हिंदी में अधिक बाइबल अध्ययन देखने के लिए, यहाँ क्लिक करें।
2. Why Did Jesus Die?
2. यीशु क्यों मरा?
आप में से कितनों के पास मित्र या रिश्तेदार हैं जो अपने गले में गिलोटिन (सिर काटाने का एक प्रकार का यंत्र) की प्रतीमा पहनते हैं? या शायद एक बिजली की कुर्सी? बेतुका सुनाई पड़ता है ना? परन्तु कितनी बार हमारा सामना ऐसे लोगों से होता है जो कि गले में क्रूस पहनते हैं। हमें इतनी आदत पड़ चुकी है लोगों के गले में क्रूस देखने की, कि हम इस बारे में सोचते ही नहीं कि क्रूस, गिलोटिन या बिजली की कुर्सी के जैसे वध करने का तरीका था। लोग क्रूस क्यों पहनते है? अब तक हुई खोजों में क्रूस जान से मारने का सबसे क्रूर तरीका था।
यहाँ तक कि रोमी लोगों ने जो अपने मानव अधिकार के लिए नहीं जाने जाते ३३७ ईसवीं में क्रूस की सजा को बर्बर समझते हुए खत्म कर दिया। फिर भी क्रूस को हमेशा मसीही विश्वास के चिन्ह के रूप में समझा गया है। सुसमाचारों का अधिकांश भाग यीशु की मृत्यु के बारे में हैं। बाकी नए नियम का अधिकांश भाग इस बात को समझाने के बारे में है कि क्रूस पर क्या हुआ था।
जब प्ररित पौलूस कोरिन्थ गए उन्होंने कहा,“क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं। (१ कुरिन्थियों २:२)” जब हम विंस्टन चर्चिल, रॅनल्ड रेगन, महात्मा गांघी या मर्टिन लूथर किंग के विषय में सोचते हें तो हम यह सोचते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में क्या किया, और उसके द्वारा उन्होंने समाज को कैसे प्रभावित किया ? लेकिन जब हम नया नियम पढ़ते हैं तो यीशु के जीवन से बढ़कर उसकी मृत्यु के बारे में पढ़ते हैं। यीशु, जिसने किसी और मनुष्य से बढ़कर संसार के इतिहास का चेहरा बदल दिया, उसे ज्यादा उसके जीवन के लिए नहीं परन्तु उसकी मृत्यु के लिए याद किया जाता है। यीशु की मृत्यु पर इतना जोर क्यों हैं? उसकी मृत्यु और राजकुमारी डायना, या फिर कोई और शहीद (martyr) या युद्ध के वीरों की मृत्यु के बीच में क्या अन्तर है? वह क्यों मरा? उससे क्या मिला? बिइबिल का अर्थ है, जैसा नया नियम बताता है कि यीशु हमारे पापों के लिए मरा? यह कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर आज हम अपने अधिवेशन में देना चाहते हैं।
समस्या
जब मैं जवान था, मैं व्यक्तिगत रीति से लोगों से बहुत बातचीत किया करता था, उनसे परमेश्वर के साथ उनके सम्बन्ध के बारे में पूछता था इस बात की आशा लगाते हुए कि उन्हें बता सकूँ कि यीशु ने उनके लिए क्या किया है। अक्सर वे मुझे बताते हैं कि उन्हें मसीह की कोई जरूरत नहीं है, कि उनका जीवन भरपूर, सम्पूर्ण और खुश है। वे कहते हैं,“मैं अच्छा जीवन जीने की कोशिश करता हूँ और यह सोचता हूं कि जब मैं मरूंगा तब शायद ठीक ही रहूंगा, क्योंकि मैंने अच्छा जीवन जिया है”। वास्तव में वे यह कह रहे हैं कि उन्हें उद्धारकर्ता की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि उन्हें किसी चीज़ से बचाया जाना है। उद्धारकर्ता के लिए कोई सराहना और प्रेम नहीं है क्योंकि उन्हें कभी भी पवित्र परमेश्वर के सम्मुख उनके व्यक्तिगत दोष और विद्रोह से चेताया नहीं गया। फिर भी हम सबकी एक समस्या है:
इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है। रोमियो ३:२३
मुझे आपके बारे में नहीं पता लेकिन मुझे यह कहने में बहुत कठिनाई होती हैं,“मैं गलत था, कृपया मुझे क्षमा करें।”मैं दूसरों पर दोष लगाने में बहुत जल्दी करता हूँ और यह स्वीकार करने में कि मैं गलत हूँ बहुत देर लगाता हूँ। मेरी पत्नी जानती हैं कि युवा के तौर पर समुद्र पर कई साल रहने के कारण दिशा के बारे में मेरी समझ बहुत अच्छी है। आप सूरज की दिशा के द्वारा मार्ग निर्देशन करना सीख जाते हैं। पर हर बार मैं गड़बड़ कर देता हूं और देखता हूँ कि मैं उत्तर की ओर जा रहा हूँ जबकि मैंने सोचा कि मैं पश्चिम की ओर जा रहा था। पर मेरे लिए यह स्वीकार करना बहुत कठिन है कि मैं गलत था। क्या किसी और को भी यह कहना मुश्किल लगता है कि वह गलत था?
