्रति-उत्तर को उस स्त्री के प्रति-उत्तर से तुलना करते हुए इसे स्वयं से संबंधित किया होगा?
क्या आपने कभी दोष-मुक्त महसूस किया है? जब यीशु ने उस स्त्री से कहा कि उसके पाप क्षमा हो गए हैं और कि उसके विश्वास ने उसे बचा लिया है, तब वो वहाँ से चली गई। उसने उसे कहा कि वह कुशल से चली जाए। आप क्या सोचते हैं कि जब वो जाने लगी तो उसकी भावनाएं कैसी होंगी? यह उन अन्य लोगों से न्याय को लेकर आया जिन्होंने यीशु को उससे यह शब्द कहते सुना था, न कि उस महिला का न्याय, बल्कि यीशु का न्याय। और उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।” (लूका 7:48)
आर केंट ह्यूजेस, प्रीचिंग द वर्ड सीरीज़, लूका, वॉल्यूम वन। व्हीटन, इलिनोइस। क्रॉसवे बुक्स, 1998. पृष्ठ 280
प्रेम जैसे कि आदर के कार्यों द्वारा प्रकट होता है (लूका 7:44-47)
44और उस स्त्री की ओर फिरकर उसने शमौन से कहा; “क्या तू इस स्त्री को देखता है? मैं तेरे घर में आया परन्तु तूने मेरे पाँव धोने के लिये पानी न दिया, पर इस ने मेरे पाँव आंसुओं से भिगाए, और अपने बालों से पोंछा! 45तूने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूँ तब से इसने मेरे पाँवों का चूमना न छोड़ा। 46तूने मेरे सिर पर तेल नहीं मला; पर इसने मेरे पाँवों पर इत्र मला है।” (लूका 7:44-46)
जब यीशु उस स्त्री के पाप को क्षमा करता है, तब वह क्या कारण देता है? पाप के विषय में हमारी धारणा का हमारे परमेश्वर को प्रेम करने के साथ क्या सम्बन्ध है?
बाइबिल का परमेश्वर अपने पुत्र के स्वरूप में मानव रूप में नीचे आया ताकि वह हम पर अपने प्रेम, करुणा और अनुग्रह को इस अद्भुत रीती उड़ेल दे कि वो हमारे हृदयों को और अपने प्रति हमारी भक्ति जीत सके।
यह कहानी इस बारे में नहीं है कि शमौन के जीवन में केवल छोटा पाप है और उसे केवल थोड़ी क्षमा की आवश्यकता है; यह शमौन के पाप के विषय में धारणा के अभाव के बारे में है। उसके घमंड के पाप पर उतना ही धिक्कार है, जितना स्त्री के अनैतिक जीवन के पाप पर है। घमंड ने शमौन की क्षमा को जब्त कर दिया था और प्रेम के विरुद्ध उसके हृदय को बांध दिया था। यह पाप की मात्रा के बारे में नहीं है, बल्कि पाप की स्वीकृति और क्षमा के लिए धन्यवाद की तुलना के बारे में है। कुछ ऐसे हैं, शायद आप जो आज यह पढ़ रहे हैं, जो कि जब से आप याद कर सकते हैं आप यीशु के साथ रहे हैं और आपको लगता है कि आप कभी भी "पापी" नहीं रहे हैं । निश्चित रूप से, आप स्वीकार करते हैं कि आपने पाप किया है, लेकिन आपके मुकाबले दूसरे तो बहुत ही बुरे हैं। मसीह के लिए आपके प्रेम का स्तर सीधे तौर पर इसके साथ तोला जाता है कि आपको कितनी क्षमा प्राप्त हुई है।
परमेश्वर से माँगिये कि वह आपको आपके अपने स्वयं के विशेष पापों के बारे में फिर से स्मरण कराए, वह पाप जिनके बारे में आपके और परमेश्वर के अलावा कोई और नहीं जानता, ताकि आपको जिस कुछ के लिए क्षमा किया गया है उसके लिए आप एक नई प्रशंसा से भर जाएँ। स्त्री के यीशु के प्रति प्रेम का असामान्य प्रदर्शन उसकी सराहना की गहराई की गवाही देता है, जबकि शमौन उस ऋण से अनजान था जो कि उसपर भी बकाया था।