यदि हम सच्चे हैं तो हम सबको यह मान लेना चाहिए कि हम वह काम करते हैं जो हम जानते हैं कि गलत है। बहुत से लोग इस सच्चाई को स्वीकार ही नहीं कर सकते कि वह दोषी हैं, जरा से भी दोषी।यह असमान्य घटना हमारे ध्यान में गम्भीरता से तब लायी जाती हैं जब लोग अपनी गाड़ी दुर्घटना का दावा पत्र भरते हैं। यह एक सिद्ध उदाहरण है इस बात का की लोग जिम्मेदारी का हल्का सा अंश भी नहीं स्वीकार कर पाते। जैसे कि निम्नलिखित बातें बताती हैं कि कुछ गाड़ी-चालक इस बात पर जोर देते हैं कि दोष दूसरों का है जबकि गलतियां अक्सर उन्हीं की होती है। यहाँ पर कोई जीत नहीं कोई शुल्क नहीं, से कुछ और उदाहरण हैं।
• “मैं दोनों में से किसी भी गाड़ी पर दोष नहीं लगाता लेकिन यदि दोनों में से किसी का दोष है तो वह दूसरी वाली का है।”
• “बिजली के तार का खंभा तेजी से आ रहा था। मैंने एकदम से उसके रास्ते से हटने की कोशिश की जब वह मेरी गाड़ी के सामने वाले हिस्से से टकरा गया।”
• “वह व्यक्ति पूरी सड़क पर चल रहा था। मुझे कई बार गाड़ी रास्ते से घुमाकर हटानी पड़ी, इससे पहले कि मैंने उसे टक्कर मारी।”
• “एक न दिखाई देने वाली (अनदेखी) गाड़ी पता नहीं कहां से आई, मेरी गाड़ी को टक्कर मारी और गायब हो गयी।”
• “दूसरी ओर से आने वाले ठहरे हुए ट्रक से मेरी टक्कर हो गई।”
• “घर आते हुए मैंने गाड़ी गलत घर में घुसा दी और उस पेड़ से टकरा दी जो मेरे घर में नहीं है।”
• “४० साल से मैं गाड़ी चला रहा था जबकि मैं चलाते हुए सो गया और दुर्घटना हो गयी।”
चाहे जिसने भी यह कथन अपने दावा पत्र में कहा, यह बहस करने लायक है कि क्या एक शौचालय, एक मैकेनिक या एक अंग्रेजी शिक्षक, कौन सबसे अच्छा कारण बता सकता है। मैं इसका निर्णय आप पर छोड़ता हूं।
• “पेट की खराबी के कारण मैं डॉक्टर के पास जा रहा था कि अचानक डायरिया होने के कारण दुर्घटना हो गयी।”
लोगों को उद्धारकर्ता की जरूरत समझाने के लिए हमें वापस लौटना होगा और सबसे बड़ी समस्या को देखना होगा जिससे इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति का सामना होता है। समस्या यह है कि हम सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है। एक बार, जब मैं सड़क पर अजबनियों से उनके विश्वास के बारे में बात कर रहा था तो एक व्यक्ति ने बताया कि जब वह अपने जीवन के अंत की ओर पहुंचेगा तो उसका हिसाब ठीक रहेगा क्योंकि उसने हवाई जहाज के फटने से पहले दो लोगों को बाहर निकाल कर उनकी जान बचाई थी। जब मैंने उससे पूछा कि वह अपने आपके विषय में क्या करेगा तो उसने कहा कि उसने कभी पाप नहीं किया। वह इस सोच को लेकर धोखे में था कि नैतिक तौर पर वह बहुत से लोगों से अच्छा है और यह कि न्याय के दिन उसका हिसाब ठीक होगा जब परमेश्वर सब लोगों से उन कामों का लेखा लेगा जो उन्होंने किए हैं। (रोमियो १४:१२)।
बहुत से लोग दूसरों का जीवन देखकर अपना न्याय करते हैं। मुझे इसका मतलब समझाने दीजिए, यदि मैं यह कहूँ कि यह दीवार उन लोगों का पैमाना दर्शाती है जो अब तक जिए हैं और सबसे बुरा व्यक्ति सबसे नीचे हैं और दीवार में सबसे ऊपर सबसे श्रेष्ठ और सबसे धर्मी लोग है। सबसे नीचे आप किसको रखेंगे ? बहुत से कहेंगे एडोल्फ हिट्लर, जोसफ स्टालिन, या शायद सद्दाम हुसैन या उनका बॉस। आप सबसे ऊपर किसे रखेंगे? शायद आप कहेंगे मदर टेरीसा, राजकुमारी डायना, मर्टिन लूथर किंग या बिलि ग्राहम। मैं समझता हूँ कि आप सब सहमत होंगे कि हम सब दीवार पर कहीं न कहीं होंगे- कीथ थॉमस कहीं नीचे होंगे और शायद आप कहीं ऊपर होंगे। तो, आप क्या समझते हैं कि स्तर क्या है? शायद हम में से बहुत से लोग यह उत्तर, देगें कि छत स्तर होना चाहिए, यह देखते हुए कि सबसे उत्तम मानवता तो ऊपर है। परन्तु बिइबिल इसे स्तर नहीं मानती। जो भाग हमने अभी देखा, रोमियों ३:२३ में बाइबिल बताती है कि जो स्तर है वह परमेश्वर की महीमा है, जो यीशु मसीह है - जीने के लिए परमेश्वर का महिमामय आदर्श। स्तर इस कमरे की छत नहीं परन्तु आसमान है। हममें से कोई भी परमेश्वर की धार्मिकता - यीशु मसीह तक नहीं पहुंचा है। पाप का अर्थ यही हे कि हम सब लक्ष्य से चूंक गए है- स्तर तक न पहुँचना। यदि हम अपनी तुलना लुटेरों, बच्चों का शोषण करने वालों या अपने पड़ोसियों से करें तो हम अपने आपको बहुत अच्छा समझेंगे। लेकिन जब हम अपनी तुलना यीशु मसीह से करते हैं तब हम देखते हैं कि हम कितने कम हैं।
सोमरसेट मौहम ने एक बार कहा,“यदि मैं वह हर विचार जो कभी मैंने सोचे हैं और हर वह कार्य जो भी कभी मैंने किया है लिखूँ तो लोग मुझे अनैतिकता का राक्षस कहेंगे।”
पाप मुख्यतः परमेश्वर के प्रति विद्रोह है (उत्पत्ति ३) और उसका परिणाम यह है कि हम उससे अलग हो गए हैं। उडाऊ पुत्र के समान (लूका १५) हम अपने पिता के घर से दूर, और अपने जीवन को गड़बड़ी में पाते हैं। कुछ लोग कहेंगे, “अगर हम सब एक ही नाव में सवार हें तो क्या इससे कोई फर्क पड़ता है ?” उत्तर है, हाँ इससे सचमुच फर्क पड़ता है हमारे जीवन में पापों के परिणाम के कारण जिनका चार शीर्षकों में सार दिया जा सकता हैं - पाप की गंदगी, पाप की ताकत, पाप की सजा और पाप का विभाजन।
१)पाप की गन्दगी
फिर उसने कहा, जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। क्योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्याभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती है। ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं। (मर्कुस ७:२०-२३)
शायद आप कहेंगे, “मैं इनमें से अधिकांश बातें नहीं करता,” लेकिन इनमें से एक ही हमारे जीवन को बिगाड़ने के लिए काफी है। हम ऐसा सोच सकते हैं कि दस आज्ञाएं काश एक परीक्षा पर्चें की तरह होती जिसमें से हमें कोई भी तीन करने होते। लेकिन नया नियम बताता है कि यदि हम व्यवस्था का कोई भी एक भाग तोड़ते हैं तो हम सारी व्यवस्था तोड़ने के दोषी है। (याकूब २:१०) एक पाप काफी है आपके जीवन को प्रदूषित करने के लिए और आपको स्वर्ग की सिद्धता से रोकने के लिए। यह सम्भव नहीं है, उदाहरण के लिए कि आप अनुभवी वाहन चालक हैं। या तो वह अच्छा है या नहीं। गाड़ी चलाने में एक गलती उसे स्वच्छ रिकॉर्ड पाने से रोक सकती है। या फिर तेजी से गाड़ी चलाने के लिए जब एक पुलिसवाला आपको रोकता है तब आप उसको यह नहीं बोल सकते कि आपने और कोई नियम नहीं तोड़ा और आशा नहीं लगाते कि आप बच जाऐंगे। एक यातायात उलाहना का अर्थ है कि आपने नियम तोड़ा है। ऐसा ही हमारे साथ है। एक गलती हमारे जीवनों को अशुद्ध करती है। उदाहरण के लिए, एक खूनी होने के लिए आपको कितने खून करने होते हैं ? केवल एक, बिलकुल, झूठा बनने से पहले कोई व्यक्ति कितना पाप करता है ? फिर से, उत्तर केवल हैं एक, एक अपराध हमारे जीवनों को अशुद्ध कर देता हैं।
२)पाप की ताकत
यीशु ने उनको उत्तर दिया, मैं तुमसे सच-सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है। (यहून्ना ८:३८)