फिर यीशु उस स्त्री को इस बात की पुष्टि करता है कि उसके पाप क्षमा किये गए। ऐफ़िओनटाई क्रिया का पूर्ण काल अतीत में किये एक ऐसे कार्य की ओर संकेत देता है जो वर्तमान काल में भी जारी रहता है। इस प्रकार, महिला को पहले उसके पाप क्षमा किये गए थे, जिसका परिणाम उस क्षण तक में बना रहा। मुझे लगता है कि वह इत्र के साथ आकर इसलिए रोई और यीशु को चूमा क्योंकि उसने पहले से ही विश्वास में बढ़कर परमेश्वर की उस क्षमा को ग्रहण कर लिया था जो यीशु ने अपनी शिक्षा के दौरान प्रस्तावित की थी। वह इसलिए आई क्योंकि वह जानती थी कि उसे क्षमा कर दिया गया था; वो आभार के कारण आई। यह उसके कार्य के लिए यीशु के स्पष्टीकरण से मेल खाता है। यही कारण है कि वह उसके विश्वास के बारे में टिप्पणी करता है। उसने देखा कि उसने पहले से ही उसके प्रेम को स्वीकार कर लिया था, परमेश्वर का प्रेम, और वह एक आभारी हृदय से कार्य कर रही थी। वो जानता था कि उसके पास पहले से ही विश्वास था और उसे क्षमा किया गया था। वो पहले से ही परमेश्वर की क्षमा को समझ रही थी, और वह किसी तरह से यह जानती थी कि यीशु के माध्यम से पिता के हृदय को व्यक्त किया जा रहा था। कोई आश्चर्य नहीं कि उसके आँसू निकल आए। उस महिला के लिए, वो शब्द जीवन लेकर आए। शमौन के लिए, वे केवल न्याय लेकर आए।
लोग यह प्रश्न पूछने लगे: “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?” कुछ तो न्याय कर रहे थे, परन्तु अन्य वाकई ईमानदारी से वो सवाल पूछ रहे थे। ऐसी संभावना है कि मेज पर ऐसे लोग थे जिन्होंने पहले यीशु की शिक्षाओं को सुना था और उसे और अधिक सुनने की आशा में आए थे। स्त्री के निस्वार्थ और असाधारण प्रेम के कार्य के द्वारा यीशु को ऊँचा उठाया गया। उसकी शख्सियत को प्रश्न में लाया गया, "यह कौन है?"
जब हम उसे जो यीशु ने किया है दूसरों के साथ बाँटेंगे तो हम भी इसी चीज़ की अपेक्षा कर सकते हैं। जो लोग परमेश्वर के सच्चे प्रेमियों को देखते हैं, भले ही वे कभी इसे स्वीकार न करें, लेकिन वह हमेशा जागरूक होंगे और उन्हें चुनौती मिलेगी। जब वह परमेश्वर के असाधारण प्रेम को देखते हैं तो लोग उसे पहचानते हैं। यदि आप अपने हृदय में परमेश्वर के लिए प्रेम ज्वलित रखते हैं, तो तब आश्चर्य-चकित न हों जब दूसरे भी इससे छुए जाएं। मसीह के लिए प्रेम लोगों को उनकी गहराई तक झकझोड़ता है। अगर आप सार्वजनिक रूप से यीशु के विषय में अधिक बात करते हैं, तो दूसरे लोग ध्यान देंगे, और वह जिनके हृदय खुले होते हैं, वे अचरज करेंगे, और परमेश्वर की ओर बढ़ेंगे।
प्रार्थना: पिता, आराधना के इस उदाहरण के लिए धन्यवाद जो हम इस पापी स्त्री में देखते हैं। मुझे शैतान के पाप के दास बाजार से बाहर निकालने के लिए आपने मेरे लिए जो कुछ भी किया है उस सब के लिए मुझे गहरी प्रशंसा और आभार प्रदान करें। आपके लिए मेरे प्रेम को गहरा होने के द्वारा अधिक फलवंत होने दें। अमीन!
कीथ थॉमस
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