जो गलत काम हम करते हैं उनके पास हमें अपने वश में करने की ताकत होती हैं। जब मैं नशा करता था कई बार मैं इस बात को जानता था कि वह किस तरह से मेरे जीवन को नाश कर रहा था लेकिन मेरे जीवन पर उसकी पकड़ थी। मैंने दो-तीन बार उन्हें फेंकने की कोशिश की लेकिन हमेशा लौटकर और अधिक खरीद कर ले आता था। लोग आपको बतायेंगे कि चरस-गांजा में आदी करने की ताकत नहीं होती लेकिन मैंने ऐसा नहीं पाया। जब तक मैंने अपना जीवन मसीह को नहीं दिया तब तक मैं आजाद नहीं हो सका। यह भी संभव है कि हम नशे, या भयंकर क्रोध, ईष्र्या हैकड़ी, घमण्ड, स्वार्थीपन, निन्दा या व्याभिचार के आदी हो। हम अपने सोच में या व्यवहार के तरीकों के भी आदी हो सकते हैं, जिसे हम अपने आप तोड़ नहीं सकते। यह वह दासत्व है जिसके विषय में यीशु कहता है। जो काम हम करते हैं, जिन पापों में हम अपने आपको शामिल करते हैं, उनमें ताकत होती है हमें अपना दास बनाने की।
लिवरपुल के पूर्व बिशप जे. सी. रायल ने एक बार लिखा था -
हर एक और सारे (पापों) के बहुत से दुखी बंधक होते हैं जो पूरी तरह से अपनी बेड़ियों में जकड़े हुए हैं, दुर्दशा में पड़े बंधक....कई बार घमण्ड करते हैं कि वे प्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्र है.....ऐसा कोई दासत्व नहीं है। वास्तव में पाप, सब दुर्दशा और निराशा, अंत में हताशा और नरक - केवल यही वह मजदूरी है जो पाप अपने सेवकों को देता है।
३)पाप की सज़ा
क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।। (रोमियों ६:२३)।
एक बात जो अक्सर मुझे प्रार्थना के लिए प्रेरित करती है वह है सामाचार। जब मैं ऐसी माँ के बारे में सुनना हूं जो दुव्र्यवहार करती है तो मैं न्याय मांगता हूं। जब मैं ट्रेफिक जाम (यातायात अवरोध) में फंस जाता हूँ और कारें वहां से तेजी से निकलती है जहां केवल पुलिस और कर्षण वाहन जा सकते हैं तो मैं गुस्सा होता हूं और कामना करता हूँ कि वे पकड़े जाएं। परन्तु जब मुझे काम के लिए देरी होती है और मैं अत्याधिक तेज गाड़ी चलाता हूं ताकि समय पर कर्मचारियों की बैठक के लिए पहुंच सकूं तब मैं चाहता हूं कि पुलिसवाला मुझे जाने दे। मैं समझता हूँ कि मैं एक पाखण्डी हूं। हमारा सोचना उचित है कि पापों की सजा मिलनी चाहिए। नियम हमारी मदद के लिए हैं ताकि हम अपने जीवन को सही रीति से जी सकें। जो लोग पाप करते हैं उन्हें उनके पापों की सजा मिलनी चाहिए। पाप मजदूरी कमाएगा जैसे हमारे कार्य को हफ्ता- दर - हफ्ता मजदूरी चाहिए। हमारा नियोक्ता उस आधार पर हमें वह देगा जिसके हम लायक हैं - हमारी मजदूरी। इसी प्रकार, परमेश्वर को भी, अपने न्याय में, हमको वह मजदूरी देनी चाहिए, जिसके हम पापी जीवन के द्वारा योग्य हैं अनन्तकाल के लिए परमेश्वर से अलगाव, जिसे बिइबिल नरक कहती है। पाप की मजदूरी मृत्यु है।
४)पाप का विभाजन
सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सकें, परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुंह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता। (यशायाह ५९:१-२)
जब पौलुस कहता है कि पाप की मजदूरी मृत्यु है तो वह केवल शारीरिक मृत्यु के बारे में नहीं कहता। यशायाह भविष्यद्ववक्ता कहता है कि पाप हमें परमेश्वर से अलग करता है। यह आत्मिक मृत्य है जिसका परिणाम है परमेश्वर से अनन्तकाल के लिए अलग हो जाना। परमेश्वर से यह अलगाव वह चीज है जिसका अनुभव हम इस जीवन में करते हैं। अपने पापों के परिणामस्वरूप हममें से हर एक जन ने अपने आपको परमेश्वर से दूर पाया है लेकिन यह तब भी सच्चाई रहेगी जब हम मृत्यु से पार होकर वास्तविक जीवन में प्रवेश करेंगे जो इस संसार से परे हैं। जो गलत कार्य हम करते हैं वह इस रूकावट का कारण हैं।
समाधान
हम सबको एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है जो हमें हमारे जीवनों में पापों के परिणाम से बचाए। इंग्लैड में प्रमुख शासनाधिकार क्लेश्फर्न के लाॅर्ड मकै ने लिखा था -
“हमारे विश्वास का मुख्य केन्द्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा क्रूस पर हमारे पापों के लिए अपने आपका बलिदान है... जितनी गहराई से हम अपनी जरूरत को समझेंगे, उतना ही अधिक हम प्रभु यीशु मसीह से प्रेम करेंगे और इस कारण से उसकी सेवा करने की हमारी इच्छा बहुत प्रबल होगी।”
मसीहत का शुभ संदेश यह है कि परमेश्वर ने देखा है कि हम सब मुश्किल परिस्थिति में है और उसने समस्या का समाधान करने के लिए कदम उठाए हैं। उसका सामाधान यह है कि हम सबके लिए विकल्प बन जाए। परमेश्वर स्वयं जो मसीह है, यीशु के रूप में आया हमारा स्थान लेने के लिए। कुछ ऐसा, जिसको कई किताबों के लिखने वाले जॉन स्टॉट “परमेश्वर का स्वयं- विकल्प”, कहते हैं। प्रेरित पौलुस इसको इस तरह से बताते हैं -
वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया जिससे हम पापों के लिये मरके धार्मिकता के लिये जीवन बिताएं, उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए। (१पतरस २:२४)
१)परमेश्वर का स्वयं-विकल्प
स्वयं-विकल्प का अर्थ है क्या? अपनी पुस्तक “मिरेकल ऑन द रिवर क्वाइ” में अर्नेसट गॉर्डोन युद्ध के बंधकों के एक समूह की सच्ची कहानी बताते हैं, जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बर्मा रेलवे पर काम कर रहे थे। हर दिन के अन्त में काम करने वालों से औजार ले लिए जाते थे। एक अवसर पर, एक जापानी पहरेदार चिल्लाया कि एक बेलचा खो गया है और जानना चाहता था कि किस व्यक्ति ने उसे लिया है। वह जोर से हल्ला मचाने और चिल्लाने लगा ओर उसने आग बबूला होकर यह आदेश दिया कि जो कोई भी दोषी है वह सामने आए। कोई नहीं हिला। अपनी बन्दूक कैदियों पर तानते हुए वह जोर से चिल्लाया, “सब मरेंगे, सब मरेंगे”। उस क्षण एक आदमी सामने निकलकर आया और पहरेदार ने अपनी बन्दूक से उसे मौत के घाट उतार दिया जबकि वह चुपचाप सावधान की मुद्रा में खड़ा था। जब वे कैंप वापस लौटे फिर से औजार गिने गए और कोई भी बेलचा लापता नहीं पाया गया। वह एक व्यक्ति विकल्प बनकर औरों को बचाने के लिए आगे चला गया था। इसी प्रकार से यीशु आगे आया और हमारे बदले मर कर उसने न्याय को तृप्त किया।
२)क्रूस की पीड़ा
यीशु हमारा विकल्प था। उसने हमारे लिए क्रूस की मौत सही। सिसेरो ने बताया कि क्रूस पर लटकाया जाना “सताने का सबसे क्रूर और घिनौना तरीका था।” यीशु के कपड़े उतार दिए गए और उसे एक टिकटी से बांध दिया गया। उसको चमड़े के चार या पांच पेटियों से जो धारदार टेढी-मेढी हड्डी और सीसे से जुड़ा हुआ था, मारा-पीटा गया। तीसरी शताब्दी के इतिहासकार एसेबीयस ने रोमी कोड़े मारने के तरीके का वर्णन इस प्रकार किया, “पीड़ा उठाने वाले जन की नसें नंगी होती थी, और प्रताड़ित जन की माँसपेशियाँ, नसें और अंतड़ियां खुले जखम बन जाते थे।” फिर उसे किले के भीतर ले जाया गया, बंद किले के अन्दर रोमी आंगन में जहां सिर में कांटों का ताज धसाया गया। ६०० लोगों की सेना की टुकड़ी द्वारा उसका ठट्ठा उड़ाया गया। फिर उससे जबर्दस्ती खून से लथपथ कंधो पर एक भारी क्रूस उठाया गया तब तक, जब तक कि वह थक कर गिर न गया और शिमौन कुरैनी से जबर्दस्ती उसका क्रूस उठवाया गया। जब वे क्रूस पर चढ़ाए जाने के स्थान पर पहुँचा, वहां फिर से उसे निर्वस्त्र किया गया। उसको क्रूस पर लिटा दिया गया जहां बिल्कुल कलाई के ऊपर ६ इंच की कील उसके हाथों में गड़ाई गई। उसके घुटनों को एक तरफ घुमा दिया गया ताकि टखनों को पिंडली की हड्डी ओर स्नायुजाल के बीच कील से गाड़ा जा सके।
उसे क्रूस पे उठाया गया जिसे फिर जमीन पर बने गड्डे में धंसाया गया। वहां उसे बेहद गर्मी और असहनीय प्यास के साथ भीड़ का तमाशा होने के लिए टंगा हुआ छोड़ दिया गया। छह घंटे ऐसे दर्द के साथ लटकता छोड़ दिया गया जबकि उसका जीवन धीरे-धीरे खतम हो रहा था। फिर भी सबसे भयंकर बात शारीरिक दुःख नहीं था, न ही संसार द्वारा ठुकराए जाने का और दोस्तों द्वारा छोड़ दिए जाने का भावनात्मक दुःख था बल्कि हमारे लिए पिता से अलग होने की आत्मिक पीड़ा थी - जबकि वह हमारे पापों को अपने ऊपर ले रहा था।
आपने पाप का उचित मूल्य चुका कर, क्रूस पर यीशु के पूर्ण कार्य के कारण परमेश्वर अब उन्हें पूरी रीति से क्षमा दे सकता है जो उसे पाना चाहें। प्रभु दिखाता है कि वह पीड़ा से अनजान नहीं है। जितना हमें मिलना चाहिए था, उसने स्वयं सारा और हमसे बढ़कर अपने ऊपर ले लिया है। वह हमारे बदले और हमारे लिए मर गया। क्रूस पर परमेश्वर ने हमारे लिए अपना प्रेम प्रकट किया।
क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। (यूहन्ना ३:१६)
परिणाम
वचन हमें चार तस्वीरें देता है इस बारे में कि यीशु ने हमारे लिए क्रूस पर क्या किया है -
पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धमिर्कता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं। अर्थात परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये हैं, क्योंकि कुछ भेद नहीं। इसलिये कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। परन्तु उसके अनग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की, उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करें। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो, कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो। (रोमियो ३:२१-२६)
लिवरपुल के पूर्व बिशप जे. सी. रायल ने एक बार लिखा था -
हर एक और सारे (पापों) के बहुत से दुखी बंधक होते हैं जो पूरी तरह से अपनी बेड़ियों में जकड़े हुए हैं, दुर्दशा में पड़े बंधक....कई बार घमण्ड करते हैं कि वे प्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्र है.....ऐसा कोई दासत्व नहीं है। वास्तव में पाप, सब दुर्दशा और निराशा, अंत में हताशा और नरक - केवल यही वह मजदूरी है जो पाप अपने सेवकों को देता है।
३)पाप की सज़ा
क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।। (रोमियों ६:२३)।
एक बात जो अक्सर मुझे प्रार्थना के लिए प्रेरित करती है वह है सामाचार। जब मैं ऐसी माँ के बारे में सुनना हूं जो दुव्र्यवहार करती है तो मैं न्याय मांगता हूं। जब मैं ट्रेफिक जाम (यातायात अवरोध) में फंस जाता हूँ और कारें वहां से तेजी से निकलती है जहां केवल पुलिस और कर्षण वाहन जा सकते हैं तो मैं गुस्सा होता हूं और कामना करता हूँ कि वे पकड़े जाएं। परन्तु जब मुझे काम के लिए देरी होती है और मैं अत्याधिक तेज गाड़ी चलाता हूं ताकि समय पर कर्मचारियों की बैठक के लिए पहुंच सकूं तब मैं चाहता हूं कि पुलिसवाला मुझे जाने दे। मैं समझता हूँ कि मैं एक पाखण्डी हूं। हमारा सोचना उचित है कि पापों की सजा मिलनी चाहिए। नियम हमारी मदद के लिए हैं ताकि हम अपने जीवन को सही रीति से जी सकें। जो लोग पाप करते हैं उन्हें उनके पापों की सजा मिलनी चाहिए। पाप मजदूरी कमाएगा जैसे हमारे कार्य को हफ्ता- दर - हफ्ता मजदूरी चाहिए। हमारा नियोक्ता उस आधार पर हमें वह देगा जिसके हम लायक हैं - हमारी मजदूरी। इसी प्रकार, परमेश्वर को भी, अपने न्याय में, हमको वह मजदूरी देनी चाहिए, जिसके हम पापी जीवन के द्वारा योग्य हैं अनन्तकाल के लिए परमेश्वर से अलगाव, जिसे बिइबिल नरक कहती है। पाप की मजदूरी मृत्यु है।
४)पाप का विभाजन
सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सकें, परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुंह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता। (यशायाह ५९:१-२)
जब पौलुस कहता है कि पाप की मजदूरी मृत्यु है तो वह केवल शारीरिक मृत्यु के बारे में नहीं कहता। यशायाह भविष्यद्ववक्ता कहता है कि पाप हमें परमेश्वर से अलग करता है। यह आत्मिक मृत्य है जिसका परिणाम है परमेश्वर से अनन्तकाल के लिए अलग हो जाना। परमेश्वर से यह अलगाव वह चीज है जिसका अनुभव हम इस जीवन में करते हैं। अपने पापों के परिणामस्वरूप हममें से हर एक जन ने अपने आपको परमेश्वर से दूर पाया है लेकिन यह तब भी सच्चाई रहेगी जब हम मृत्यु से पार होकर वास्तविक जीवन में प्रवेश करेंगे जो इस संसार से परे हैं। जो गलत कार्य हम करते हैं वह इस रूकावट का कारण हैं।
समाधान
हम सबको एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है जो हमें हमारे जीवनों में पापों के परिणाम से बचाए। इंग्लैड में प्रमुख शासनाधिकार क्लेश्फर्न के लाॅर्ड मकै ने लिखा था -
“हमारे विश्वास का मुख्य केन्द्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा क्रूस पर हमारे पापों के लिए अपने आपका बलिदान है... जितनी गहराई से हम अपनी जरूरत को समझेंगे, उतना ही अधिक हम प्रभु यीशु मसीह से प्रेम करेंगे और इस कारण से उसकी सेवा करने की हमारी इच्छा बहुत प्रबल होगी।”
मसीहत का शुभ संदेश यह है कि परमेश्वर ने देखा है कि हम सब मुश्किल परिस्थिति में है और उसने समस्या का समाधान करने के लिए कदम उठाए हैं। उसका सामाधान यह है कि हम सबके लिए विकल्प बन जाए। परमेश्वर स्वयं जो मसीह है, यीशु के रूप में आया हमारा स्थान लेने के लिए। कुछ ऐसा, जिसको कई किताबों के लिखने वाले जॉन स्टॉट “परमेश्वर का स्वयं- विकल्प”, कहते हैं। प्रेरित पौलुस इसको इस तरह से बताते हैं -
वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया जिससे हम पापों के लिये मरके धार्मिकता के लिये जीवन बिताएं, उसी के मार खाने से तुम चंगे हुए। (१पतरस २:२४)
१)परमेश्वर का स्वयं-विकल्प
स्वयं-विकल्प का अर्थ है क्या? अपनी पुस्तक “मिरेकल ऑन द रिवर क्वाइ” में अर्नेसट गॉर्डोन युद्ध के बंधकों के एक समूह की सच्ची कहानी बताते हैं, जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बर्मा रेलवे पर काम कर रहे थे। हर दिन के अन्त में काम करने वालों से औजार ले लिए जाते थे। एक अवसर पर, एक जापानी पहरेदार चिल्लाया कि एक बेलचा खो गया है और जानना चाहता था कि किस व्यक्ति ने उसे लिया है। वह जोर से हल्ला मचाने और चिल्लाने लगा ओर उसने आग बबूला होकर यह आदेश दिया कि जो कोई भी दोषी है वह सामने आए। कोई नहीं हिला। अपनी बन्दूक कैदियों पर तानते हुए वह जोर से चिल्लाया, “सब मरेंगे, सब मरेंगे”। उस क्षण एक आदमी सामने निकलकर आया और पहरेदार ने अपनी बन्दूक से उसे मौत के घाट उतार दिया जबकि वह चुपचाप सावधान की मुद्रा में खड़ा था। जब वे कैंप वापस लौटे फिर से औजार गिने गए और कोई भी बेलचा लापता नहीं पाया गया। वह एक व्यक्ति विकल्प बनकर औरों को बचाने के लिए आगे चला गया था। इसी प्रकार से यीशु आगे आया और हमारे बदले मर कर उसने न्याय को तृप्त किया।
२)क्रूस की पीड़ा
यीशु हमारा विकल्प था। उसने हमारे लिए क्रूस की मौत सही। सिसेरो ने बताया कि क्रूस पर लटकाया जाना “सताने का सबसे क्रूर और घिनौना तरीका था।” यीशु के कपड़े उतार दिए गए और उसे एक टिकटी से बांध दिया गया। उसको चमड़े के चार या पांच पेटियों से जो धारदार टेढी-मेढी हड्डी और सीसे से जुड़ा हुआ था, मारा-पीटा गया। तीसरी शताब्दी के इतिहासकार एसेबीयस ने रोमी कोड़े मारने के तरीके का वर्णन इस प्रकार किया, “पीड़ा उठाने वाले जन की नसें नंगी होती थी, और प्रताड़ित जन की माँसपेशियाँ, नसें और अंतड़ियां खुले जखम बन जाते थे।” फिर उसे किले के भीतर ले जाया गया, बंद किले के अन्दर रोमी आंगन में जहां सिर में कांटों का ताज धसाया गया। ६०० लोगों की सेना की टुकड़ी द्वारा उसका ठट्ठा उड़ाया गया। फिर उससे जबर्दस्ती खून से लथपथ कंधो पर एक भारी क्रूस उठाया गया तब तक, जब तक कि वह थक कर गिर न गया और शिमौन कुरैनी से जबर्दस्ती उसका क्रूस उठवाया गया। जब वे क्रूस पर चढ़ाए जाने के स्थान पर पहुँचा, वहां फिर से उसे निर्वस्त्र किया गया। उसको क्रूस पर लिटा दिया गया जहां बिल्कुल कलाई के ऊपर ६ इंच की कील उसके हाथों में गड़ाई गई। उसके घुटनों को एक तरफ घुमा दिया गया ताकि टखनों को पिंडली की हड्डी ओर स्नायुजाल के बीच कील से गाड़ा जा सके।
उसे क्रूस पे उठाया गया जिसे फिर जमीन पर बने गड्डे में धंसाया गया। वहां उसे बेहद गर्मी और असहनीय प्यास के साथ भीड़ का तमाशा होने के लिए टंगा हुआ छोड़ दिया गया। छह घंटे ऐसे दर्द के साथ लटकता छोड़ दिया गया जबकि उसका जीवन धीरे-धीरे खतम हो रहा था। फिर भी सबसे भयंकर बात शारीरिक दुःख नहीं था, न ही संसार द्वारा ठुकराए जाने का और दोस्तों द्वारा छोड़ दिए जाने का भावनात्मक दुःख था बल्कि हमारे लिए पिता से अलग होने की आत्मिक पीड़ा थी - जबकि वह हमारे पापों को अपने ऊपर ले रहा था।
आपने पाप का उचित मूल्य चुका कर, क्रूस पर यीशु के पूर्ण कार्य के कारण परमेश्वर अब उन्हें पूरी रीति से क्षमा दे सकता है जो उसे पाना चाहें। प्रभु दिखाता है कि वह पीड़ा से अनजान नहीं है। जितना हमें मिलना चाहिए था, उसने स्वयं सारा और हमसे बढ़कर अपने ऊपर ले लिया है। वह हमारे बदले और हमारे लिए मर गया। क्रूस पर परमेश्वर ने हमारे लिए अपना प्रेम प्रकट किया।
क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। (यूहन्ना ३:१६)
परिणाम
वचन हमें चार तस्वीरें देता है इस बारे में कि यीशु ने हमारे लिए क्रूस पर क्या किया है -
पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धमिर्कता प्रगट हुई है, जिसकी गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं। अर्थात परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये हैं, क्योंकि कुछ भेद नहीं। इसलिये कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। परन्तु उसके अनग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहिले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता से आनाकानी की, उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करें। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो, कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहराने वाला हो। (रोमियो ३:२१-२६)